हूती विद्रोहियों ने बेंजामिन नेतन्याहू की ‘ग्रेटर इज़राइल’ दृष्टि को मुस्लिमों का अपमान करने की योजना के रूप में पेश किया।

इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के ‘ग्रेटर इज़राइल’ विचार पर अरब दुनिया की प्रतिक्रियाएँ
हाल के दिनों में, इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने ‘ग्रेटर इज़राइल’ के विचार पर कुछ विवादास्पद बयान दिए हैं। उनके इस बयान ने अरब दुनिया में भारी उलझन और गुस्से को जन्म दिया है। यमन में, जहां की हौथी सरकार ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी है, नेतन्याहू की योजनाओं को मुस्लिम सामूहिकता के खिलाफ एक अड्डे के रूप में देखा जा रहा है।
अब्दुल मलिक अल हौती, जो यमन के अंसारुल्लाह आंदोलन के नेता हैं, ने इस मुद्दे पर बोलते हुए कहा कि नेतन्याहू का यह बयान न केवल मुसलमानों को विभाजित करने का प्रयास है, बल्कि एक लंबे समय से चल रही योजनाओं का हिस्सा भी है, जिसका मुख्य उद्देश्य मुस्लिम समुदाय में दरार डालना है। उन्होंने इस स्थिति में अरब नेताओं की निष्क्रियता पर भी चिंता व्यक्त की।
इजरायल की अत्याचारों पर वैश्विक प्रतिक्रिया
अब्दुल मलिक ने येरुशलम और गाजा में इज़राइल द्वारा किए जा रहे हमलों की निंदा करते हुए कहा कि इजरायली सेना ने वहां के पत्रकारों को निशाना बनाकर सत्य को छिपाने की कोशिश की है। उन्होंने आरोप लगाया कि गाजा में जो घटनाएं हो रही हैं, वो अन्य किसी भी युद्ध क्षेत्र में हुई चीजों से कहीं अधिक जघन्य हैं, परंतु इसका कोई प्रतिरोध नहीं हो रहा।
हुती नेता ने स्पष्ट किया कि इज़राइल का असली उद्देश्य मुसलमानों का नरसंहार करना और उन्हें पलायन के लिए मजबूर करना है। उनका कहना है कि ग्रेटर इज़राइल की अवधारणा दरअसल अमेरिका और इज़राइल की साम्राज्यवादी योजनाओं का हिस्सा है, जिसे समस्त अरब जगत में लागू करना चाहते हैं।
ग्रेटर इज़राइल की अवधारणा
ग्रेटर इज़राइल की योजना का उद्देश्य जोश भरी तरीके से इजरायल की सीमाओं को व्यापक करना है। यह विचार इजरायल की उन कल्पनाओं पर आधारित है जो उसके वर्तमान क्षेत्रों को बढ़ाकर पड़ोसी अरब देशों तक विस्तारित करने की कोशिश करती हैं। साक्षात्कार में, नेतन्याहू ने इस विचार के प्रति अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की और कहा कि वह इसे बहुत गंभीरता से लेते हैं।
इस अवधारणा से न केवल इजरायल, बल्कि सऊदी अरब, कतर, जॉर्डन और फलस्तीन प्राधिकरण समेत कई अरब देशों की चिंताएं बढ़ गई हैं। नेतन्याहू ने हाल ही में एक साक्षात्कार में इस विचार को और भी मजबूती से स्थापित किया जहां उन्होंने कहा कि उनका इज़राइल की भलाई के लिए इसे और आगे बढ़ाने का इरादा है।
अरब प्रतिक्रिया और स्थिरता
अब्दुल मलिक का कहना है कि अरब देशों के नेताओं द्वारा asserted करने वाली निष्क्रियता केवल चौंकाने वाली नहीं है, बल्कि यह इस बात का संकेत भी है कि कैसे उनके देश अपने अस्तित्व को बचाने की कोशिश में लगे हैं। उनका मानना है कि इस तरह की स्थितियों से निपटने के लिए अधिक सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है।
जब वे बोलते हैं, तो उनका प्रत्युत्तर सबसे बढ़कर अमेरिका की नीति की ओर है। उन्होंने स्पष्ट किया है कि पश्चिमी शक्ति अपने खास एजेंडे के तहत मुसलमानों के बीच दरार डालने की कोशिश कर रहे हैं। इज़राइल की स्थिति को लेकर उनका द्वारसी विश्लेषण और संकेत दर्शाता है कि ग्रेटर इज़राइल की कल्पना एक धुंधली, खतरनाक और विभाजनकारी नीति को जन्म देती है।
निष्कर्ष
यह स्पष्ट हो जाता है कि नेतन्याहू के बयान ने सिर्फ इजरायल और अरब देशों के बीच तनाव को बढ़ाया है, बल्कि इसने मुस्लिम जगत में भी एक महत्वपूर्ण चेतना को जगा दिया है। यह आवश्यक है कि अरब देश इस चुनौती का सामना करने के लिए एकजुट हों और एक मजबूत आवाज उठाएँ, ताकि उनके अधिकारों की रक्षा हो सके और राजनीतिक स्थिरता बनी रहे। इस मुद्दे पर व्यापक चर्चा और सहमति की आवश्यकता है, जिससे कि मुस्लिम समुदाय अपने उत्पीड़न के खिलाफ मजबूत खड़ा हो सके।
इस स्थिति को ध्यान में रखते हुए, अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भी इस विषय पर सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए ताकि शांति और स्थिरता की दिशा में ठोस कदम उठाए जा सकें।