सांसद ने कहा, भगवान कृष्ण का चरित्र मखानचोर नहीं, बल्कि उनके लीलाओं पर निर्भर है: मथुरा में धर्मचर।

मध्य प्रदेश सरकार का माखन चोर अभियान
मध्य प्रदेश सरकार का एक नया अभियान सामने आया है जिसमें वह भगवान श्री कृष्ण से जुड़े “माखन चोर” के नाम को हटाने की कोशिश कर रही है। इस कदम का विरोध ब्रज क्षेत्र के संतों और धर्माचार्यों ने किया है। उनका मानना है कि भगवान कृष्ण को “माखन चोर” कहने का अर्थ ही उनकी लीलाओं को समझने में है।
धर्माचार्य का कहना है कि श्रीमद्भागवत में भगवान कृष्ण की माखन चोरी की लीलाओं का वर्णन किया गया है। यदि इस नाम को हटाया जाता है, तो इसका मतलब होगा कि उन लीलाओं को नकारा जाना। यह केवल एक नाम नहीं है, बल्कि यह भगवान श्री कृष्ण की महिमा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
भगवान कृष्ण का नाम
भगवान श्री कृष्ण का जन्म मथुरा में हुआ, और उन्हें अनेक नामों से जाना जाता है। ब्रजवासी उन्हें प्यार से माखन चोर कहते हैं। यह नाम उनकी लीलाओं को दर्शाता है, जिसमें वे माखन की चोरी करते हैं। इस नाम को हटाने का निर्णय संतों को काफी चौंका रहा है।
आचार्य श्रीदुल कांत शास्त्री ने सरकार की इस योजना पर तंज किया है। उन्होंने कहा कि यदि मध्य प्रदेश सरकार “माखन चोर” शब्द को गलत ठहराती है, तो इसका मतलब होगा कि श्रीमद्भागवत की पूरी घटना झूठी साबित हो जाएगी।
बुंदेल खंड से ध्यान आकर्षण
संतों के अनुसार, मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार खुद को “राष्ट्र धर्म” की सरकार के रूप में प्रस्तुत करती है। इस्लिय, राज्य के मुख्यमंत्री मोहन यादव जो कि यादुवंशी हैं, उन्हें भगवान कृष्ण का भक्त माना जाता है। इसके बावजूद, यह आश्चर्यजनक है कि वे भगवान की लीलाओं को समझने में असफल हो रहे हैं।
धर्माचार्य ने बताया कि वे लोग जो माखन चोर शब्द का विरोध कर रहे हैं, वे उस प्रेम और भक्ति को नहीं समझते जो ब्रजवासियों के लिए महत्वपूर्ण है।
राधे-राधे का जाप
आचार्य ने जोर देते हुए कहा कि यदि सरकार को इस मामले को समझना है, तो उन्हें “राधे-राधे” का जाप करना होगा। इसका मतलब है कि केवल ब्रज भूमि की आत्मा और उसकी भक्ति को समझकर ही इस मामले का सही समाधान पाया जा सकता है।
जब तक ब्रज की लीलाओं का सही रूप में सम्मान नहीं किया जाएगा, तब तक यह समस्या बनी रहेगी। सरकार को यह समझने की ज़रूरत है कि भागवत में वर्णित लीलाएं ही सच्चे भक्ति के प्रतीक हैं।
माखन चोर का महत्व
भागवत के प्रवक्ता मनोज मोहन शास्त्री का कहना है कि अगर “माखन चोर” शब्द हटा दिया जाता है, तो इसका मतलब होगा कि सभी संस्कृतिपूर्ण छंद और कविताएँ बेकार हो जाएंगी। यह संस्कार और श्रद्धा का विषय है।
उनका यह भी कहना था कि “माखन चोर” का अर्थ केवल चोरी नहीं है, बल्कि यह एक प्रेम की प्रतीक है। जब कोई भक्ति और प्रेम से भरपूर होता है, तब वह अपने प्रियतम से कुछ भी मांग सकता है, चाहे वह कुछ भी हो।
सनातन धर्म की रक्षा
आनंद बलभ गोस्वामी, जो बैंके बिहारी जी मंदिर की सेवा करते हैं, ने कहा कि यह योजना केवल सनातन धर्म को समाप्त करने के लिए बनाई गई है। उनका viewpoint स्पष्ट है कि भक्तों की भावना और प्रेम को झूठा नहीं ठहराया जा सकता।
उन्होंने उदाहरण दिया कि कैसे भक्त प्रतिदिन भगवान के लिए लड्डू बनाते हैं और यह मानते हैं कि भगवान उसे चुराते हैं। यह भावनाएँ उनकी भक्ति को और मजबूत बनाती हैं।
विद्वान का दृष्टिकोण
विद्वान विनय त्रिपाठी ने इस मुद्दे पर अपने विचार व्यक्त किए कि यह महत्वपूर्ण नहीं है कि भगवान को “माखन चोर” कहा जाता है, बल्कि यह महत्वपूर्ण है कि कौन इसे कह रहा है।
उनका यह भी कहना है कि यह एक अनंतकाल की परंपरा है, और इसे स्वीकार करना चाहिए। जब कोई महत्वपूर्ण व्यक्ति इसे कहता है, तो इसकी गंभीरता और बढ़ जाती है।
इस प्रकार, माखन चोर का नाम केवल एक शब्द नहीं है, बल्कि यह भक्तों के हृदय का प्रतीक है। इसे हटाने से केवल भक्तों की भावनाओं को ठेस ही पहुँचाई जाएगी, बल्कि यह भगवान कृष्ण की लीलाओं को भी नकारने जैसा होगा। इसलिए, इसे समझना और मान्यता देना अत्यंत आवश्यक है।
निष्कर्ष
यह स्पष्ट है कि भगवान श्री कृष्ण का “माखन चोर” नाम केवल एक उपाधि नहीं, बल्कि एक गहरा अर्थ रखता है। संतों और विद्वानों की राय को सुनना और समझना मददगार होगा। हम सभी को प्रेम, भक्ति और समर्पण के इन मूल्यों को सहेजने की आवश्यकता है।