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मोहम्‍मद यूनुस का बयान: हमारे पास रोहिंग्या शरणार्थियों के लिए कोई संसाधन नहीं, वैश्विक समाधानों की जरूरत है।

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस का दीर्घकालिक समाधान की मांग पर जोर

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख, मोहम्मद यूनुस, ने हाल ही में रोहिंग्या शरणार्थियों के संकट पर गहरी चिंता व्यक्त की है। उनका कहना है कि देश में रहने वाले लगभग 1.3 मिलियन रोहिंग्या शरणार्थियों के लिए कोई संसाधन उपलब्ध नहीं हैं, और उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से इस मुद्दे पर तत्काल ध्यान देने की अपील की। यूनुस ने कहा कि रोहिंग्याओं की सहायता के लिए एक स्थायी समाधान खोजने की अत्यंत आवश्यकता है।

कॉक्‍स बाजार में आयोजित एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में, मोहम्मद यूनुस ने इस बात पर जोर दिया कि बांग्लादेश में शरणार्थियों की स्थिति कठिन होती जा रही है। उन्होंने सम्मेलन में उपस्थित राजनयिकों और दाताओं से निवेदन किया कि वे इस मानवीय संकट में सहायता प्रदान करें और एक ठोस योजना तैयार करें ताकि रोहिंग्याओं को घर लौटने का अवसर मिल सके। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि इस मुद्दे को वैश्विक स्तर पर प्राथमिकता नहीं दी गई तो यह स्थिति और भी गंभीर हो जाएगी।

रोहिंग्याओं की हालत

कॉक्‍स बाजार का क्षेत्र पिछले आठ वर्षों से विश्व का सबसे बड़ा शरणार्थी शिविर बना हुआ है। अगस्त 2017 में, 700,000 से अधिक रोहिंग्या म्यांमार के राखीन राज्य में हुई हिंसा के बाद भागकर बांग्लादेश आए। संयुक्त राष्ट्र ने इस सैन्य कार्रवाई को एक जातीय सफाई का उदाहरण माना है।

यूनुस ने कहा, “हमारे घरेलू स्रोतों से कोई अतिरिक्त संसाधन बढ़ाने की संभावना नहीं है, क्योंकि हम कई चुनौतियों से जूझ रहे हैं।” उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से आग्रह किया कि वे रोहिंग्या संकट का स्थायी समाधान निकालें और एक मार्गचित्र तैयार करें जिससे कि रोहिंग्याओं की सुरक्षित वापसी संभव हो सके।

रोहिंग्या बच्चों की स्थिति और भी चिंताजनक है। यूनुस के अनुसार, कॉक्‍स बाजार के शिविरों में शरणार्थी बच्चों की संख्या लगभग 50% है और वे बांस से बने तंग झुग्गियों में रह रहे हैं। उन्होंने कहा कि सहायता कम होती जा रही है, स्कूल बंद हैं, और बच्चों का भविष्य अनिश्चित है।

रोहिंग्या समुदाय की शोरगुल

इस सम्मेलन के दौरान रोहिंग्या शरणार्थियों की ओर से एक रैली भी आयोजित की गई थी। इस रैली में शरणार्थियों ने प्लेकार्ड और पोस्टर लिए थे जिन पर लिखा था “कोई और शरणार्थी जीवन नहीं”, “नरसंहार को रोकें”, और “घर लौटना अंतिम समाधान है।” रोहिंग्या समुदाय के नेता सईद उल्ला ने इस बात पर जोर दिया कि पिछले सात वर्षों में अनेकों सम्मेलन हुए हैं, लेकिन उनकी स्थितियां जस की तस बनी हुई हैं।

म्यांमार में चल रही हिंसा का प्रभाव

2025 के दौरान, लगभग 150,000 नए रोहिंग्या शरणार्थी म्यांमार के राखीन राज्य में जारी संघर्ष के कारण बांग्लादेश पहुंचे हैं, जिससे संकट और भी बढ़ गया है। म्यांमार सेना अपने अभियानों को विरोधी कार्रवाई कह रही है, जबकि संयुक्त राष्ट्र इसे नियोजित जातीय सफाई के रूप में देख रहा है।

शरणार्थी कैंपों की स्थिति गंभीर होती जा रही है। अंतर्राष्ट्रीय सहायता घटती जा रही है, और बच्चों समेत सभी शरणार्थियों का भविष्य संकट में है। यूनुस ने स्पष्ट किया कि जब तक इस चुनौती पर उचित ध्यान नहीं दिया जाएगा, स्थायी समाधान की संभावना दूर है।

वैश्विक स्तर पर ध्यान आकर्षित करना आवश्यक

यूनुस ने यह भी कहा कि यदि विश्व समुदाय इस मुद्दे को प्राथमिकता नहीं देगा, तो रोहिंग्याओं का दुर्दशा जारी रहेगी। वह समझते हैं कि समस्याओं का समाधान खोजने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है, और उन्होंने दाता देशों से आग्रह किया कि वे एकजुट होकर इस संकट का समाधान खोजें।

रोहिंग्या समुदाय के लोग अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं। उन्होंने कहा है कि ये लोग अपनी मातृभूमि में लौटने का अवसर चाहते हैं, लेकिन इसके लिए आवश्यक है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय म्यांमार पर दबाव बनाए ताकि वहाँ की स्थिति में सुधार हो सके।

संकट का दीर्घकालिक समाधान

मोहम्मद यूनुस का कहना है कि बांग्लादेश को अपनी सीमाओं के भीतर इस स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। उनका मानना है कि एक दीर्घकालिक समाधान खोजने के लिए आवश्यक है कि सभी पक्ष एक साथ मिलकर काम करें। उन्होंने कहा कि एक समर्पित अंतर्राष्ट्रीय प्रयास, जिसे सभी प्रमुख खिलाड़ी स्वीकार करें, ही इस संकट को समाप्त कर सकता है।

रोहिंग्या संकट के समाधान के लिए एक ठोस योजना की आवश्यकता है। इसके लिए संवाद और सहयोग का रास्ता अपनाना होगा, ताकि शरणार्थियों को एक सुरक्षित और स्थायी भविष्य मिल सके।

इस विषय में जागरूकता बढ़ाना और समुचित उपायों को लागू करना आवश्यक है। अगर हम इस संकट के प्रति अनदेखा करते रहेंगे, तो यह समस्या सिर्फ बांग्लादेश तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि इसका प्रभाव पूरी दुनिया पर पड़ेगा।

निष्कर्ष

इस मुद्दे पर मोहम्मद यूनुस की बातें न केवल बांग्लादेश के लिए बल्कि वैश्विक स्तर पर भी महत्वपूर्ण हैं। रोहिंग्या शरणार्थियों का मामला केवल एक मानवता का प्रश्न नहीं है, बल्कि यह एक व्यापक वैश्विक चिंतिकारक है। एक स्थायी समाधान की तलाश केवल समय की मांग नहीं, बल्कि जागरूकता, सहानुभूति और वैश्विक सहयोग की भी आवश्यकता है।

रोहिंग्याओं को उनकी मातृभूमि में लौटने का अवसर प्रदान करने के लिए व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से प्रयास करने की आवश्यकता है। अगर हम इस संकट को सुलझाने में सफल होते हैं, तो यह न केवल एक मानवता के प्रश्न का समाधान होगा, बल्कि एक नई शुरुआत का प्रतीक भी बनेगा।

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