स्वास्थ्य

विटामिन डी की कमी सामान्य है; पूरक का अत्यधिक सेवन नुकसानदायक हो सकता है, जानें कारण।

विटामिन डी: कमी, महत्व और स्रोत

विटामिन डी का महत्व

हाल के वर्षों में, विटामिन डी का मुद्दा स्वास्थ्य से जुड़े कई चर्चाओं का केंद्र बन गया है। इसकी कमी से कई प्रकार की बीमारियाँ उत्पन्न होती हैं, जिससे स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। विटामिन डी एक महत्वपूर्ण माइक्रोन्यूट्रिएंट है, जिसे शरीर में कई प्रकार के कार्यों के लिए आवश्यक माना जाता है।

1930 के दशक में जब पहली बार विटामिन डी की रासायनिक संरचना को पहचाना गया, तब से इसके स्वास्थ्य पर प्रभाव पर अध्ययन में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है। प्रारंभ में, इसके अध्ययन का ध्यान कैल्शियम होमोस्टैसिस और हड्डियों के चयापचय पर केंद्रित था।

विटामिन डी की कमी के प्रभाव

1968 में, विटामिन डी के चयापचय रूपों पर अनुसंधान का विस्तार किया गया, जो प्रतिरक्षा संबंधित रोगों और इसके अन्य प्रभावों को स्पष्ट करता है। वास्तव में, विटामिन डी की कमी को कोविड-19 संक्रमण के लिए जोखिम बढ़ाने से जोड़ा गया है। यह स्पष्ट है कि विटामिन डी हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को विनियमित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

वर्तमान आंकड़ों के अनुसार, यूरोप की 40% आबादी को पर्याप्त विटामिन डी नहीं मिल रहा है। अमेरिका में 24% लोग विटामिन डी की कमी का सामना कर रहे हैं, और कनाडा में यह आंकड़ा 37% है। गर्भवती महिलाएं, बच्चे, बुजुर्ग, मोटे लोग, और गहरे रंग की त्वचा वाले लोग इस कमी के लिए सबसे अधिक जोखिम में रहते हैं।

विटामिन डी का संश्लेषण

मनुष्य अपनी त्वचा में कोलेस्ट्रॉल के माध्यम से विटामिन डी का संश्लेषण कर सकते हैं, बशर्ते कि वे पर्याप्त सूर्य के प्रकाश के संपर्क में आएं। हालांकि, हर व्यक्ति के लिए उचित समय निर्दिष्ट करना मुश्किल है। यह कई विवरणों, जैसे कि मौसम, दिन का समय, भौगोलिक स्थिति, उम्र, और त्वचा के प्रकार पर निर्भर करता है।

विशेषज्ञों का सुझाव है कि हल्की त्वचा वाले लोग मार्च से अक्टूबर के दौरान हर दिन 15 मिनट तक धूप में रहना चाहिए। वृद्धों और ऑस्टियोपोरोसिस से प्रभावित व्यक्तियों के लिए यह समय 30 मिनट तक बढ़ा दिया जाना चाहिए। इसके अलावा, विटामिन डी के अच्छे आहार स्रोतों में तैलीय मछली, दूध उत्पाद, और गढ़वाले वनस्पति पेय शामिल हैं।

विटामिन डी की कमी के कारण

विटामिन डी की कमी के कुछ सामान्य कारणों में नियमित रूप से सनस्क्रीन का उपयोग और वसायुक्त खाद्य पदार्थों का कम सेवन शामिल हैं। इसके अलावा, विटामिन डी के स्तर का सही आकलन करने के लिए 25(OH)D के सीरम सांद्रता का निर्धारण किया जाना चाहिए। सामान्य जनसंख्या के लिए, प्रति मिलीलीटर 20 नैनोग्राम से अधिक मूल्य को मानक माना जाता है।

65 वर्ष से अधिक उम्र के व्यक्तियों के लिए, विटामिन डी के स्तर का मूल्य 30 नैनोग्राम/मिलीलीटर से अधिक होना चाहिए। यह खासकर उन व्यक्तियों के लिए महत्वपूर्ण है, जो हड्डियों से संबंधित समस्याओं का सामना कर रहे हैं या अन्य दवाओं का सेवन कर रहे हैं।

विटामिन डी सप्लीमेंट्स

हाल के शोधों के अनुसार, स्वस्थ व्यक्तियों में विटामिन डी की खुराक की आवश्यकता पर बहस जारी है। एक मेटा-विश्लेषण ने पता लगाया कि प्रतिदिन 1,000-2,000 अंतर्राष्ट्र्ीय इकाइयाँ (IU) देने से प्रतिरक्षा प्रणाली के कार्य में सुधार नहीं किया गया। यद्यपि सप्लीमेंट्स के सेवन से कुछ लाभ हो सकते हैं, फिर भी इसका अनुप्रयोग सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए।

विटामिन डी की अधिकता

यदि विटामिन डी का सेवन भोजन के माध्यम से हो रहा है, तो अधिकता की समस्या कम होती है। लेकिन यदि लोग आहर विटामिन डी के सप्लीमेंट का अत्यधिक सेवन करते हैं, तो इससे विषाक्तता का जोखिम बढ़ सकता है। इसलिए, पूरक का उपयोग सतर्कता से करना आवश्यक है।

निष्कर्ष

भविष्य में विटामिन डी की कमी और उसके स्वास्थ्य पर प्रभाव को जानने के लिए और अनुसंधान की आवश्यकता है। यह हमारे लिए आवश्यक है कि हम विटामिन डी के स्तर की नियमित जांच कराएं और इस महत्वपूर्ण पोषक तत्व की उचित मात्रा को सुनिश्चित करें। इसके लिए, आपको अपने दैनिक जीवन में धूप प्राप्त करना और संतुलित आहार का सेवन करना चाहिए।

समझदारी से विटामिन डी के सेवन से आप अपने शरीर को कई बीमारियों से बचा सकते हैं और स्वास्थ्य को बेहतर बना सकते हैं। अपनी सेहत की जिम्मेदारी उठाते हुए, विटामिन डी के सही स्तर को बनाए रखने के लिए कदम उठाना चाहिए।

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