राजनीतिक

कैबिनेट के बाहर झड़प, RJD सांसद ने विजय कुमार सिन्हा और अशोक चौधरी पर किया व्यंग्य

नीतीश कैबिनेट की बैठक के बाद उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा और जेडीयू के मंत्री अशोक चौधरी के बीच हुई बहस ने राजनीतिक सरगर्मी बढ़ा दी है। आरजेडी सांसद डॉ. सुरेंद्र यादव ने इस मुद्दे पर अपनी प्रतिक्रिया दी है, जिसमें उन्होंने कहा कि कैबिनेट के बाहर मारपीट हुई है। यह बयान उन्होंने जहानाबाद में पत्रकारों से बात करते हुए दिया।

उन्होंने कहा कि दोनों मंत्रियों के बीच एक लंबा-चौड़ा झगड़ा हुआ था। सुरेंद्र यादव ने अशोक चौधरी पर तंज कसते हुए कहा कि “कर भला तो हो भला, कर बुरा तो हो बुरा।” ये बातें उन्होंने नेशनल हाईवे-33 के फोरलेन निर्माण की स्वीकृति मिलने पर सर्किट हाउस में पत्रकारों के समक्ष रखी।

सुरेंद्र यादव ने यह भी कहा कि एसआईआर (समाज में जागरूकता एवं सूचना संबंधी रिपोर्ट) के मुद्दे को लेकर जनता में भारी आक्रोश है। उन्होंने बताया कि इसका संकेत राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की यात्रा में भीड़ से मिलता है। इसके अलावा, उन्होंने चुनाव आयोग पर भी सवाल उठाए, खासकर बेलागंज विधानसभा में 25 हजार लोगों के नाम वोटर लिस्ट से काटे जाने के संदर्भ में।

सुरेंद्र यादव ने स्वास्थ्य मंत्री पर बिना उनका नाम लिए ही निशाना साधा। उन्होंने कहा कि अटल पथ पर दो बच्चों के शव मिलने के बाद वहां लोगों ने मंत्री को खदेड़ दिया। उन्होंने यह भी बताया कि एक मंत्री की जान जाते-जाते बच गई और उनके बॉडीगार्ड को भी पीटा गया। उनके इस बयान में स्पष्टता थी जब उन्होंने कहा, “और किसको-किसको नंगा कराइएगा?”

स्थानीय विधायक सुदय यादव के विरोध पर सवाल पूछने पर सुरेंद्र यादव ने दोनों हाथ उठाते हुए कहा कि वह किसी का भी विरोध नहीं करते हैं और ना ही इस तरह के विवादों में पड़ते हैं। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि यदि वह गलती करते हैं तो उनका भी विरोध किया जाएगा। उन्होंने दावा किया कि वह पांच बार जहानाबाद से सांसद रहना चाहते हैं, और अब तक वह दो बार चुनाव जीत चुके हैं और तीन बार और चुनाव लड़ेंगे।

इस राजनीतिक दंगल ने बिहार की राजनीतिक रुख़ बदलने की संभावना को जन्म दिया है। यादव ने आरोप लगाया कि सत्ता पक्ष के नेताओं के बीच संघर्ष जनता को यह दर्शाता है कि सत्ता में कितनी अस्थिरता है। उनके अनुसार, यह संघर्ष क्षेत्र की जनता के लिए एक संकेत है कि उन्हें अपनी समस्याओं के बारे में और अधिक सजग रहने की आवश्यकता है।

वह यह बताने से भी नहीं चूके कि राजनीतिक हालात में सुधार तब ही आएगा जब नेता अपनी जिम्मेदारियों को समझें और जनता के सामने खड़े हों। उन्होंने कहा कि योजनाएँ और विकास कार्य तभी सार्थक होंगे जब वार्ताओं को सम्मान मिले। लोगों की आवाज़ को सुनना आवश्यक है, क्योंकि यही लोकतंत्र की मूल भावना है।

सुरेंद्र यादव का यह भी मानना है कि जनहित में काम करने वाले नेताओं को यह समझना होगा कि उनके कार्य एवं फैसले लोगों के जीवन को प्रभावित करते हैं। राजनीति केवल सत्ता हासिल करने का खेल नहीं है; यह एक जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि यह आवश्यक है कि यदि कोई नेता जनहित के खिलाफ काम कर रहा है, तो उसे जनता के विरोध का सामना करना पड़ेगा।

यह घटना साफ तौर पर यह दर्शाती है कि बिहार की राजनीति में आपसी संघर्ष और आरोपों का खेल एक आम बात बन चुकी है। जनता इस खेल से तब तक प्रभावित होगी जब तक कि राजनीतिक नेता अपने दायित्वों को गंभीरता से नहीं लेते। सुरेंद्र यादव ने यह भी कहा कि चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता और ईमानदारी का होना आवश्यक है, जिससे किसी भी प्रकार के धोखाधड़ी के खिलाफ ठोस कदम उठाए जा सकें।

उन्हें विश्वास है कि जब तक सत्ता में वैचारिक मतभेद हैं, तब तक विकसित योजनाएँ और निराकरण केवल कागज़ों तक सीमित रहेंगे। उन्होंने जनता से अपील की कि वे सजग रहें और अपने अधिकारों को जानें, ताकि उनके वोट का सही इस्तेमाल हो सके और वे अपने प्रतिनिधियों को जवाबदेह बना सकें।

इस तरह की बातें सूबाई राजनीति का मिजाज तय करती हैं। भारत में हर चुनाव के साथ ही हमें कई ऐसे मामले देखने को मिलते हैं, जिनमें सत्ता में आने के बाद नेताओं की आपसी खींचतान जनता की समस्याओं को नजरअंदाज कर देती है। ऐसे में पत्रकारों द्वारा उठाए गए सवाल भी महत्वपूर्ण होते हैं, क्योंकि यही सवाल राजनीति की सही तस्वीर को सामने लाते हैं।

इसलिए, यह आवश्यक है कि न केवल नेता बल्कि जनता भी अपने अधिकारों के प्रति जागरूक रहे। यह जिम्मेदारी एक स्वस्थ लोकतंत्र की आधारशिला है। जब नेता जनसेवा को प्राथमिकता देंगे और आरजेडी, जेडीयू या बीजेपी जैसे दल आपस में सहयोग करेंगे, तब ही बिहार की राजनीतिक स्थिति में सुधार संभव है।

अंत में, सुरेंद्र यादव के बयान ने स्पष्ट किया कि बिहार की राजनीति में जो भी घटित होता है, वो अंततः जनता पर ही प्रभाव डालता है और जब तक समाज का हर वर्ग अपनी आवाज नहीं उठाएगा, तब तक वास्तविक बदलाव संभव नहीं होगा।

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