रूस की खतरनाक परमाणु हमले की प्रणाली जो दुनिया को डराती है: जानिए इसकी विशेषताएँ।

रूस के पास दुनिया की सबसे शक्तिशाली मिसाइलें और परमाणु हथियार हैं। इनका एक बड़ा स्टॉक रूस में मौजूद है। लेकिन आज हम एक रहस्यमय और खतरनाक हथियार के बारे में चर्चा करेंगे, जिसने दुनिया के शक्तिशाली देशों को चिंतित कर रखा है। आइए जानते हैं कि उस हथियार का नाम क्या है और इसकी विशेषताएँ क्या हैं।
दुनिया का एक खतरनाक हथियार
रूस में एक अप्रत्याशित और आत्म-स्वचालित प्रणाली है, जिसे पेरिमेटर के नाम से जाना जाता है। यह एक स्वचालित परमाणु हमला प्रणाली है जो किसी मानव हस्तक्षेप के बिना दुश्मन देश को नष्ट करने की क्षमता रखती है। यह एक अंतिम उपाय है, जो दुश्मन को समाप्त करने की शक्ति से लैस है। ऐसे में इसे दुनिया में सबसे खतरनाक हथियारों में से एक माना जाता है।
मृत हाथ प्रणाली की विशेषताएँ
डेड हैंड प्रणाली, 1980 के दशक में सोवियत संघ द्वारा विकसित हुई, एक स्वचालित परमाणु काउंटर-टैक प्रणाली है। इसका प्रमुख उद्देश्य रूस की परमाणु शक्ति को इस प्रकार से सुरक्षित करना था कि यदि अमेरिका जैसे किसी देश द्वारा रूस पर पहला परमाणु हमला किया गया और साथ ही रूस का नेतृत्व या कमांड चेन नष्ट हो गया, तो यह प्रणाली बिना किसी मानवीय हस्तक्षेप के स्वचालित रूप से जवाबी कार्रवाई कर सके। इसे हम इस तरह समझ सकते हैं कि यह एक ऐसी मशीन है जो ‘मौत तक प्रतिक्रिया’ देने की शक्ति रखती है।
प्रणाली का कार्य करने का तरीका
डेड हैंड प्रणाली आधुनिक सेंसर से लैस है, जो परमाणु हमलों के संकेतों को पहचानते हैं। ये सेंसर विभिन्न संकेतकों का निरीक्षण करते हैं, जैसे भूकंपीय गतिविधियाँ, विकिरण स्तर, वायु दबाव और संचार नेटवर्क में रुकावटें। यदि ये सेंसर यह पुष्टि करते हैं कि रूस पर एक परमाणु हमला हो रहा है और कोई काउंटर कमांड नहीं आ रही है, तो यह प्रणाली अपने आप सक्रिय हो जाती है। इसके पश्चात, एक विशिष्ट कमांड मिसाइल रेडियो संकेतों के माध्यम से सभी रूसी परमाणु हथियारों को लॉन्च करने का आदेश देती है। ये मिसाइलें अमेरिका और उसके सहयोगियों के प्रमुख सैन्य ठिकानों और शहरों को लक्षित करती हैं।
क्या यह प्रणाली अभी भी सक्रिय है?
रूस ने कभी भी आधिकारिक रूप से यह स्वीकार नहीं किया कि मृत हाथ अभी भी सक्रिय है, लेकिन 2011 में, रूसी कमांडर सर्गेई करकेव ने इसके अस्तित्व की पुष्टि की थी। विशेषज्ञों का मानना है कि इसे और अधिक आधुनिक स्वरूप में विकसित किया गया है, जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और उपग्रह डेटा का उपयोग कर सकता है। हाल ही में, पूर्व रूसी राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव ने अमेरिकी राष्ट्रपति को चेतावनी दी थी, जिससे वैश्विक तनाव में वृद्धि हुई है।
इसके संभावित खतरे
डेड हैंड प्रणाली को ‘डूम्स डिवाइस’ के रूप में भी जाना जाता है। यदि यह तकनीकी गड़बड़ी या गलत संकेतों के कारण सक्रिय हो जाती है, तो पूरी दुनिया परमाणु युद्ध के लिए असुरक्षित हो सकती है। इस प्रणाली की कार्यप्रणाली ऐसी है कि एक मात्र क्षण में यह एक बड़ा विनाश ला सकती है।
परमाणु युद्ध की आशंका आज भी एक गंभीर मुद्दा बन गया है। ऐसी स्थिति में, प्रश्न उठता है कि क्या इस तरह की स्वचालित प्रणाली को आज के दौर में स्वीकार किया जा सकता है? विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह की प्रणालियों में मानव नियंत्रण होना आवश्यक है, ताकि किसी भी अति संवेदनशील स्थिति में खतरा कम किया जा सके।
भविष्य में संभावित चुनौतियाँ
वर्तमान में, वैश्विक सिद्धांतों के अनुसार, देशों के बीच विश्वास निर्माण और संवाद को प्राथमिकता दी जा रही है। लेकिन इस प्रणाली का अस्तित्व दुनिया के लिए एक चुनौती बन सकता है क्योंकि यह स्वचालित प्रणाली न केवल प्रतिकूल स्थितियों में प्रतिक्रिया देती है, बल्कि यह नाजुक राजनीतिक संतुलन को भी प्रभावित कर सकती है।
इस दिशा में कार्य कैसे किया जाए, इसे लेकर विचार विमर्श होना आवश्यक है। अगर तकनीकी गड़बड़ी की संभावना को ध्यान में रखा जाए, तो यह समझ में आता है कि इस तरह की प्रणालियों पर विचार करना आवश्यक है। हालांकि, ऐसी प्रणाली का स्वचालित सक्रियण न सिर्फ रूस बल्कि समस्त मानवता के लिए एक खतरनाक परिदृश्य पैदा कर सकता है। इसलिए इस विषय पर उचित चर्चा और समाधान खोजने की आवश्यकता है।
निष्कर्ष
इस प्रकार, रूस की पेरिमेटर प्रणाली, जिसे सामान्यतः डेड हैंड कहा जाता है, उस स्थिति का प्रतिनिधित्व करती है जहां तकनीक और राजनीति के बीच एक नाजुक संतुलन बनाना आवश्यक है। जब दुनिया परमाणु युद्ध के खतरों से जूझ रही है, तो ऐसी प्रणालियों पर गंभीरता से विचार करना और अंततः संवाद विकसित करना आवश्यक है। इसलिए क्या हम तकनीकी प्रवृत्तियों के साथ-साथ शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की दिशा में बढ़ सकते हैं, यह पूरी तरह से हमारे नियंत्रण में है। आने वाले वर्षों में, यह देखना दिलचस्प होगा कि संयुक्त राष्ट्र और अन्य वैश्विक संगठन इस मुद्दे पर कैसे प्रतिक्रिया देते हैं।