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सिंधिया ने बताया कि डिग्विजय की सरकार में विद्रोह हो रहा था—कमल नाथ ने 2020 के दावों का खंडन किया।

कमल नाथ का बयान: मध्य प्रदेश में कांग्रेस सरकार के पतन का रहस्य

मध्य प्रदेश कांग्रेस सरकार के पतन को लेकर हाल के दिनों में पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ ने महत्वपूर्ण खुलासे किए हैं। उन्होंने दावा किया कि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस के 22 विधायकों को तोड़कर सरकार गिराई, क्योंकि उन्हें लगा कि डिग्विजय सिंह उनकी सरकार को नियंत्रित कर रहे हैं। इस बयान ने राजनीतिक हलचलों को जन्म दिया है और मध्य प्रदेश की राजनीति में गर्मी बढ़ा दी है।

कमल नाथ ने हाल ही में एक पॉडकास्ट में यह बातें साझा कीं। उन्होंने कहा कि डिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच असहमति विचारधारा की नहीं, बल्कि व्यक्तित्व की थी। सीनियर कांग्रेस नेता डिग्विजय सिंह ने भी कहा कि उन्होंने दोनों पक्षों के बीच कई बार मध्यस्थता की प्रयास किए थे।

उद्योगपतियों के साथ हुई मीटिंग में कई मुद्दों पर सहमति बनी, जिसमें ग्वालियर-चंबल डिवीजन से संबंधित समस्याओं का समाधान करने के लिए एक ‘विशलिस्ट’ तैयार की गई थी। डिग्विजय सिंह ने बताया कि उन्होंने भी सहमति की सूची पर हस्ताक्षर किए थे, लेकिन इसके बाद किसी प्रकार का पालन नहीं हुआ। इससे विवाद बढ़ा और परिणामस्वरूप सरकार गिर गई।

डिग्विजय ने स्पष्ट किया कि उन्होंने पहले ही चेतावनी दी थी कि अगर यही स्थिति रही, तो सरकार नहीं बचेगी। इस प्रकार इन बयानों ने राजनीतिक माहौल को और गर्म कर दिया है।

कमल नाथ ने सोशल मीडिया पर लिखा कि 2020 में उनकी कांग्रेस सरकार के पतन के बारे में जो भी बयान चल रहे हैं, उनमें कोई लाभ नहीं। लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा के चलते सरकार को गिराने का कदम उठाया।

सरकार का गठन और पतन

2018 में मध्य प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 114 सीटें हासिल कीं और सत्ता में वापसी की। इस चुनाव में भाजपा को 109 सीटें मिलीं थीं। बीएसपी, एसपी और कुछ निर्दलीय विधायकों का समर्थन लेकर कमल नाथ ने सरकार बनाई। लेकिन मार्च 2020 में, केवल डेढ़ साल बाद ही, ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस छोड़कर 22 विधायकों के साथ भाजपा का दामन थामा, जिससे कमल नाथ की सरकार अल्पसंख्यक रह गई और 20 मार्च 2020 को गिर गई।

भाजपा ने इस दिवस पर कमल नाथ के बयानों पर प्रतिक्रिया व्यक्त की है। पार्टी के राज्य मीडिया में-चार्ज आशीष अग्रवाल ने कहा कि अब ये साफ हो गया है कि कांग्रेस की सरकार को डिग्विजय सिंह चला रहे थे और इसके तहत माफिया और भ्रष्टाचार का बोलबाला था।

इस प्रकार, ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भाजपा में शामिल होने के बाद स्थिर सरकार का निर्माण किया, जिसका हकदार उन्होंने खुद को मानते हुए यह कदम उठाया। भाजपा के मीडिया में-चार्ज ने यह भी कहा कि कमल नाथ का बयान कांग्रेस के भीतर गुटीय राजनीति और डिग्विजय सिंह के प्रभाव को उजागर करता है।

राजनीति की पेचीदगियां

कमल नाथ का यह बयान निश्चित रूप से मध्य प्रदेश के राजनीतिक परिदृश्य में महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत है। कांग्रेस पार्टी के भीतर की गुटबाज़ी ने एकबार फिर सिस्टम की असली खामियों को उजागर किया है। यह घटनाक्रम दर्शाता है कि कैसे व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएं और गुटीय राजनीति किसी पार्टी की स्थिरता को प्रभावित कर सकती हैं।

कमल नाथ के बयान से यह स्वीकर करना पड़ता है कि डिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच का संघर्ष केवल विचारधारा की नहीं, बल्कि व्यक्तिगत टकराव का परिणाम था। यह स्थिति न केवल कांग्रेस के लिए चुनौती बनी, बल्कि समूची मध्य प्रदेश की राजनीति को हिलाकर रख दिया।

भाजपा का इस मामले में स्टैंड भी काफी स्पष्ट है। उन्होंने कहा है कि कांग्रेस में आंतरिक कलह का यह परिणाम है, जिसके चलते वे सरकार को बरकरार नहीं रख पाए। इसके साथ ही, भाजपा ने इस प्रकार के मुद्दों को भुनाने की कोशिश की है, जिससे वे आगामी विधानसभा चुनाव में बढ़त प्राप्त कर सकें।

कुल मिला कर

मध्य प्रदेश में राजनीतिक घटनाक्रम ने एक नयी दिशा ले ली है। कमल नाथ और डिग्विजय सिंह की बयानबाज़ी ने कांग्रेस पार्टी के अंदर की गुटीय राजनीति को उजागर कर दिया है। सरकार का उत्पन्न होना और फिर गिरना, यह सब अब इतिहास का हिस्सा बन चुका है; लेकिन भविष्य में इसे लेकर क्या रणनीतियाँ अपनायी जाएंगी, यह देखने वाली बात होगी।

यह स्पष्ट है कि कांग्रेस को अपने अंदर की राजनीति पर ध्यान देना होगा और अपनी पार्टी की एकता को बनाए रखना होगा। अगर इसे नहीं किया गया, तो यह भविष्य में भी उनके लिए समस्या का कारण बन सकता है।

भाजपा ने एक मौका अपने लिए तैयार किया है, जिसे वे आगामी चुनावों में भुनाने का प्रयास कर रहे हैं। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि मध्य प्रदेश की राजनीति में स्थिरता बनाए रखना कितना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

इस प्रकार, मध्य प्रदेश की राजनीति में चल रही हलचलें और आरोप-प्रत्यारोप निश्चित रूप से आने वाले समय में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाएंगे और सार्वजनिक जीवन पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा।

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