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हिमाचल में ‘पारिस्थितिकी असंतुलन’ पर सुप्रीम कोर्ट चिंतित, सुनवाई के लिए न्याय मित्र नियुक्त करने का फैसला

नई दिल्ली । हिमाचल प्रदेश में पारिस्थितिकी असंतुलन पर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जाहिर की है। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने हिमाचल प्रदेश में पारिस्थितिकी और पर्यावरण के हालात पर स्वत: संज्ञान लेकर सुनवाई कर रही है। अब अदालत ने इस मामले में न्याय मित्र की नियुक्ति करने का फैसला किया है। न्याय मित्र निष्पक्ष रहकर मामले से जुड़ी जानकारी और विशेषज्ञता अदालत के साथ साझा करेगा और इस मामले में अदालत की मदद करेगा। सोमवार को हिमाचल प्रदेश के एडवोकेट जनरल और अतिरिक्त एडवोकेट जनरल ने पीठ को बताया कि राज्य सरकार ने पर्यावरण के हालात पर 23 अगस्त को रिपोर्ट दे दी है। इसके बाद पीठ ने मामले की सुनवाई चार हफ्ते बाद के लिए टाल दी। पीठ ने कहा कि राज्य में हालात लगातार बिगड़ रहे हैं।
हिमाचल सरकार ने जून 2025 में एक आदेश जारी कर कुछ इलाकों को हरित क्षेत्र घोषित कर दिया। इसका मतलब ये हुआ कि इन इलाकों में निर्माण कार्य नहीं हो सकेंगे। सरकार के इस फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई, लेकिन उच्च न्यायालय ने याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया। उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। 28 जुलाई को याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस जेपी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने भी हिमाचल प्रदेश के हालात पर कहा कि अगर स्थिति नहीं बदली तो हिमाचल प्रदेश हल्की सी हवा में उड़ जाएगा। साथ ही पीठ ने कहा कि हिमाचल में जलवायु परिवर्तन का असर साफ-साफ दिखाई दे रहा है।
पीठ ने कहा कि विभिन्न विशेषज्ञों का मानना है कि हिमाचल प्रदेश में बड़े पैमाने पर तबाही का कारण हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स, चार लेन की सड़कों का निर्माण, बहुमंजिला इमारतों का निर्माण और बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई आदि है। पीठ ने कहा कि हिमाचल प्रदेश हिमालय की गोद में बसा है और राज्य में कोई भी निर्माण प्रोजेक्ट शुरू करने से पहले भू-विज्ञानियों और विशेषज्ञों की सलाह लेना बेहद जरूरी है। सर्वोच्च अदालत ने राज्य में बहुत ज्यादा पर्यटन संबंधी गतिविधियों को भी राज्य के लिए नुकसानदायक बताया। पीठ ने केंद्र सरकार से भी राज्यों के साथ समन्वय करने की अपील की।

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