राजनीतिक

Digvijay Singh and Kamal Nath: The Dynamics of MP Congress Politics

मध्यप्रदेश कांग्रेस राजनीति में आंदोलन

मध्यप्रदेश कांग्रेस में दिग्विजय सिंह और कमलनाथ के बीच पुरानी राजनीति का विवाद एक बार फिर से उभर आया है। इस विवाद से पूरी पार्टी में हड़कंप मच गया है। दिग्विजय सिंह ने कांग्रेस सरकार के गिरने की जिम्मेदारी कमलनाथ पर डाली है, जबकि कमलनाथ ने इस पर पलटवार किया। यह विवाद तब शुरू हुआ, जब दिल्ली में पार्टी अध्यक्ष और राहुल गांधी ने नवनियुक्त जिला अध्यक्षों से पार्टी, लोकतंत्र और संविधान को बचाने का संकल्प दिलाया।

इस बीच, कमलनाथ के कार्यक्षेत्र छिंदवाड़ा में किसान आंदोलन हुआ, जिसमें कमलनाथ और उनके बेटे नकुलनाथ का नेतृत्व प्रमुखता से रहा। दिग्विजय सिंह ने इस मामले में पुराने आरोपों का दोहराव किया। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह सियासी तनाव मध्यप्रदेश की राजनीति पर गहरा असर डाल सकता है और आने वाले समय में नई हलचल लाने की संभावना है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि दिग्विजय सिंह समय-समय पर अपनी बातें रखते हैं, जिसके बाद अक्सर हंगामा होता है। उन्होंने कांग्रेस सरकार के गिरने की जिम्मेदारी कमलनाथ पर डाली और कहा कि इसके लिए उन्होंने कमलनाथ और सिंधिया को आमने-सामने डिनर पर बुलाया था, जहां सहमति की गई थी, लेकिन उसे पूरा नहीं किया गया। इसके पीछे का तथ्य यह है कि कांग्रेस में दिग्विजय सिंह और कमलनाथ के बीच पुरानी सियासी जोड़ी में अचानक तलवारें खिंच गई हैं।

विवाद की जड़ें

दिग्विजय सिंह अब हमलावर क्यों हैं? इस बात का उत्तर जानने के लिए हमें पीछे के घटनाक्रम को समझना होगा। उन्होंने आरोप लगाया है कि कमलनाथ ने ग्वालियर-चंबल की मांगों को समय पर पूरा नहीं किया, जिससे ज्योतिरादित्य सिंधिया नाराज हुए और कांग्रेस सरकार अल्पमत में आ गई। इसके साथ ही, दिग्विजय ने स्पष्ट किया कि उनका ना तो माधवराव सिंधिया से और ना ही ज्योतिरादित्य सिंधिया से कोई विवाद था।

दूसरी ओर, कमलनाथ ने दिग्विजय सिंह पर पलटवार करते हुए कहा कि सिंधिया की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा और यह धारणा कि “दिग्विजय सरकार चला रहे हैं”, ही सरकार के गिरने की असली वजह थी। दोनों नेताओं के बयानों ने एमपी कांग्रेस में हलचल पैदा कर दी है।

आंदोलन और शक्ति प्रदर्शन

कमलनाथ के नेतृत्व में छिंदवाड़ा में किसान आंदोलन ने उनकी शक्ति को प्रदर्शित किया। इस प्रदर्शन में उनके बेटे नकुलनाथ ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंगार और प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी ने भी इस आंदोलन में सक्रिय भागीदारी दिखाई। यह प्रदर्शन कमलनाथ की ताकत को साबित करता है और सवाल उठाता है कि क्या नकुलनाथ की रीलॉन्चिंग की जा रही है।

इन सब के बीच, दिग्विजय सिंह के बेटे को जिलाध्यक्ष बना दिया गया है, जिससे राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि इससे दिग्विजय सिंह नाराज हो सकते हैं।

चुनावी रणनीतियों पर असर

राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यह झगड़ा केवल व्यक्तिगत मतभेदों या पुराने आरोपों का मामला नहीं है। यह प्रदेश कांग्रेस में गुटबाजी, अविश्वास और नेतृत्व की कमजोरियों का संकेत देता है। आने वाले महीनों में यह सियासी तनाव पूरे प्रदेश को चौंका सकता है और आगामी चुनावी रणनीतियों पर भी असर डाल सकता है।

कुल मिलाकर, दिग्विजय और कमलनाथ के बीच यह विवाद सिर्फ बयानबाजी नहीं है, बल्कि कांग्रेस के भीतर स्थिरता और समन्वय की कमी को उजागर करता है। पार्टी को यह समझना होगा कि पुरानी रंजिशों और आरोपों को संभालना कितना महत्वपूर्ण है, नहीं तो भविष्य में संगठनात्मक चुनौतियाँ और बढ़ सकती हैं।

निष्कर्ष

मध्यप्रदेश कांग्रेस में चल रही इस राजनीतिक उठापटक से साफ पता चलता है कि पार्टी के भीतर एक गहरी दरार है, जो केवल व्यक्तित्व के मतभेदों का मामला नहीं, बल्कि एक बड़े संकट की ओर इशारा कर रही है। दिग्विजय सिंह और कमलनाथ की यह लड़ाई पार्टी के भविष्य को प्रभावित कर सकती है। कांग्रेस को चाहिए कि वह तत्काल अपने नेतृत्व को मजबूत करे और अपनी अंदरूनी खींचतान को खत्म करने की दिशा में कदम उठाए। केवल इस तरह ही वह आगामी चुनावों में सफलता प्राप्त कर सकेगी।

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