कांग्रेस ने भारत-पाक मैच पर BJP को घेरा, बहनों के सिंदूर पर उठे सवाल

एशिया कप 2025 में भारत-पाकिस्तान क्रिकेट मैचों को लेकर सियासी हलचल तेज हो गई है। विपक्षी दलों ने सरकार पर कई सवाल उठाए हैं, जबकि भाजपा और उसके सहयोगी दल पलटवार करने में जुटे हैं। विपक्ष ने इन मैचों को रद्द करने की मांग की है। इस बीच, शिवसेना (यूबीटी) के नेता संजय राउत ने चेतावनी दी है कि अगर महाराष्ट्र में भारत-पाकिस्तान के मैच आयोजित होते हैं, तो शिवसेना उसमें व्यवधान डालने के लिए तैयार है।
‘ये कैसी देशभक्ति है?’
कांग्रेस सांसद इमरान मसूद ने सरकार पर तीखा हमला करते हुए कहा, “जब हमारी बहनों का सिंदूर उजड़ रहा था, जवान शहीद हो रहे थे, तब सरकार को सिर्फ क्रिकेट से धंधा करना था। पाकिस्तान के कलाकारों को टीवी और फिल्मों में बैन कर दिया गया, लेकिन क्रिकेट से पैसे कमाने के लिए उन्हें हरी झंडी दे दी गई। ये कैसी देशभक्ति है? क्रिकेट से सीधा फायदा सरकार और इसके करीबी लोगों को होता है, इसलिए कभी रोक नहीं लगती।”
‘पाकिस्तान जानता है कि भारत उसका बाप है’
महाराष्ट्र सरकार के मंत्री नितेश राणे ने विपक्षी दलों को जवाब देते हुए कहा, “बीजेपी और आरएसएस राष्ट्रभक्त संगठन हैं, हमें विपक्ष से राष्ट्रभक्ति सीखने की जरूरत नहीं है। मोदी सरकार पाकिस्तान को औकात में रखना जानती है। क्रिकेट का मैदान हो या कुछ और, पाकिस्तान जानता है कि भारत उसका बाप है। विपक्ष क्या कहता है, इससे फर्क नहीं पड़ता, लेकिन डर इस बात का है कि कहीं क्रिकेट के दौरान विपक्ष वाले बुर्का पहनकर पाकिस्तान के नारे न लगाने लगें।”
‘सिर्फ क्रिकेट ही नहीं, आना-जाना भी बंद हो’
समाजवादी पार्टी के विधायक अबू आजमी ने सरकार की नीति पर निशाना साधते हुए कहा, “26 बहनों का सिंदूर उजड़ गया, पाकिस्तान के साथ युद्ध भी हुआ, लेकिन अब ये लोग मैच खेलने जा रहे हैं। दाल में काला है या दाल ही काली है? ये जनता को बेवकूफ बना रहे हैं। सिर्फ क्रिकेट ही नहीं, पाकिस्तान से आना-जाना भी बंद होना चाहिए, अगर वह हमारे देश में ऐसे हमले करता है।”
संजय राउत ने दी चेतावनी
शिवसेना (यूबीटी) के सांसद संजय राउत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर भारत-पाकिस्तान मैचों को रद्द करने की मांग की। उन्होंने कहा, “खबर है कि केंद्र सरकार ने एशिया कप में भारत-पाक मैचों को मंजूरी दे दी है। यह भारतीयों के लिए बेहद दुखद है। यह पीएम और गृहमंत्रालय की मंजूरी के बिना संभव नहीं था। जब संघर्ष जारी है, तो पाकिस्तान के साथ क्रिकेट कैसे खेला जा सकता है? पीएम ने कहा था कि खून और पानी साथ-साथ नहीं बह सकते, तो अब खून और क्रिकेट साथ-साथ कैसे बहेंगे? पाकिस्तान के साथ मैच खेलना हमारे शहीद जवानों के साहस और बलिदान का अपमान है।” राउत ने भी चेतावनी दी कि “अगर ये मैच महाराष्ट्र में होते, तो यूबीटी शिवसेना उन्हें रोक देती।”
सभी राजनीतिक दलों के नेता इस मुद्दे पर अपने-अपने विचार प्रकट कर रहे हैं। जबकि एक पक्ष इसे राष्ट्रीय गौरव और सम्मान से जोड़ रहा है, वहीं दूसरा पक्ष इसे सुरक्षा और भावनाओं के दृष्टिकोण से देख रहा है।
भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट मैच हमेशा से ही तनावपूर्ण हालात को जन्म देते रहे हैं। इस बार भी, जैसे ही एशिया कप की घोषणा हुई, राजनीतिक हलचल तेज हो गई। इन मैचों के आयोजन को लेकर स्पष्ट प्रतिक्रियाें सामने आई हैं।
सभी जानते हैं कि क्रिकेट, खासकर भारत और पाकिस्तान के बीच होने वाले मैचों को लेकर जनता की भावना कितनी प्रबल होती है। इसलिए इसे केवल एक खेल के रूप में नहीं देखा जा सकता। इस खेल के हर मैच में न केवल खिलाड़ी, बल्कि समर्थक भी अपने देश के लिए एक अलग भावनात्मक जुड़ाव रखते हैं।
हाल ही में, कुछ नेताओं का तर्क है कि क्रिकेट के मैदान पर भी जब तक पाकिस्तान में आतंकवादी गतिविधियां रुकेंगी नहीं, तब तक ऐसे मैचों का आयोजन ठीक नहीं है। उनका मानना है कि भारत की सुरक्षा और सेना का जो बलिदान है, उसे इस प्रकार के आयोजनों के माध्यम से नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।
विपक्षी दलों ने ये भी कहा है कि सरकार को पाकिस्तान के साथ कार्यक्रमों की अनुमति नहीं देनी चाहिए, क्योंकि इससे देश की सुरक्षा और उसके न्यायिक बलिदान को शर्मिंदा किया जा रहा है।
सरकार का तर्क है कि खेल एक ऐसा माध्यम है जो देशों के बीच संबंधों को मजबूत कर सकता है। लेकिन क्या यह तर्क तब मजबूत होता है जब सामने ऐसे देश हों जो हमारे खिलाफ सक्रिय रूप से काम कर रहे हों? क्या क्रिकेट केवल एक खेल है, या यह एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ की राजनीति और जनता की भावनाएँ भी गहरी जुड़ी हैं?
संजय राउत और अन्य नेताओं ने स्पष्ट रूप से अपने बयानों में भारत-पाकिस्तान क्रिकेट मैचों को रद्द करने की मांग की है। इसके पीछे स्पष्ट कारण ये हैं कि वे मानते हैं कि शहीदों की कुर्बानी के प्रति सम्मान दिखाने का ये भी एक तरीका है।
इस मामले में आम जनता की राय भी महत्वपूर्ण होगी। क्या वे ऐसे मैचों का समर्थन करते हैं या उनकी भावनाएँ सरकार के इन बयानों के अनुरूप हैं? ऐसे पाठक जो इस विषय पर अधिक विचारशील हैं, उन्हें यह समझना होगा कि क्रिकेट के मैदान को राजनीति से बाहर रखकर खेलों को सिर्फ एक खेल के रूप में देखना आवश्यक है।
लेकिन इस सबके बीच, सरकार और विपक्ष में बहस केवल क्रिकेट तक सीमित नहीं है। यह राष्ट्र की पहचान, सुरक्षा, और उस पहचान की रक्षा की भावना से जुड़ा हुआ है। इसलिए, यह देखा जाना चाहिए कि इस मुद्दे का समाधान क्या निकलता है और इससे क्रिकेट के खेल और भारत-पाकिस्तान के रिश्तों पर क्या असर पड़ता है।
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