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चीनी मीडिया ने भारत की विदेशी नीति और अमेरिकी टैरिफ पर अपनी राय साझा की।

चीनी मीडिया की भारत को विदेश नीति पर सलाह

चीनी मीडिया ने हाल के दिनों में भारत को अपनी विदेश नीति पर विचार करने के लिए प्रेरित करते हुए एक स्पष्ट संदेश भेजा है। यह विशेष सलाह अमेरिका के साथ चल रहे तनावों के संदर्भ में आई है। विशेष रूप से, भारत के रूस से तेल आयात के कारण भारत-अमेरिका संबंधों में आए बवाल ने इस स्थिति को और मजबूती दी है।

ग्लोबल टाइम्स, जो कि एक सरकारी समाचार पत्र है, द्वारा इस मुद्दे पर उठाए गए बिंदु भारत के लिए एक जागरूकता का संकेत हो सकते हैं। इस मीडिया हाउस का संकेत है कि भारत को एक संतुलित विदेश नीति अपनानी चाहिए, जिसमें न केवल अमेरिका से, बल्कि अन्य देशों से भी बेहतर संबंध स्थापित करने की दिशा में ध्यान दिया जाए।

अमेरिका के साथ संकल्पित संबंधों का प्रभाव

अमेरिका और भारत के बीच व्यापारिक संबंधों में हाल ही में आई समस्याएँ विशेष रूप से चिंताजनक हैं। अमेरिका ने भारत पर अधिकतम टैरिफ लगा दिए हैं जो इसके व्यापारिक संबंधों को प्रभावित कर सकते हैं। भारतीय व्यवसायों में इस बारे में निराशा बढ़ती जा रही है, और यह स्थिति कहीं न कहीं भारत की क्वाड सुरक्षा वार्ता की मेज़बानी की योजना पर भी असर डाल सकती है।

आधुनिक घटनाक्रमों के अनुसार, अमेरिका ने भारत पर रूसी कच्चे तेल के आयात को रोकने का भी दबाव बनाया है, जिसे भारत ने सिरे से नकार दिया है। इस कारण अमेरिका ने भारत पर दंडात्मक टैरिफ लगाने का निर्णय लिया। इसके चलते भारत के साथ व्यापारिक समझौते की प्रक्रिया रुक गई है और यह बात भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए गंभीर चिंता का विषय है।

मुनाफाखोरी का आरोप

अमेरिका के वित्त मंत्री के एक आरोप में भारत पर “मुनाफाखोरी” का आरोप लगाया गया है, जिसमें कहा गया है कि भारत ने रूस-यूक्रेन संघर्ष के दौरान रूसी तेल का आयात बढ़ाकर लाभ कमाने का प्रयास किया है। इस आरोप ने नई दिल्ली के लिए एक नई चुनौति पैदा की है।

भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि वह न तो अपने कृषि बाजार को खोलेगा और न ही रूस से तेल का आयात कभी बंद करेगा। प्रधानमंत्री ने केंद्रित होकर अपनी आर्थिक नीति के समर्थन में नागरिकों को घरेलू उत्पादों का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया है। इससे यह स्पष्ट होता है कि भारत अपने हितों से समझौता करने के लिए तैयार नहीं है।

अमेरिका-भारत गठबंधन में विसंगति

चीनी मीडिया ने यह भी लिखा है कि अमेरिकी सरकार के हालिया निर्णयों ने भारत में विसंगति उत्पन्न कर दी है। भारत- अमेरिका गठबंधन को लेकर पहले जो धारणा बनी थी, वह अब धीरे-धीरे टूट रही है। यह स्थिति भारत के लिए एक चेतावनी हो सकती है कि उसे अपनी विदेश नीति को और अधिक संतुलित और व्यापक बनाना चाहिए।

ग्लोबल टाइम्स ने यह भी बताया कि भारत ने हाल के वर्षों में एक तरह से राजनयिक संतुलन को खो दिया है। क्वाड में उसकी सक्रिय भागीदारी ने उसे अमेरिका के करीब लाने की कोशिश की, लेकिन इसका भारत को कोई खास लाभ नहीं मिला।

अमेरिका का ध्यान अब अपनी घरेलू औद्योगिक नीति पर है, जिसके तहत वह भारतीय उद्योगों को अपने प्रतिस्पर्धियों के रूप में नहीं देख रहा है। ऐसे में भारत को यह समझने की आवश्यकता है कि किसी एक देश पर अत्यधिक निर्भरता उसे दीर्घकालिक सुरक्षा नहीं प्रदान कर सकती।

संतुलित विदेश नीति की आवश्यकता

भारत को अब एक संतुलित विदेश नीति अपनाने की जरूरत है। यह केवल अमेरिका तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि भारत को अपने सभी पड़ोसी देशों और विकासशील देशों के साथ भी अपने संबंधों को मजबूत करने पर ध्यान देना होगा। ब्रिक्स और शंघाई सहयोग संगठन (SCO) जैसे बहुपक्षीय संगठनों में सक्रियता बढ़ाना एक संभावित उपाय हो सकता है।

भारत की विदेश नीति में विविधता लाने का मुद्दा इस समय अत्यंत आवश्यक है। एक संतुलित रणनीति से भारत उन देशों के साथ भी प्रभावी संबंध स्थापित कर सकता है, जो कि विश्व मंच पर अपनी आवाज उठाने के लिए तत्पर हैं।

अंत में

भारत के लिए यह एक महत्वपूर्ण अवसर है कि वह अपनी विदेश नीति को एक नई दिशा दें। अमेरिका के साथ संबंधों में आए तनाव को दूर करने के लिए भारत को आवश्यक कदम उठाने होंगे। साथ ही, अपनी स्वतंत्रता और विकास को बनाए रखते हुए, अन्य देशों के साथ भी सकारात्मक रिश्ते बनाकर रखने की आवश्यकता है।

यह समय है कि भारत एक ऐसी विदेश नीति विकसित करे, जो न केवल उसे आर्थिक रूप से मजबूत बनाए, बल्कि उसे वैश्विक स्तर पर एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी के रूप में स्थापित करे।

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