अमेरिका के टैरिफ संकट: डोनाल्ड ट्रम्प और ब्रिक्स पर दिल्ली के पास उपलब्ध विकल्पों का विश्लेषण

भारत की रणनीतिक स्थिति और अमेरिका के व्यापार टैरिफ पर प्रतिक्रिया
भारत और अमेरिका के मध्य व्यापारिक संबंधों में हालिया उतार-चढ़ावों ने वैश्विक राजनीति में एक नया मोड़ लाया है। भारतीय प्रधानमंत्री ने स्पष्ट कर दिया है कि वह अपने देश के हितों की रक्षा के लिए किसी भी तरह से समझौता नहीं करेंगे। भारत के प्रति अमेरिकी टैरिफ के शासन ने इस बहस को और बढ़ा दिया है।
अमेरिकी टैरिफ का प्रभाव
हाल ही में, अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारतीय माल पर 25 प्रतिशत का व्यापार टैरिफ और रूसी तेल खरीद पर भी एक समान जुर्माना लगाया। ऐसे में, भारतीय माल पर अमेरिकी टैरिफ की कुल दर 50 प्रतिशत तक पहुँच गई है। यदि यह स्थिति बनी रहती है, तो भारत एकमात्र ऐसा देश होगा जिस पर सबसे अधिक अमेरिकी टैरिफ लागू होगा। इस प्रकार के फैसले का सीधा प्रभाव भारत के कपड़ा, फार्मा, स्टील और विनिर्माण क्षेत्र पर देखा जा सकता है।
इसके बावजूद, भारतीय नेतृत्व इन टैरिफ को एकतरफा और अन्यायपूर्ण मानता है। भारतीय प्रधानमंत्री ने स्पष्ट किया है कि वह किसानों, मजदूरों और घरेलू उद्योगों की रक्षा के लिए किसी भी कीमत पर त्याग नहीं करेंगे।
भारत के विकल्प
रिचर्ड मार्टिन जैसे विशेषज्ञों का मानना है कि भारत ने अमेरिका के सामने घुटने टेकने से इनकार किया है। भारत की तय की गई नीति यह दर्शाती है कि देश अपनी स्वतंत्रता को महत्व देता है। उनका कहना है कि भारत अमेरिकी दबाव में नहीं है और उसके पास कई वैकल्पिक रणनीतिक रास्ते हैं। इसी के चलते, भारत ने अमेरिका से हथियारों के सौदों को रोक दिया है, जो एक बड़ा संकेत है कि भारत अपने तरीके से कार्य करने के लिए तैयार है।
मार्टिन के अनुसार, भारत की ताकत कई मल्टीलेट प्लेटफॉर्म के कारण है जिनमें ब्रिक्स, जी20 और एससीओ शामिल हैं। वर्तमान में, ब्रिक्स देशों में संयुक्त अरब अमीरात, मिस्र, इथियोपिया और इंडोनेशिया शामिल हो चुके हैं, जिससे यह समूह एक बहुत बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है।
BRICS और वैश्विक व्यापार
ब्रिक्स देशों का व्यापार लगभग 40 प्रतिशत वैश्विक व्यापार के बराबर है। भारत अब रूस से हर साल 65-69 बिलियन डॉलर का व्यापार करता है और रूसी तेल के लिए भुगतान रुपये में कर रहा है। इसके अतिरिक्त, भारत और संयुक्त अरब अमीरात के बीच मुद्रा स्वैप प्रणाली तेजी से बढ़ रही है।
इसका मतलब यह है कि भारत पर अमेरिकी डॉलर आधारित दबाव पहले की तरह प्रभावी नहीं है। जब ट्रंप टैरिफ में बढ़ोतरी करते हैं, तो भारत पश्चिमी दिशा में झुकने के बजाय पूर्व और दक्षिण की ओर अपने विकल्पों को सहजता से तलाश सकता है।
भारत की भागीदारी और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला
भारत की भूमिका वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में महत्वपूर्ण है। देश अब दुनिया की 60 प्रतिशत सामान्य दवाओं का निर्यात कर रहा है और 2023-24 में 28 बिलियन डॉलर की दवाओं का निर्यात करने की उम्मीद है। यदि अमेरिका भारतीय दवाओं पर टैरिफ लगाता है, तो इसका भार सीधा अमेरिकी नागरिकों पर पड़ेगा, जहाँ स्वास्थ्य सेवाएँ पहले से ही महंगी हैं।
इसके अलावा, भारत का आईटी और आईसीटी सेवा क्षेत्र अमेरिकी कॉर्पोरेट अर्थव्यवस्था की रीढ़ बना हुआ है। यदि अमेरिका भारतीय सेवाओं पर टैरिफ लागू करता है, तो इसका रिवर्स प्रभाव हो सकता है, जिसकी वजह से अमेरिकी कंपनियों की लागत बढ़ जाएगी और वो भारतीय आईटी प्रतिभाओं के प्रति अनिश्चितता का सामना कर सकती हैं।
मोदी सरकार की कूटनीति
भारत की वर्तमान कूटनीति की दिशा स्पष्ट है। जितना अधिक अमेरिका भारत पर दबाव बनाएगा, भारत उतना ही वैकल्पिक ध्रुवों की ओर बढ़ेगा। ट्रंप का टैरिफ युद्ध अमेरिका की रणनीतिक स्थिति को कमजोर कर सकता है। यदि अमेरिका वास्तव में चाहता है कि भारत उसके साथ रहे, तो उसे टैरिफ नहीं, बल्कि प्रोत्साहन, निवेश और साझा आपूर्ति श्रृंखलाओं की दिशा में कदम उठाने की आवश्यकता है।
निष्कर्ष
भारत की वर्तमान स्थिति व्यापारिक और कूटनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। अमेरिकी टैरिफ से भारत के लिए विभिन्न रणनीतिक विकल्प खुल गए हैं। वैश्विक स्तर पर भारत की बढ़ती भूमिका और उसके सहयोगी देश उसकी ताकत को मजबूत कर रहे हैं। यह स्पष्ट है कि भारत अपने हितों की रक्षा के लिए किसी भी प्रकार की समझौता करने को तैयार नहीं है और न ही वह किसी एक देश पर निर्भर है।
इस बदलते परिदृश्य में, भारत न केवल अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने का प्रयास कर रहा है, बल्कि वैश्विक राजनीति में भी एक महत्वपूर्ण शक्ति के रूप में उभर रहा है। प्रधानमंत्री मोदी की कूटनीतिक दृष्टि और भारत के पास उपलब्ध विकल्प, अमेरिका के टैरिफ के खिलाफ खड़े होने की क्षमता को प्रदर्शित करते हैं।
इसलिए, यह महत्वपूर्ण है कि अमेरिका अपने दृष्टिकोण पर पुनर्विचार करे और भारत के साथ एक सकारात्मक और सहयोगात्मक संबंध स्थापित करने की दिशा में कदम बढ़ाए। ऐसे में, दोनों देशों के लिए एक नई राह खुल सकती है, जो न केवल उनके हित में होगी, बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए भी फायदेमंद साबित होगी।