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चीन ने अपनाई स्वदेशी वायु रक्षा प्रणाली IADWs, विशेषज्ञों ने इसे ‘महान उपलब्धि’ बताया।

भारत के पड़ोसी देशों के साथ सीमा पर समय-समय पर तनाव और टकराव की स्थिति बनी रहती है, विशेष रूप से पाकिस्तान और चीन के साथ। ऐसे परिदृश्यों में, भारत अपनी रक्षा प्रणाली को सुदृढ़ करने में तेजी से प्रयासरत है। स्वदेशी उपकरणों के माध्यम से एक मजबूत रक्षा ढांचे का विकास किया जा रहा है। इस क्रम में, भारत ने अपनी एकीकृत वायु रक्षा हथियार प्रणाली (IADWS) का सफल परीक्षण किया है, जिस पर विश्व की नजरें टिकी हुई थीं। चीन ने भी इस प्रणाली की सराहना की है और इसे एक महत्वपूर्ण उपलब्धि माना है।

IADWS की संरचना

IADWS को डीआरडीओ (रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन) के रिसर्च सेंटर बिल्डिंग (RCI), हाई एनर्जी सिस्टम और साइंस सेंटर (CHESS) द्वारा संयुक्त रूप से विकसित किया गया है। यह एक बहु-स्तरीय वायु रक्षा प्रणाली है, जिसमें कई प्रमुख तकनीकी पहलू शामिल हैं। इसमें स्वदेशी क्विक रिएक्शन सर्फ़ेस-टू-एयर मिसाइल (QRSAM), बहुत कम दूरी की वायु रक्षा प्रणाली (VSHORADS) और उच्च-शक्ति लेजर-आधारित निर्देशित ऊर्जा हथियार (DEW) प्रणाली का समावेश है। हाल ही में, ओडिशा के तट पर इसका सफल परीक्षण किया गया था।

तकनीकी विशेषताएं

IADWS की विभिन्न तकनीकी विशेषताएं इसे अन्य रक्षा प्रणालियों से अलग बनाती हैं।

  1. QRSAM: यह एक तेज-प्रतिक्रिया सतह-से-हवा मिसाइल प्रणाली है, जो 3 से 30 किलोमीटर की दूरी पर दुश्मन के हवाई हमलों को रोकने में सक्षम है। यह प्रणाली अत्यधिक मोबाइल है और इसे त्वरित तैनाती के लिए डिजाइन किया गया है।

  2. VSHORADS: यह प्रणाली विशेष रूप से कम दूरी के खतरों, जैसे ड्रोन और हेलीकॉप्टरों, के खिलाफ प्रभावी है। यह अत्यधिक स्थिरता और सटीकता के साथ लक्ष्यों को लक्षित कर सकती है।

  3. लेजर-आधारित हथियार (DEW): यह एक अत्याधुनिक प्रणाली है, जो प्रकाश की गति से दुश्मन के हवाई लक्ष्यों को नष्ट कर सकती है। यह उच्च सटीकता के साथ बार-बार उपयोग की जा सकती है और इसके संचालन में न्यूनतम लागत आती है।

अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया

चीन के रक्षा विशेषज्ञों ने IADWS प्रणाली की उच्च शक्ति लेजर-आधारित ऊर्जा हथियार प्रणाली की सराहना की है। उनका मानना है कि यह प्रणाली उन लक्ष्यों को रोकने के लिए विकसित की गई है जो कम और मध्यम ऊंचाई पर उड़ान भरते हैं, जैसे कि क्रूज मिसाइल, ड्रोन, हेलीकॉप्टर और अन्य छोटे विमान।

विशेषज्ञों का कहना है कि IADWS को प्रभावी बनाने के लिए एक अत्यंत सक्षम सूचना प्रणाली की आवश्यकता है, जिससे सभी डेटा को केंद्रित रूप से एकत्रित किया जा सके और इसके माध्यम से संबंधित हथियारों का संचालन किया जा सके।

इसके अलावा, विशेषज्ञों का मानना है कि QRSAM और VSHORADS की तकनीकी विशिष्टताएं उतनी अनूठी नहीं हैं, लेकिन लेजर प्रणाली का विकास निश्चित रूप से रक्षा क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण उन्नति के रूप में देखा जा सकता है।

चीन का रक्षा कार्यक्रम

चीन वर्तमान में अपने रक्षा प्रणाली को सुदृढ़ करने के लिए आधुनिक हथियारों में भारी निवेश कर रहा है। इसके साथ ही, चीन पाकिस्तान को भी नई तकनीकों में सहायता प्रदान कर रहा है, जिससे क्षेत्र में संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता महसूस हो रही है।

निष्कर्ष

IADWS प्रणाली का सफल परीक्षण भारत की रक्षा क्षमताओं में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह ना केवल देश की आंतरिक सुरक्षा को सुदृढ़ करता है, बल्कि यह क्षेत्र में शक्ति संतुलन के लिए भी एक रणनीतिक पहल है। माता-पिता दवाब बढ़ने के साथ, भारत की ऐसी प्रणालियाँ आवश्यक बन जाती हैं, जो देश को सुरक्षा प्रदान कर सकें और सीमा पर होने वाले खतरों से निपट सकें।

इस प्रणाली की उन्नति न केवल भारत के लिए, बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए एक सकारात्मक संकेत है, जो सामरिक सुरक्षा के संदर्भ में आगे बढ़ने का मौका प्रदान करता है। यह स्पष्ट है कि भारत अपनी रक्षा क्षमताओं को मजबूत करने की दिशा में गंभीरता से कदम बढ़ा रहा है, जिससे भविष्य में इसे सुरक्षा के प्रति और अधिक मजबूत बनने में सहायता मिलेगी।

भविष्य की संभावनाएं

IADWS जैसे स्वदेशी रक्षा कार्यक्रमों की सफलता से न केवल भारत को आत्मनिर्भरता मिलेगी, बल्कि इससे क्षेत्रीय सुरक्षा को भी मजबूती मिलेगी। यह प्रणाली अन्य देशों के लिए भी एक उदाहरण स्थापित करती है कि कैसे स्वदेशी तकनीकों का विकास किया जा सकता है। ऐसे में, भारत को चाहिए कि वह अपने रक्षा क्षेत्र में और अधिक निवेश करे और नई तकनीकों के विकास को प्रोत्साहित करे।

भविष्य में, यदि भारत अपनी रक्षा प्रणाली को इसी तरह विकसित करता रहा, तो उसे न केवल आंतरिक सुरक्षा में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त होगा, बल्कि वह विश्व रक्षा बाजार में भी एक प्रमुख खिलाड़ी बन सकता है।

यह भारतीय रक्षा की नई युग की शुरुआत हो सकती है, जिसमें स्वदेशी तकनीकों का विकास और स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा देना प्राथमिकता होगी।

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