सुप्रीम कोर्ट ने ईवीएम फिर से गिनने का आदेश दिया, हार गए सरपंच उम्मीदवार के मामले की पूरी जानकारी।

हरियाणा में सरपंच चुनाव: एक कानूनी लड़ाई की कहानी
भारत में चुनावी प्रक्रिया और जन प्रतिनिधियों के चयन में पारदर्शिता सुनिश्चित करना एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। हरियाणा के एक छोटे से गांव बुआना लखू के मोहित कुमार की कहानी इस पर एक उत्कृष्ट उदाहरण है। उनकी कानूनी लड़ाई ने न केवल उनकी व्यक्तिगत जीत को सुनिश्चित किया, बल्कि न्याय प्रणाली पर विश्वास को भी पुनर्जीवित किया।
एक न्यायिक प्रक्रिया की शुरुआत
मोहित कुमार ने जब सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, तो उनकी कानूनी यात्रा की शुरुआत हुई। उनके खिलाफ 2 नवंबर 2022 को हुए ग्राम पंचायत चुनाव में कुलदीप सिंह को विजेता घोषित किया गया था। उस समय, कुलदीप को 313 वोटों से जीत मिली और उन्हें प्रमाण पत्र भी दिया गया। लेकिन मोहित यह मानते थे कि चुनाव में गड़बड़ी हुई है। उन्होंने चुनाव परिणाम को चुनौती देने का निर्णय लिया।
कोर्ट का फैसला
मोहित द्वारा दायर याचिका के बाद, हरियाणा के बुआना लखू गांव में हुए चुनावों की पृष्ठभूमि में गहन जांच शुरू हुई। सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि सभी ईवीएम मशीनों और मतदान से संबंधित रिकॉर्ड को कोर्ट में पेश किया जाए। इससे साफ हुआ कि इस गांव में कुल 3,767 वोट डाले गए थे, जिनमें मोहित ने 1,051 और कुलदीप ने 1,000 वोट प्राप्त किए।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत, दीपांकर दत्ता और एन। कोतिश्वर सिंह की बेंच ने इन परिणामों का पुनरुत्थान किया और कहा, “पहली नज़र में कोई संदेह नहीं है, खासकर जब पूरे पुन: गणना को वीडियोग्राफ किया गया है और परिणाम दोनों पक्षों के प्रतिनिधियों द्वारा हस्ताक्षरित हैं।” यह साफ था कि यह मामला सिर्फ एक चुनावी परिणाम से कहीं अधिक था।
गड़बड़ी की जांच
मोहित ने ध्यान दिलाया कि पूरा विवाद केवल बूथ नंबर 69 के वोटों का था। उन्हें विश्वास था कि उनके वोटों को गलती से कुलदीप के खाते में डाल दिया गया था। इस प्रक्रिया में उनके नाम पर केवल 7 वोट दर्ज किए गए थे, जो कि वास्तव में प्रशासनिक प्रक्रिया में हुई त्रुटि की ओर इशारा कर रहा था।
उन्होंने बताया, “मैंने वोटों की फिर से गिनती के लिए कई बार अधिकारियों से संपर्क किया, और आखिरकार हमें न्याय मिला।” उनका यह बयान न्याय प्रणाली की आवश्यकता और ईमानदारी की एक महत्वपूर्ण नमूना पेश करता है।
मामला क्या था?
मोहित की शिकायत और उनकी कानूनी दलीलें 2025 में उच्च न्यायालय में ध्वस्त हो गईं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में उन्हें सफलता मिली। इस केस ने दिखाया कि अगर किसी भी चुनाव में वोटों की गड़बड़ी होती है तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई करना आवश्यक है।
शुरुआत में, जब कुलदीप ने अपने प्रमाण पत्र का दावा किया, तो उन्हें यह विश्वास था कि एक बार मिली जीत हमेशा के लिए मान्य होगी। लेकिन मोहित ने साबित कर दिया कि सच्चाई को कभी नकारा नहीं किया जा सकता।
जीत का क्षण
अंततः, उनकी कानूनी लड़ाई का फल मिला: सुप्रीम कोर्ट ने मोहित को विजय घोषित किया, और उन्होंने 14 अगस्त को सरपंच के रूप में शपथ ली। इस जीत पर मोहित का कहना था, “मुझे विश्वास है कि मैंने जो सफाई की है, वह लोगों की आशाओं पर खरी उतरेगी।”
इस जीत ने यह साबित कर दिया कि कभी-कभी न्याय की प्रक्रिया में समय लगता है, लेकिन अंततः, सच्चाई की जीत होती है। मोहित ने इस बात पर जोर दिया कि उनकी जीत में कोई राजनीतिक पक्षपात या पार्टी भावना शामिल नहीं थी; यह केवल सच्चाई की लड़ाई थी।
अंत में
मोहित कुमार की कहानी न केवल एक व्यक्तिगत संघर्ष है, बल्कि यह एक larger सामाजिक मुद्दे की पहचान भी है। यह कहानी हरियाणा और पूरे देश में चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता और न्याय की आवश्यकता को उजागर करती है। मोहित की मेहनत, उनके गांव वालों का समर्थन और न्याय प्रणाली पर उनका विश्वास इस बात का जीवंत प्रमाण है कि समाज में सच्चाई और न्याय हमेशा महत्वपूर्ण होते हैं।
छोटे से गांव का यह मामला आज बड़े पैमाने पर राजनीतिक और कानूनी चर्चा का विषय बन गया है। यह हमें यह याद दिलाता है कि लोकतंत्र में हमारी भूमिका न केवल वोट डालने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसे बनाए रखने और इसके खिलाफ होने वाली गड़बड़ियों के खिलाफ खड़े होने की जरूरत है।
मोहित ने कहा है कि वह अपने गांव की भलाई के लिए काम करेंगे और लोगों का विश्वास जीतेंगे। अंततः, उनकी कहानी यह दर्शाती है कि सही संघर्ष और न्याय प्रणाली पर विश्वास सबसे महत्वपूर्ण चीज है।