पूर्व मंत्री राजन्ना ने DK शिवकुमार पर हमला किया, अंबानी की शादी और अमित शाह का जिक्र करते हुए।

कर्नाटक के पूर्व मंत्री और कांग्रेस विधायक केएन राजन्ना ने उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार पर तीखा हमला बोला है। यह विवाद तब शुरू हुआ जब शिवकुमार विधानसभा में चिन्नास्वामी स्टेडियम की भगदड़ पर चर्चा के दौरान अचानक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की प्रार्थना ‘नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे’ गाने लगे।
राजन्ना ने मीडिया से बात करते हुए डीके शिवकुमार पर कांग्रेस की विचारधारा में विश्वास नहीं करने का आरोप लगाया और उनकी राजनीतिक निष्ठा पर सवाल उठाए। राजन्ना ने कहा, “वह जो चाहें कर सकते हैं। RSS के गीत गा सकते हैं, अमित शाह और सद्गुरु के साथ मंच साझा कर सकते हैं। कहते हैं कि प्रयागराज जाकर संगम में स्नान करने से गरीबों का पेट भर जाएगा, और वह वहां जाते हैं।”
केएन राजन्ना ने आगे कहा, “राहुल गांधी खुद अंबानी के बेटे की शादी का निमंत्रण स्वीकार करने में हिचकते हैं, लेकिन डीके शिवकुमार अपने परिवार के साथ इस शादी में जाते हैं। यह सब है, और लोग इस पर फैसला करेंगे।” यह विवाद तब भड़का जब चिन्नास्वामी स्टेडियम में हुई भगदड़ की घटना पर विधानसभा में बहस चल रही थी, जिसमें 11 लोगों की मौत हो गई थी।
बीजेपी विधायकों ने शिवकुमार पर रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु की टीम के साथ एयरपोर्ट से स्टेडियम तक जुलूस में शामिल होने का आरोप लगाया और इसे भगदड़ का कारण बताया। जवाब में शिवकुमार ने RSS का गीत गाकर सभी को चौंका दिया। बीजेपी विधायकों ने मेज थपथपाकर और हंसकर इस गीत का स्वागत किया, जबकि कांग्रेस विधायक चुप रहे।
बीजेपी विधायक वी सुनील कुमार ने टिप्पणी की, “उम्मीद है कि इन पंक्तियों को रिकॉर्ड से नहीं हटाया जाएगा।” डीके शिवकुमार ने बाद में सफाई दी कि उनके गीत गाने के पीछे कोई अप्रत्यक्ष या प्रत्यक्ष संदेश नहीं था और उन्होंने कांग्रेस पार्टी के प्रति अपनी निष्ठा दोहराई। उन्होंने कहा, “मैंने सभी राजनीतिक दलों पर शोध किया है। मुझे पता है कि RSS कर्नाटक में कैसे संस्थान बना रहा है। वे हर जिले और तालुका में स्कूल खोल रहे हैं। मैं कांग्रेसी हूं और कांग्रेस में ही रहूंगा।”
इसके अलावा, केएन राजन्ना को राहुल गांधी के ‘वोट चोरी’ के दावे से अलग बयान देने पर मंत्री पद से हटा दिया गया था। राहुल गांधी ने चुनाव आयोग पर बीजेपी के साथ सांठगांठ करने का आरोप लगाया था। उन्होंने बेंगलुरु के महादेवपुरा सीट पर वोटर लिस्ट में गड़बड़ी का दावा किया था। इस पर केएन राजन्ना ने कहा था, “कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार है। मतदाता सूची हमारी ही पार्टी के सत्ता में रहने के दौरान बनाई गई। अगर हमारी आंखों के सामने गड़बड़ियां हुईं और हमने तब आपत्ति नहीं जताई, तो आज शिकायत करने का क्या औचित्य है। इससे हम पर ही सवाल खड़े होते हैं।” इस बयान के अगले ही दिन राजन्ना की कुर्सी चली गई।
यह स्थिति कर्नाटक की राजनीतिक वातावरण में एक नया मोड़ प्रतीत होती है। कांग्रेस और बीजेपी के बीच यह टकराव इस बात का संकेत है कि कर्नाटक की राजनीति में विचारधारा और व्यक्तिगत निष्ठा का महत्व कितना बढ़ रहा है। चुनाव के नजदीक आते ही राजनीतिक दलों के बीच आपसी सामंजस्य और टकराव दोनों बढ़ जाते हैं। खासकर, जब बात RSS जैसी संगठन की होती है, जो अपने दृष्टिकोण के लिए जाने जाते हैं।
राजन्ना की टिप्पणियाँ इस बात का उदाहरण हैं कि कैसे राजनीतिक व्यक्तित्व एक-दूसरे को निशाना बना सकते हैं और किस प्रकार विचारधारा की मौलिकता पर सवाल उठाए जा सकते हैं। शिवकुमार का RSS के गीत गाना उनकी स्थिति को और भी जटिल बनाता है, क्योंकि यह उनकी पार्टी के भीतर विवाद सी स्थिति को जन्म देता है।
कर्नाटक में कांग्रेस और बीजेपी के बीच की खाई धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है। एक ओर जहां कांग्रेस अपने समर्पण और निष्ठा पर जोर दे रही है, वहीं दूसरी ओर बीजेपी अपने अलग विचारधारा के तहत काम कर रही है। ऐसे में यह देखना होगा कि इन नेताओं के विचार और उनके कार्य क्या परिणाम देते हैं।
कर्नाटक के इस राजनीतिक संघर्ष में, जनता की राय और उनकी अपेक्षाएँ भी अहम भूमिका निभाती हैं। यदि राजन्ना और शिवकुमार जैसे नेता जनता के विश्वास को खोते हैं, तो यह उनके लिए बड़ा संकट बन सकता है। इन सब बातों के चलते, कर्नाटक की राजनीति में अगले कुछ महीनों में और भी चर्चाएँ हो सकती हैं, जो विभिन्न दलों के बीच की समीकरणों को प्रभावित करेंगी।
इन विचारों के साथ, कर्नाटक की राजनीतिक समीकरणों का अध्ययन करना बेहद जरूरी हो गया है। आने वाले चुनावों और नेताओं की सोच को देखते हुए यह समझना आवश्यक है कि इस प्रकार के टकराव किस दिशा में जा सकते हैं। आखिरकार, जनता ही इस खेल की असली खिलाड़ी होती है और उनके वोट ही फैसला करते हैं कि कौन सत्ता में आएगा और कौन बाहर रह जाएगा।
अंत में, कर्नाटक की राजनीति का यह विवाद इस बात का प्रतीक है कि राजनीति केवल मतदाताओं के बीच की लड़ाई नहीं, बल्कि विचारधारा और नैतिकता के बीच भी एक जंग है। हमें यह देखना होगा कि भविष्य में ये विवाद किस दिशा में बढ़ते हैं और क्या इससे कर्नाटक के राजनीतिक परिदृश्य में कोई बड़ा परिवर्तन देखने को मिलता है या नहीं।