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अमेरिका ने ब्रिटिश नजरिया अपनाया, इसलिए यह मामला भारत से जुड़ा है, ऑस्ट्रेलियाई संस्थान का ऐसा क्यों कहना है?

भारत और अमेरिका के संबंध: एक नया मोड़

भारत और अमेरिका के बीच संबंधों में हाल के समय में तनाव के संकेत स्पष्टता के साथ उभरकर सामने आ रहे हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति ने हाल ही में भारत से आने वाले रूसी तेल पर 50% टैरिफ की घोषणा की, जिसके परिणामस्वरूप दोनों देशों के बीच के संबंधों में दरारें उत्पन्न हो सकती हैं। यह कदम सिर्फ व्यापारिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि भू-राजनीतिक स्तर पर भी गंभीर परिणाम ला सकता है।

भारत को क्यों हो रहा है नुकसान?

भारत लंबे समय से रूस से रियायती तेल खरीदता आया है, जिसका मुख्य उद्देश्य अपने 1.4 बिलियन नागरिकों के लिए ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करना है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने इस बात पर जोर दिया है कि भारत का यह निर्णय पूरी तरह से “बाजार के कारकों” पर आधारित है। लेकिन अमेरिका इसे भू-राजनीतिक चुनौती के रूप में देख रहा है। इस सवाल का उठना अब आवश्यक हो गया है कि जब यूरोप स्वयं रूसी ऊर्जा संसाधनों को खरीद रहा है, तो भारत पर ही क्यों दबाव डाला जा रहा है?

भारत को दंडित करना गलत कदम

कई विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को दंडित करना न केवल अनुचित है, बल्कि यह भारत को मजबूर करता है कि वह चीन के साथ अपने संबंधों को और गहरा करे। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में भाग लेने के लिए चीन का दौरा करने की योजना बनाई है।

ब्रिटेन का उदाहरण

ऑस्ट्रेलियाई संस्थान ने ब्रिटेन का उदाहरण देते हुए कहा कि अमेरिका को भारत के साथ “साझेदारी” की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए, न कि “दंड” करने की। भारत और ब्रिटेन के बीच एक ऐतिहासिक मुक्त व्यापार समझौता हुआ था, जो दोनों देशों की प्राथमिकताओं को सम्मानित करता है।

  • इस सौदे में भारत के 99% निर्यात पर से शुल्क हटा दिया गया है।
  • ब्रिटिश उत्पादों जैसे व्हिस्की और ऑटोमोबाइल पर करों को कम किया गया है।
  • “डबल योगदान समझौता” पेशेवरों के लिए लाया गया।
  • लक्ष्य: 2030 तक व्यापार को 120 बिलियन डॉलर तक दोगुना करना।

अमेरिका को क्या खतरा?

भारत भारत-प्रशांत क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी है, और इसका अमेरिका की रणनीति में एक महत्वपूर्ण स्थान है। टैरिफ जैसे कठोर निर्णय इस साझेदारी को कमजोर कर सकते हैं।

यदि भारत अमेरिका से दूर होता है और नेपाल के नजदीक आता है, तो वाशिंगटन की “एशिया रणनीति” को खतरा हो सकता है। इसके साथ ही, भारत ने हाल के वर्षों में अमेरिकी हथियारों की खरीद में वृद्धि की है, लेकिन टैरिफ के प्रभाव से रक्षा सहयोग को भी नुकसान हो सकता है।

आतंकवाद के खिलाफ सहयोग की कमी

भारत ने वैश्विक आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। लेकिन टैरिफ युद्ध इस सहयोग पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।

भारत का स्पष्ट संदेश

प्रधानमंत्री ने हाल ही में एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में स्पष्ट किया कि भारत अपने किसानों, मछुआरों और डेयरी श्रमिकों के हितों पर कभी भी समझौता नहीं करेगा। इस प्रकार, चाहे अमेरिका का दबाव कितना भी हो, भारत अपनी नीतियों को राष्ट्रीय हित के अनुरूप ही बनाए रखेगा।

निष्कर्ष

ऑस्ट्रेलियाई संस्थान की रिपोर्ट का सार यह है कि यदि अमेरिका भारत को एक मजबूत “भागीदार” के रूप में देखता है, तो उसे अपने दृष्टिकोण में लचीलापन और व्यावहारिकता लानी होगी। अन्यथा, इसमें कोई शक नहीं है कि टैरिफ युद्ध न केवल भारत और अमेरिका के संबंधों को खतरे में डाल देगा, बल्कि पूरे इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की सुरक्षा और रणनीति को भी प्रभावित कर सकता है।

इस प्रकार, अमेरिका के पास एक सुनहरा अवसर है कि वह भारत के साथ अपने संबंधों को मजबूत और स्थिर रखने के लिए आवश्यक कदम उठाए। विश्व राजनीति में स्थिरता और सहयोग की आवश्यकता है, और भारत और अमेरिका दोनों को इसमें एक-दूसरे की भूमिका का सम्मान करना चाहिए।

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