BCCI की जर्सी प्रायोजन कहानी: सहारा से ड्रीम 11 तक, क्यों है यह हमेशा विवादों में?

भारतीय क्रिकेट टीम की नीली जर्सी न केवल खेल का प्रतीक है, बल्कि यह बड़े ब्रांडों के लिए पहचान और विज्ञापन का प्रभावी माध्यम भी रही है। पिछले तीन दशकों में, इस जर्सी पर कई बड़े नाम जुड़े हैं, जिन्होंने न केवल क्रिकेट बल्कि उनके व्यवसाय को भी प्रभावित किया है। हाल ही में, क्रिकेट के नियंत्रक बोर्ड (BCCI) और वर्तमान जर्सी प्रायोजक ड्रीम-11 के बीच साझेदारी खत्म होने की पुष्टि हुई है। इससे आगामी एशिया कप में भारतीय टीम ड्रीम-11 के लोगो के बिना मैदान में उतरेगी। BCCI अब नए प्रायोजकों के लिए निविदा जारी करने की तैयारी कर रहा है।
दिलचस्प बात यह है कि भारतीय टीम के कई बड़े प्रायोजकों को वर्तमान में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। सहारा समूह के खिलाफ कानूनी विवाद, बायजू पर वित्तीय दबाव, और अब ड्रीम-11 पर गेमिंग अधिनियम का प्रभाव देखा जा रहा है। ऐसा प्रतीत होता है कि ब्रांड संकट टीम इंडिया की जर्सी के साथ जुड़ा हुआ है।
पहले की प्रायोजक कंपनियां
ITC से शुरूआत:
1990 के दशक की शुरुआत में, जब भारतीय क्रिकेट व्यवसायिक रूप से तेजी से बढ़ने लगा, तब आईटीसी लिमिटेड टीम इंडिया की जर्सी पर प्रायोजक बनने वाला पहला प्रमुख नाम था। 1993 से 2001 तक, विल्स और आईटीसी होटल जैसे ब्रांड भारतीय खिलाड़ियों की जर्सी पर दिखाई दिए। यह क्रिकेट और विज्ञापन साझेदारी के लिए एक समृद्ध युग था।
कंपनी की वर्तमान स्थिति:
आईटीसी की मार्केट कैप लगभग पांच लाख करोड़ रुपये है। हाल की तिमाहियों में आईटीसी का लाभ बढ़ा है, लेकिन कंपनी नए प्रकार की चुनौतियों का सामना कर रही है।
सहारा का गोल्डन एरा:
2002 से 2013 तक, टीम इंडिया की जर्सी पर सहारा इंडिया का लोगो सबसे लंबे समय तक दिखाई दिया। यह वह समय था जब भारतीय क्रिकेट ने अपनी सुनहरी धाराओं को छुआ। T20 विश्व कप 2007 और 2011 का ODI विश्व कप इसी दौरान आया था। यह संबंध लगभग एक दशक तक अटूट रहा।
कंपनी की वर्तमान स्थिति:
सहारा समूह ने प्रमुख संकटों का सामना किया है, खासकर सुब्रत राय की जेल यात्रा के बाद। वर्तमान स्थिति बहुत विसंगत और अनिश्चित है, और सरकार ने सहारा समूह के फंसें जमाकर्ताओं के लिए धन निकालने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।
डिजिटल युग में प्रवेश:
2014 में स्टार इंडिया ने भारतीय क्रिकेट टीम की जर्सी प्रायोजक बनने का मौका हासिल किया। इसके साथ ही, क्रिकेट और डिजिटल ब्रॉडकास्टिंग का मेल एक नया इतिहास बनाने में सहायक रहा। स्टार इंडिया ने 2014 से 2017 तक भारतीय क्रिकेट के जर्सी प्रायोजक के रूप में काम किया।
कंपनी की वर्तमान स्थिति:
स्टार इंडिया वर्तमान में एक प्रमुख मीडिया समूह है और अच्छी स्थिति में है।
मोबाइल ब्रांडों की प्रतिस्पर्धा:
2017 से ओप्पो ने भारतीय टीम की जर्सी पर प्रायोजक के रूप में स्थान पाया। ओप्पो ने 2017 से 2019 तक भारतीय टीम की जर्सी प्रायोजक के रूप में कार्य किया। इस ब्रांड ने क्रिकेट को अपने प्रचार का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत बना लिया था। ओप्पो ने 2017 में प्रायोजन के लिए विवो मोबाइल से अधिक बोली लगाई।
कंपनी की वर्तमान स्थिति:
ओप्पो को स्मार्टफोन की बिक्री में चौथा स्थान मिला है, लेकिन इसके सामने वित्तीय दबाव और कानूनी चुनौतियां भी हैं। हाल में, कंपनी ने अपनी चिप डिजाइन यूनिट को बंद करने का फैसला किया।
निष्कर्ष
भारतीय टीम की जर्सी पर विभिन्न ब्रांडों का इतिहास दर्शाता है कि खेल और व्यापार के बीच एक गहरा संबंध है। जबकि कुछ ब्रांड नए अवसरों का पाना चाहते हैं, अन्य कानूनी झंझटों और वित्तीय संकटों का सामना कर रहे हैं। भारतीय क्रिकेट का भविष्य न केवल खेल की गुणवत्ता पर निर्भर करता है, बल्कि इसके पीछे खड़े ब्रांडों की स्थिरता और नैतिकता पर भी निर्भर करेगा।
इस प्रकार, भारतीय क्रिकेट टीम की यात्रा एक अद्वितीय और प्रेरणादायक कहानी है, जिसमें संघर्ष, सफलता, और समस्याओं का बुरा हाल देखने को मिलता है।