राजनीतिक

Amit Shah Refutes Opposition’s Claim on 130 Amendment Bill, Discusses His Two-Year Bail.

अमित शाह का बयान: नैतिकता और संविधान संशोधन पर स्पष्टता

विपक्ष द्वारा 130वें संविधान संशोधन विधेयक के विरोध के बीच अमित शाह ने अपने राजनीतिक पूर्व अनुभव का उल्लेख करते हुए कहा कि जब उन्हें सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले में सीबीआई द्वारा समन मिला, तो उन्होंने तुरंत इस्तीफा दे दिया। उन्होंने स्पष्ट किया कि जब तक वे इस मामले से बरी नहीं हो गए, उन्होंने कोई संवैधानिक पद नहीं लिया।

‘मैंने समन मिलते ही इस्तीफा दिया’

अमित शाह ने विपक्ष द्वारा उन पर लगाए गए आरोपों का जवाब देते हुए कहा कि उनके खिलाफ चल रहे मामले को राजनीतिक प्रतिशोध के रूप में देखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा, “जैसे ही मुझे सीबीआई से समन मिला, मैंने अगले ही दिन इस्तीफा दिया और मुझे बाद में गिरफ्तार किया गया। इस मामले में अदालत ने भी कहा कि यह राजनीतिक प्रतिशोध का मामला था और मैं पूरी तरह से बेगुनाह था।”

शाह ने आगे बताया कि उन्हें जमानत पहले मिल गई थी, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने तब तक कोई शपथ नहीं ली जब तक कि उन्हें पूरी तरह से बरी नहीं किया गया। उन्होंने कहा, “विपक्ष मुझे नैतिकता के बारे में क्या सिखाना चाहता है?”

‘मेरी जमानत याचिका दो साल अटकी रही’

अमित शाह ने अपनी जमानत याचिका की सुनवाई को लेकर भी बात की। उन्होंने कहा, “जस्टिस आफताब आलम ने मेरी जमानत याचिका पर विशेष सुनवाई की, लेकिन यह दो साल तक चलती रही। मुझे राज्य से बाहर रहना पड़ा। यह एक अनोखी स्थिति थी कि किसी की जमानत याचिका पर इतनी लम्बी सुनवाई हुई।”

उन्होंने यह भी कहा कि आमतौर पर जमानत याचिका पर फैसला जल्दी किया जाता है, लेकिन उनके मामले में ऐसा नहीं हुआ। “मेरे मामले के अलावा, सुप्रीम कोर्ट में किसी भी जमानत याचिका का मामला पांच दिन से ज्यादा नहीं चलता।”

‘संविधान निर्माताओं ने इसकी कल्पना भी नहीं की होगी’

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संविधान निर्माताओं के विचारों पर भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि वे शायद यह नहीं सोचते थे कि देश के मुख्यमंत्री जेल से सरकार चलाएंगे। उन्होंने कहा, “जब किसी सीएम या मंत्री को 30 दिन में पद से हटाया जाएगा, तो अदालत को यह तय करना चाहिए कि उस व्यक्ति को जमानत मिलेगी या नहीं।”

अमित शाह का यह भी कहना था कि जब अरविंद केजरीवाल जेल में थे, तो उन्हें नैतिक आधार पर इस्तीफा देना चाहिए था, हालांकि वर्तमान कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। उन्होंने जोर देकर कहा कि उनकी पार्टी मानती है कि प्रधानमंत्री और किसी भी मुख्यमंत्री को जेल में रहते हुए सरकार नहीं चलानी चाहिए।

अमित शाह ने स्पष्ट किया कि वर्तमान समय में नैतिकता की आवश्यकता है और यह देश के लोकतंत्र के लिए महत्वपूर्ण है। उन्होंने यह भी कहा कि संविधान निर्माताओं ने कभी नहीं सोचा होगा कि कोई मुख्यमंत्री जेल में जाकर भी अपनी सरकार चला सकेगा।

इस तरह, अमित शाह ने विपक्ष के आरोपों और अपने पक्ष को संभालते हुए इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर व्यापक जानकारी दी और अपनी स्थिति स्पष्ट की। उनकी बातें इस राजनीतिक माहौल में महत्वपूर्ण हैं, जहाँ नैतिकता और संवैधानिकता के बीच संतुलन बनाना प्राथमिकता बन गया है।

अमित शाह का यह बयान न केवल उनके परिप्रेक्ष्य को दर्शाता है, बल्कि आज की राजनीति में नैतिकता के प्रश्नों पर भी प्रकाश डालता है। उनके शब्दों में स्पष्टता और दृढ़ता है, जो किसी भी राजनीतिक मुद्दे पर चर्चा करने के लिए आवश्यक होती है।

राजनीतिक संदर्भ और नैतिकता

भारतीय राजनीति में नैतिकता का प्रश्न हमेशा से केंद्रीय मुद्दा रहा है। जब भी किसी नेता पर आरोप लगते हैं, तो नैतिकता के मुद्दे को लेकर बहस छिड़ जाती है। अमित शाह के संदर्भ में भी यही हुआ। उन्होंने अपने अनुभव को साझा करते हुए बताया कि उन्होंने किस प्रकार राजनीति की कठोर सच्चाइयों का सामना किया और अपने नैतिकता के सिद्धांतों का पालन किया।

अंत में, अमित शाह की बातें इस बात की ओर इशारा करती हैं कि राजनीति केवल सत्ता में आने का खेल नहीं है, बल्कि यह जिम्मेदारियों और नैतिकता का भी विषय है। राजनीति में नैतिकता की आवश्यकता हमेशा बनी रहेगी, और जब नेता इसका पालन करते हैं, तो वे न केवल अपनी पार्टी का, बल्कि समग्र लोकतंत्र का भी प्रतिनिधित्व करते हैं।

इसलिए, यह आवश्यक है कि समाज के सभी पक्ष इस पहलू को गंभीरता से लें और एक मजबूत और नैतिक सियासत के लिए काम करें।

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