स्वास्थ्य

गोरखपुर में यकृत रोगियों के लिए राहत: दो सरल परीक्षणों से होगी बीमारी की पहचान

गोरखपुर में अब लिवर रोग का पता लगाने के लिए केवल दो सस्ते परीक्षणों की आवश्यकता है। बीआरडी मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों के एक अध्ययन में यह सामने आया है कि सीरम यूरिक एसिड और विटामिन डी का परीक्षण यकृत रोग की गंभीरता को समझने में मदद कर सकता है। इससे पहले, यकृत रोग की पहचान के लिए सात से आठ विभिन्न परीक्षणों की आवश्यकता होती थी। यह नई विधि न केवल सस्ती है बल्कि रोगियों को त्वरित परिणाम भी उपलब्ध कराएगी, जिससे उन्हें तत्काल राहत मिल सकेगी।

डॉक्टर गजधर द्विवेदी के अनुसार, लिवर रोगों की गंभीरता को जानने के लिए महंगा और लंबा परीक्षण करना अब अतीत की बात हो गई है। बस दो सस्ते परीक्षणों के द्वारा रोगियों की स्थिति का आकलन किया जा सकेगा। यह अध्ययन BRD मेडिकल कॉलेज के चिकित्सा विभाग के चिकित्सकों द्वारा किया गया है, जिसमें डॉक्टर गणेश ने एक वर्ष तक लिवर के रोगियों का विश्लेषण किया।

इस अध्ययन में दो सौ रोगियों को शामिल किया गया था। पहले उपयोग में लाए गए पारंपरिक तरीकों की तुलना में, नए तरीकों की प्रभावशीलता भी देखी गई। पहले आठ परीक्षणों के बाद, रोगियों को स्कोर दिया जाता था। अध्ययन में यह पाया गया कि नए तरीके से केवल सीरम यूरिक एसिड और 25-हाइड्रॉक्सी विटामिन डी की जांच करने से भी परिणाम समान निकले।

नए तरीके में सिर्फ दो जांचें की गई थीं, जबकि पुराने परीक्षण में कई अन्य तत्वों को भी शामिल किया जाता था, जैसे सोडियम, बिलिरुबिन, एसजीओटी, एसजीपीटी, सीरम क्रिएटिनिन, पीटीआईएनआर और एलब्यूमिन। पुराने तरीके से जाँच करने में समय और संसाधनों की अधिक आवश्यकता थी, जबकि नए तरीके ने इन सबका समाधान किया।

अध्ययन में यह भी पाया गया कि जिन रोगियों में लिवर की गंभीरता अधिक थी, उनमें सीरम यूरिक एसिड का स्तर अधिक और विटामिन डी का स्तर कम था। इन रोगियों को सुधार के लिए दवाएं दी गईं, जिससे उन्हें तुरंत राहत मिली।

अध्यन के दौरान यह देखा गया कि 41 से 60 वर्ष के रोगियों की संख्या सबसे अधिक थी, जबकि 18 से 40 वर्ष की आयु के रोगियों की संख्या 72 थी और 60 वर्ष से अधिक की आयु के रोगियों की संख्या 26 थी।

इसी प्रकार, अध्ययन में शामिल अधिकांश रोगी पुरुष थे, जिनकी संख्या 196 थी, जबकि महिलाओं की संख्या केवल चार थी। विशेषज्ञों का मानना है कि शराब का सेवन लिवर रोग का एक प्रमुख कारण है, और यह प्रायः पुरुषों में अधिक पाया जाता है।

डॉ. राजकिशोर सिंह, जो इस अध्ययन में शामिल थे, ने बताया कि हर साल अध्ययन किए जा रहे हैं ताकि रोगियों के हितों को ध्यान में रखते हुए नई तकनीकों का विकास किया जा सके। इस अध्ययन के परिणामों ने न केवल डॉक्टरों को मार्गदर्शन किया बल्कि मरीजों को सस्ते परीक्षणों और उपचार के विकल्प भी प्रदान किए हैं।

डॉ. गणेश ने कहा कि लिवर की बीमारी समृद्ध और गरीब में भेदभाव नहीं करती। इसका पता लगाने के लिए सस्ते विधियों का उपयोग अत्यंत आवश्यक था, और परिणाम अत्यंत उत्साहजनक रहा। सीरम यूरिक एसिड और विटामिन डी के परीक्षणों से लिवर की गंभीरता का पता चल पाया।

इस प्रकार, गोरखपुर में लिवर रोग की पहचान का यह नया तरीका न केवल खर्च का बोझ कम करता है बल्कि रोगियों को शीघ्र उपचार प्राप्त करने में भी मदद करता है। इससे भविष्य में उपचार की प्रक्रिया और भी सरल और प्रभावी हो सकती है।

उम्मीद है कि इस अध्ययन से यकृत रोग के इलाज और उसके प्रबंधन में नई दिशा मिलेगी, जिससे अधिक से अधिक लोगों को फायदा हो सकेगा। ऐसे सस्ते और त्वरित परीक्षणों की सुविधा से न केवल स्वास्थ्य बुनियाद मजबूत होगी बल्कि मरीजों की जिंदगी में भी सुधार आएगा।

इस अध्ययन के परिणाम सामाजिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कदम हैं। यकृत से संबंधित बीमारियों का पता लगाना अब पहले से कहीं ज्यादा आसान हो गया है। यह केवल एक नई विधि नहीं है, बल्कि भारतीय चिकित्सा प्रणाली के लिए एक प्रमाण है कि सस्ती और प्रभावी तकनीकें विकसित की जा सकती हैं। ऐसे परीक्षणों के माध्यम से हजारों रोगियों की जिदंगी में सुधार संभव है।

सभी के लिए यह उपयोगी है कि वे नियमित रूप से अपने स्वास्थ्य की जांच कराते रहें और लिवर की बीमारी के लक्षणों को नजरअंदाज न करें। प्रारंभिक पहचान और उपचार से बीमारी की गंभीरता को नियंत्रित किया जा सकता है।

अंत में, यह कहा जा सकता है कि गोरखपुर में लिवर रोग की पहचान के लिए किए गए इस अध्ययन के फलस्वरूप, स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक नई उम्मीद जागी है। सभी के लिए यह एक सीख है कि सस्ता और प्रभावी इलाज संभव है और यह हमारे स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का समय है।

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