अंतरराष्ट्रीय

भारत और रूस के तेल व्यापार: रूस से आयात रोकने पर पेट्रोल-डीजल के दामों पर क्या असर होगा?

भारत और अमेरिका के बीच तेल के टैरिफ विवाद

हाल के दिनों में, भारत और अमेरिका के बीच तनाव बढ़ गया है, जिसका मुख्य कारण भारत पर अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा लगाए गए 25% अतिरिक्त टैरिफ हैं। यह टैरिफ भारत द्वारा रूस से तेल खरीदने के लिए लागू किया गया है, जो अमेरिका के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया है। भारत का कहना है कि उसने रूस से तेल इसलिए लिया क्योंकि यूरोप ने अपने आपूर्ति स्रोतों को बंद कर दिया था। इसके अलावा, अमेरिका ने भी पहले भारत से कहा था कि वह वैश्विक ऊर्जा बाजार की स्थिरता के लिए रूस का तेल खरीदता रहे।

तनाव का विकास

अमेरिका के राष्ट्रपति ने हाल में भारत पर 25% का अतिरिक्त टैरिफ लगा दिया है। इससे पहले भी भारत पर 25% टैरिफ लागू किए जा चुके थे, जिसके कारण टोटल 50% टैरिफ भारत पर लागू हो गया। भारत ने इस टैरिफ को अन्यायपूर्ण माना और इसे करीब से देखा।

भारत की स्थिति

भारत ने इसे स्पष्ट किया है कि वह रूस से तेल खरीद रहा है क्योंकि उसने यूरोप के आवश्यक तेल की आपूर्ति में कमी के परिणामस्वरूप ऐसा किया। भारत का यह भी कहना है कि अमेरिका ने पहले ही इस बात के लिए उसे प्रोत्साहित किया था। जब फरवरी 2022 में रूस और यूक्रेन के बीच संघर्ष शुरू हुआ, तब भारत का तेल आयात में रूस का हिस्सा 2% से भी कम था। लेकिन जब पश्चिमी देशों ने रूस से तेल खरीदना बंद कर दिया, तो रूस ने भारी छूट पर तेल बेचना शुरू कर दिया।

रूस की बढ़ती आपूर्ति

नई स्थिति का लाभ उठाते हुए, रूस भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता बन गया है। आज, रूस भारत की 35% से 40% तेल की जरूरतों को पूरा कर रहा है। वर्तमान में, भारत प्रतिदिन 1.7 से 2.0 मिलियन बैरल रूसी तेल खरीद रहा है। हालांकि, हाल के कुछ समय में, भारतीय कंपनियों ने रूसी तेल खरीदने की मात्रा में कमी की है, जो यह संकेत देता है कि रूस अब पहले जैसी छूट नहीं दे रहा है।

चयन की चुनौती

यदि भारत को रूसी तेल आयात को कम करना है, तो उसे पश्चिम एशिया (इराक, सऊदी अरब, यूएई), अफ्रीका, अमेरिका और लैटिन अमेरिका से अधिक तेल लेना होगा। यह एक बड़ा बदलाव है, और इसे आसानी से नहीं किया जा सकता। विशेषज्ञों ने इसे तकनीकी, आर्थिक और रणनीतिक दृष्टिकोण से चुनौतीपूर्ण बताया है। पश्चिम एशिया का तेल आमतौर पर महंगा होता है और इसकी उपलब्धता भी सीमित है, जो भारतीय रिफाइनरों के मुनाफे को प्रभावित कर सकता है।

छूट की स्थिति

एक रिपोर्ट के अनुसार, 2022-23 में, भारत को प्रत्येक बैरल पर रूसी तेल पर $12 तक का लाभ मिल रहा था, जो अब घटकर सिर्फ $2.2 पर आ गया है। यदि भारत प्रतिदिन 1.8 मिलियन बैरल तेल लेता है और वह रूसी तेल छोड़ने का निर्णय करता है, तो उसे लगभग 25 से 40 हजार करोड़ रुपये की अतिरिक्त लागत का सामना करना पड़ सकता है। इसके अलावा, अगर भारत तुरंत नए तेल खरीदने की कोशिश करता है, तो अंतर्राष्ट्रीय कीमतें भी बढ़ सकती हैं, जिससे भारत के आयात बिल और अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

चीन का कारक

विशेषज्ञों का कहना है कि यदि भारत रूसी तेल खरीदना बंद कर देता है, तो चीन बड़े पैमाने पर अतिरिक्त तेल खरीदार नहीं बन सकेगा। चीन की क्षमता 2-3 लाख बैरल प्रति दिन है। यदि रूस को बड़े पैमाने पर अतिरिक्त खरीदार नहीं मिलते, तो उसे भी नुकसान होगा।

भारत का दृष्टिकोण

भारत बार-बार कहता आ रहा है कि वह सस्ता और विश्वसनीय तेल खरीदता रहेगा, जब तक कि यह प्रतिबंधित न हो। रूस के तेल पर कोई प्रतिबंध नहीं है, हालांकि अमेरिका और उसके सहयोगियों ने सिर्फ ‘मूल्य कैप’ लागू किया है। यह उस समय अच्छा संकेत है जब भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों को संतुलित रखते हुए वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धी बने रहना चाहता है।

पेट्रोल और डीजल की कीमतों पर प्रभाव

यदि भारत रूस से तेल खरीदने में कमी करता है, तो पेट्रोल और डीजल की कीमतें फिर से बढ़ सकती हैं। इसका सीधा प्रभाव मुद्रास्फीति और आम जनता की जेब पर पड़ेगा, जिससे भारत अपनी तेल खरीद को बनाए रखने के लिए प्रेरित होगा। इस स्थिति में, भारत रूस से तेल खरीदने का मामला बनाए रखेगा, ताकि ईंधन की कीमतें नियंत्रण में रह सकें।

निष्कर्ष

भारत और अमेरिका के बीच का यह तनाव कई बुनियादी और जटिल मुद्दों को उजागर कर रहा है। भारत को अपने ऊर्जा सुरक्षा लक्ष्य प्राप्त करने के लिए संतुलन बनाना होगा, ताकि आयात में वृद्धि से जुड़ी चुनौतियों का सामना किया जा सके। रूस से तेल खरीदने के दृष्टिकोण में बदलाव लाना एक कठिन कार्य हो सकता है, लेकिन चुनौतियों को देखते हुए, भारत को अपने दीर्घकालिक ऊर्जा नीति के तहत नए रणनीतिक विकल्प भी तलाशने होंगे।

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