मथुरा

गणेश चतुर्थी पर प्राचीन मोटा गणेश मंदिर में भव्य समारोह, फूलों से सजी बंगला और महारती हुई।

गणेश चतुर्थी का महोत्सव

गणेश चतुर्थी का पर्व भारतीय संस्कृति का एक अत्यंत महत्वपूर्ण त्यौहार है, जिसे समस्त देशवासियों के बीच श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। इस अवसर पर अनेक स्थानों पर गणेश जी की पूजा-अर्चना की जाती है। इसी क्रम में अथखम्बा क्षेत्र में स्थित प्राचीन मोटा गणेश मंदिर में एक भव्य फूल बंगला सजाया गया था। यहाँ, विघ्नहर्ता भगवान को चप्पन भोग के प्रसाद की अद्भुत पेशकश की गई थी।

सुबह का समय रहा होगा जब गणेश जी के सुंदर स्वरूप को पंचामृत से स्नान कराया गया। पंचामृत, जिसमें शहद, दही, दूध, घी और चीनी का उपयोग होता है, केवल एक धार्मिक रस्म नहीं, बल्कि इसका आध्यात्मिक महत्व भी बहुत गहरा है। इसे भगवान को अर्पित किया जाता है ताकि वे अपने भक्तों पर कृपा करें। इसके बाद, शाम को एक भव्य महाभिषेक किया गया, जिसमें भक्तों ने उत्साह और श्रद्धा के साथ भाग लिया। महाभिषेक विशेष रूप से भक्तों के बीच में एक अद्भुत आत्मीयता का अनुभव कराता है।

मंदिर में रात भर चली भजन-कीर्तन की महफिल ने पूरे वातावरण को भक्ति में रंग दिया। इस भक्ति परंपरा का हिस्सा बनकर भक्तों ने एक दूसरे के साथ श्रद्धा और प्रेम से प्रसाद का आदान-प्रदान किया। प्रसाद को सभी भक्तों में समान रूप से वितरित किया गया, जिससे सबके मन में खुशी और संतोष का अनुभव हुआ।

मंदिर ट्रस्ट के सचिव ने इस आयोजन के महत्व को बताते हुए कहा कि यह झलक केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि हमारे समाज में एकता और भाईचारे का प्रतीक है। उन्होंने सभी भक्तों के साथ मिलकर प्रार्थना की और सभी की सुख-समृद्धि की कामना की।

इस खास अवसर पर मंदिर की व्यवस्थाओं में सक्रिय रूप से भागीदारी निभाने वाले श्यामसंडर शर्मा, सेवायत राधरमन शर्मा और मनीष शर्मा ने विशेष योगदान दिया। अध्यक्ष बृज बिहारी शर्मा, गोपाल वासिष्ठा, डॉ. रामकुमार शर्मा, सतीश गोस्वामी एडवोकेट और कन्हैया लाल शर्मा जैसे सम्मानित व्यक्तित्व भी इस कार्यक्रम में शामिल हुए।

श्री रंगलक्ष्मी अदर्श संस्कृत कॉलेज में भी गणेश चतुर्थी महोत्सव के विशेष आयोजन किए गए। कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. अनिल आनंद ने इस अवसर पर कहा कि इस तरह के कार्यक्रम न केवल संस्कृत और संस्कृति को बढ़ावा देते हैं, बल्कि बच्चों में नई ऊर्जा का संचार भी करते हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ऐसे आयोजन भविष्यवक्ता के रूप में भारत के लिए आवश्यक हैं, और हमें देवी-देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए ताकि हम अपने देश को आगे बढ़ा सकें।

गणेश चतुर्थी पर होने वाली सभी गतिविधियों में उत्साह और उमंग की बयार देखने को मिलती है। यह पर्व न केवल एक धार्मिक उत्सव है, बल्कि हमारे नैतिक मूल्य और संस्कृति की पहचान भी है। इस अवसर पर ली जाने वाली साधनाएँ, भजनों और आरती की गूंज हम सभी को जोड़ती है और हमारे भीतर एकता का अनुभव कराती है।

इस प्रकार, गणेश चतुर्थी का पर्व न केवल भक्तों के लिए, बल्कि पूरे समाज के लिए एक महत्वपूर्ण दिन है। यह एक ऐसा अवसर है जब लोग एकत्र होते हैं, एक-दूसरे के साथ मिलकर पूजा करते हैं और अपने समुदाय की एकता का प्रतीक बनते हैं।

इन सब कार्यक्रमों के पीछे दीर्घकालिक योजना होती है, जो समाज को जोड़कर रखने और नई पीढ़ी में सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने का कार्य करती है। गणेश चतुर्थी के महोत्सव के द्वारा हम अपने संस्कृति की जड़ों को और मजबूत कर सकते हैं, जिससे भावी पीढ़ियाँ भी इस धरोहर को अपने हृदय में बसाए रखें।

इस तरह, गणेश चतुर्थी केवल एक पर्व नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला का प्रतीक है। यह हमें सिखाता है कि हमें मिलकर आगे बढ़ना है, एक-दूसरे की सहायता करनी है, और भगवान की कृपा से ही सच्चे अर्थ में जीवन में सफलता प्राप्त की जा सकती है।

इस पर्व के माध्यम से हम यह समझ सकते हैं कि हमारी संस्कृति की जड़ें कितनी गहरी हैं और हमें इन्हें सहेजकर रखना है। गणेश जी का आशीर्वाद सभी पर बना रहे, इसी कामना के साथ सभी भक्त एकजुट होकर इस पर्व का उत्सव मनाते हैं।

गणेश चतुर्थी का यह महोत्सव न केवल धार्मिक गतिविधियों तक सीमित है, बल्कि यह हमें अपने समाज में सद्भावना और एकता की भावना को प्रबल करने का मौका भी देता है। यह हमें यह आभास कराता है कि जब हम सब मिलकर एक उद्देश्य की ओर अग्रसर होते हैं, तब हम किसी भी विघ्न को पार कर सकते हैं।

हम सभी को यह संकल्प लेना चाहिए कि हम अपने-अपने कार्यों में ईमानदारी और मेहनत से जुड़े रहेंगे, तभी हम अपने समाज को आगे बढ़ाने में योगदान दे सकेंगे। गणेश चतुर्थी का यही सच्चा संदेश है — एकता, प्रेम और सहयोग का।

इस प्रकार, गणेश चतुर्थी का पर्व हर वर्ष न केवल भक्ति और श्रद्धा का प्रेरक होता है, बल्कि हमारे जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं को उजागर करने का भी अवसर प्रदान करता है। यह हमें यह बताने का काम करता है कि भारतीय संस्कृति हमेशा से मानवता, प्रेम, और एकता की भावना पर आधारित रही है।

आइए, हम सभी मिलकर इस पर्व को मनाएं और भगवान गणेश से प्रार्थना करें कि वे हमें सद्बुद्धि और समर्पण का मार्ग दिखाएं। इस पावन अवसर पर हमारी सभी कामनाएँ पूर्ण हों और हम सभी को एक सुखद और समृद्ध जीवन के लिए प्रेरित करें। यही है गणेश चतुर्थी का असली अर्थ।

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