लालू-तिजस्वी के मंच से उतरी कन्हैया ने राहुल की आँखों को किया पकड़!

राहुल गांधी की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ की शुरुआत: सश्राम रैली में नई राजनीतिक हलचल
यात्रा का उद्देश्य और राजनीतिक पृष्ठभूमि
कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने हाल ही में सश्राम में ‘मतदाता अधिकार यात्रा’ का आगाज किया। इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य मतदाता सूची में पाए जाने वाले अनियमितताओं और ‘विशेष गहन संशोधन’ (SIR) के माध्यम से मतदाताओं के अधिकारों पर किए जा रहे हमलों को उजागर करना है। इस रैली में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकरजुन खरगे, आरजेडी के सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव, तेजशवी यादव, सीपीआई के दीपांकर भट्टाचार्य और वीआईपी के मुकेश साहनी जैसे कई दिग्गज नेता उपस्थित थे।
सश्राम की यह रैली न केवल कांग्रेस के लिए, बल्कि पूरे विपक्ष के लिए एक महत्वपूर्ण बैठक साबित हुई। हाल ही में, पप्पू यादव के मंच पर नहीं दिखने की चर्चा ने भी राजनीतिक बहस को गर्माया। सश्राम में मंच पर कन्हैया कुमार की अनुपस्थिति ने इस बात पर सवाल उठाया कि क्या उन्हें जानबूझकर मंच से दूर रखा गया।
कन्हैया कुमार की महत्ता और राजनीति में उनकी भूमिका
कन्हैया कुमार की उपस्थिति या अनुपस्थिति बिहार की राजनीति में एक महत्वपूर्ण चर्चा का विषय बन चुकी है। जब लालू यादव और तेजशवी यादव मंच पर नहीं थे, तब कन्हैया राहुल गांधी और कांग्रेस के महासचिव वेनुगोपल के साथ चर्चा में बने रहे। यह चर्चा कई राजनीतिक हलचलों की ओर इशारा कर रही है।
राहुल और कन्हैया के बीच की रसायनशास्त्र ने एक नए सिरे से अटकलों को जन्म दिया है। क्या यह कन्हैया को मंच से दूर रखने की रणनीति थी? या फिर राहुल गांधी बिहार में कुछ नया करने की योजना बना रहे हैं? इन सवालों का जवाब आगामी विधानसभा चुनावों में ही मिलेगा।
यात्रा का मार्ग और समय सीमा
राहुल गांधी की यह यात्रा 16 दिनों तक चलेगी और यह 20 से अधिक जिलों को कवर करेगी, जिसमें लगभग 1300 किलोमीटर की दूरी तय की जाएगी। यह यात्रा सश्राम से शुरू होकर औरंगाबाद, गया, नवादा, नालंदा, मुंगेर, भागलपुर, पूर्णिया, सुपुल, दरभंगा, सीतामढ़ी, चंपारण, गोपालगंज, सिवान, चपरा और अर्र जैसे जिलों से होकर गुजरेगी। यह यात्रा 1 सितंबर को पटना के गांधी मैदान में एक भव्य रैली के साथ समाप्त होगी।
राजनीतिक परिदृश्य में बदलाव
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की दृष्टि से यह यात्रा संगठनात्मक शक्ति को मजबूत करने और गठबंधन के नेताओं के साथ एकजुटता स्थापित करने का एक प्रयास है। इस दृष्टि से, यह यात्रा कांग्रेस की शक्ति और प्रभाव को पुनर्जीवित करने की एक बड़ी कोशिश मानी जा रही है। विशेष रूप से जब विपक्ष एकजुट होकर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने की योजना बना रहा है, तब राहुल गांधी की यह यात्रा एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हो सकती है।
निष्कर्ष
राहुल गांधी की ‘मतदाता अधिकार यात्रा’ बिहार की राजनीति में हलचल पैदा करने वाली एक महत्वपूर्ण पहल है। इसमें कई प्रमुख विपक्षी नेता शामिल हैं, और यह यात्रा न केवल मतदाता अधिकारों का मुद्दा उठाती है, बल्कि एकजुटता और संगठनात्मक शक्ति को भी मजबूती प्रदान करती है। कन्हैया कुमार की उपस्थिति और राहुल गांधी के साथ चर्चा ने इसे और भी रोचक बना दिया है। यह यात्रा आने वाले चुनावों में संभावित राजनीतिक गतिशीलता को प्रभावित कर सकती है।
यह यात्रा न केवल कांग्रेस के लिए, बल्कि बिहार की राजनीतिक परिदृश्य के लिए भी एक नई शुरुआत हो सकती है। कन्हैया और राहुल की चर्चा, यात्रा का मार्ग और उद्देश्य सभी एक नई राजनीति के संकेतक हैं। ऐसे में, सभी की नजरें इस यात्रा के परिणामों पर टिकी होंगी, जो आने वाले चुनावों में निर्णायक भूमिका निभा सकती है।