राजनीतिक

गांव से उठी राजनीतिक बदलाव की नई लहर

त्रिवेंद्र-निशंक के बीच जमी वर्षों पुरानी बर्फ पिघली

राजनीति के रंग हर मोड़ पर बदलते हैं। आज एक-दूसरे के खिलाफ, कल एक साथ। यह चक्र कभी खत्म नहीं होता।

सावन बीत गया, लेकिन राजनीति की बारिश अभी भी जारी है। भाजपा के भीतर हो रहे नेताओं के आचार-व्यवहार ने कई कहानियों को जन्म दिया है। पिछले रविवार को, दो पूर्व मुख्यमंत्री की मुलाकात ने सबको चौंका दिया। इस मिलन के पीछे की कहानी रुचिकर है, क्योंकि ये दोनों नेता पहले कभी एक-दूसरे के करीब नहीं रहे।

ऐतिहासिक संघर्ष

भाजपा की राजनीति में पिछले 25 वर्षों से दोनों नेता एक-दूसरे के खिलाफ उलझे रहे हैं। डोईवाला विधानसभा में इनकी छवि मजबूत रही है। पहले मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने कर्णप्रयाग/थलीसैंण से चुनाव लड़ा, जबकि त्रिवेंद्र सिंह रावत ने डोईवाला से। बाद में, निशंक 2014 में हरिद्वार लोकसभा क्षेत्र में चले गए। वर्तमान में, त्रिवेंद्र के करीबी बृजभूषण गैरोला डोईवाला विधानसभा से विधायक हैं।

राजनीति कब किस दिशा मुड़ जाए

राजनीति में परिवर्तन की गति को कोई नहीं समझ सकता। 2024 के लोकसभा चुनाव में ऐसा ही कुछ हुआ। पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने हरिद्वार से टिकट प्राप्त कर सभी को आश्चर्यचकित कर दिया। भाजपा द्वारा निशंक का टिकट काटकर त्रिवेंद्र को उनकी जगह उम्मीदवार बनाया गया।

इस दौरान दोनों नेताओं के संबंधों में एक अद्भुत परिवर्तन देखने को मिला। त्रिवेंद्र ने निशंक के साथ मिलकर एक नई शुरुआत की। उन्होंने लेखक गांव में जाकर पुरानी कहानियों को नया जीवन दिया।

भाजपा की परिवर्तनशील राजनीति

भाजपा के तीन प्रमुख नेता बीसी खण्डूडी, भगत सिंह कोश्यारी और निशंक की जुगलबंदी ने हमेशा प्रदेश की राजनीति को प्रभावित किया। कभी ये तीन नेता साथ आते थे, कभी अलग होते थे। अब त्रिवेंद्र और अनिल बलूनी का मंच पर आना भी भाजपा की राजनीति में एक नया संकेत बताता है।

जब मुख्यमंत्री धामी थराली के आपदा प्रभावित क्षेत्र में सहायता कार्य कर रहे थे, उसी समय त्रिवेंद्र और निशंक की मिलन की तस्वीर वायरल हो गई। इस बात ने भाजपा की राजनीति में एक नया मोड़ ले लिया।

नए संबंधों की उत्पत्ति

इन दोनों नेताओं के बीच दोस्ती के पीछे कई कारण हैं। कुछ मुद्दों और चर्चित विवादों ने इन्हें एक साथ लाने का काम किया। राजनीतिक परिस्थिति ने इनकी मजबूरी बढ़ा दी।

राजनीति में दुश्मनी भी दोस्ती का रूप ले सकती है। हर मोड़ पर नए किस्से जन्म लेते हैं। यह न केवल जटिल है, बल्कि व्यावहारिक भी।

निष्कर्ष

त्रिवेंद्र और निशंक का मिलन एक नई अध्याय का आरंभ करता है। इस राजनीति के बदलते समीकरणों ने सभी को सोचने पर मजबूर कर दिया है। भविष्य में और क्या परिवर्तन आएंगे, यह देखना दिलचस्प होगा।

राजनीति की इस जादुई दुनिया में, जहां दुश्मन पल भर में दोस्त बन जाते हैं, वहीं दोस्त भी पल भर में दुश्मन। हमें बस यह समझना है कि राजनीति हमेशा बदलती रहती है, और यह परिवर्तन किसी भी दिशा में जा सकता है।

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