भारत ने नेपाल की आपत्ति ठुकराई, कहा- दशकों से लिपुलेख दर्रे से व्यापार जारी है।

भारत ने नेपाल की उस आपत्ति को खारिज कर दिया, जिसमें उसने लिपुलेख दर्रा के माध्यम से भारत और चीन के बीच सीमा व्यापार की बहाली पर सवाल उठाया था। विदेश मंत्रालय ने काठमांडू के इस व्यापार मार्ग पर नेपाल के क्षेत्रीय दावे को असंगत और ऐतिहासिक तथ्यों व साक्ष्यों पर आधारित नहीं करार दिया।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने स्पष्ट किया कि भारत 1954 से लिपुलेख दर्रा के माध्यम से चीन के साथ व्यापार करता आ रहा है। उन्होंने कहा कि भारत नेपाल के साथ संवाद और कूटनीति के जरिए सीमा संबंधी मुद्दों को सुलझाने के लिए रचनात्मक बातचीत के लिए हमेशा तैयार है।
‘1954 में शुरू हुआ था व्यापार’
प्रवक्ता ने कहा, “लिपुलेख दर्रा के संबंध में हमारा रुख सुसंगत और स्पष्ट रहा है। भारत और चीन के बीच लिपुलेख दर्रा के माध्यम से सीमा व्यापार 1954 में शुरू हुआ था और दशकों से चल रहा है। हाल के वर्षों में कोविड और अन्य घटनाओं के कारण इस व्यापार में व्यवधान आया था और अब दोनों पक्षों ने इसे फिर से शुरू करने पर सहमति जताई है।”
‘बातचीत को तैयार है भारत’
उन्होंने आगे कहा, “क्षेत्रीय दावों के संबंध में हमारा रुख है कि ऐसे दावे न तो उचित हैं और न ही ऐतिहासिक तथ्यों और साक्ष्यों पर आधारित हैं। क्षेत्रीय दावों का कोई भी एकतरफा कृत्रिम विस्तार असंगत है। भारत नेपाल के साथ सहमति से बकाया सीमा मुद्दों को संवाद और कूटनीति के माध्यम से हल करने के लिए रचनात्मक बातचीत को तैयार है।”
ये बयान नेपाल द्वारा भारत और चीन के बीच लिपुलेख के रास्ते व्यापार मार्ग खोलने के समझौते पर आपत्ति जताने और इस क्षेत्र पर अपने दावे को दोहराने के बाद आया है। भारत-नेपाल संबंधों में लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा जैसे क्षेत्रों को लेकर लंबे वक्त से असहमति बनी हुई है।
भारत और नेपाल के बीच यह विवाद केवल सीमा संबंधी मुद्दों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह दोनों देशों के बीच गहरे सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंधों की भी परछाई है। भारत और नेपाल की सीमाएँ भले ही राजनीतिक दृष्टिकोण से परिभाषित हैं, लेकिन इन सीमाओं में दोनों देशों के लोगों के बीच व्यापार, संस्कृति और परंपराओं का आदान-प्रदान हमेशा से चलता आ रहा है।
नेपाल के साथ भारत के संबंध काफी प्राचीन हैं। दोनों देशों के बीच में न केवल भू-राजनीतिक मुद्दे हैं, बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक संबंध भी हैं। नेपाल कई ऐसी परंपराओं और सांस्कृतिक धरोहरों का धनी है, जो भारत के साथ जुड़ी हुई हैं।
भारत की ओर से नेपाल के प्रति हमेशा सकारात्मक दृष्टिकोण रहा है। भारत ने विभिन्न क्षेत्रों में नेपाल को आर्थिक और तकनीकी सहयोग प्रदान किया है। हालांकि, जब बात सीमा विवाद की आती है, तो यह संबंध थोड़े तनावपूर्ण हो जाते हैं।
भारत और नेपाल के बीच लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा जैसे क्षेत्र हमेशा से विवाद का केंद्र रहे हैं। इन क्षेत्रों को लेकर दोनों देशों के बीच कई बार संवाद और वार्ता का प्रयास किया गया है, लेकिन अब तक कोई ठोस समाधान नहीं निकल सका है।
सीमा विवाद का यह मुद्दा दोनों देशों के लिए न केवल राजनीतिक बल्कि रणनीतिक दृष्टिकोन से भी महत्वपूर्ण है। भारत के लिए यह सीमाएँ न केवल सुरक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि आर्थिक गतिविधियों के लिए भी अत्यावश्यक हैं। वहीं, नेपाल के लिए भारतीय क्षेत्र के करीब रहना आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए लाभदायक हो सकता है।
नेपाल का यह कहना कि लिपुलेख दर्रे के माध्यम से व्यापार को पुनः स्थापित करने पर आपत्ति जताई गई है, यह उसकी अपनी राष्ट्रीयता और आत्मसम्मान का प्रतीक है। नेपाल ने यह संकेत दिया है कि वह अपने क्षेत्रीय दावों को किसी भी कीमत पर छोड़ने को तैयार नहीं है।
भारत ने हमेशा से नेपाल के क्षेत्रीय मुद्दों को सम्मान दिया है, लेकिन यह भी स्पष्ट किया है कि वह ऐसे दावों का समर्थन नहीं करेगा जो ऐतिहासिक और वास्तविकताओं से परे हैं।
निष्कर्ष के रूप में, दोनों देशों के बीच संवाद और कूटनीति आवश्यक है। सीमाओं के विवाद को सुलझाने के लिए रचनात्मक बातचीत को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, ताकि दोनों देश आपसी विश्वास और सहयोग को आगे बढ़ा सकें।
अगर बातचीत में सकारात्मकता और ईमानदारी बनी रहे, तो निश्चित रूप से ये मुद्दे हल किए जा सकते हैं और भारत-नेपाल संबंधों को नई दिशा मिल सकती है। दोनों देशों की समझ और सहयोग से ही विकास संभव है।