सुप्रीम कोर्ट से बिहार SIR को रद्द करने की मांग, चुनाव आयोग जवाब देने की तैयारी में

बिहार में वोटर लिस्ट के विशेष सघन पुनरीक्षण (SIR) पर सुनवाई के दूसरे दिन कुछ याचिकाकर्ताओं ने पूरी प्रक्रिया को रद्द करने की मांग की. कुछ ने कहा कि वह SIR के खिलाफ नहीं, लेकिन इसे हड़बड़ी में करना गलत है. चुनावी साल में इसे करना बहुत से योग्य वोटरों को मतदान से वंचित कर सकता है. गुरुवार, 14 अगस्त को सुनवाई के तीसरे दिन चुनाव आयोग जवाब देगा.
सबको बोलने का पूरा मौका
बिहार SIR की ड्राफ्ट लिस्ट को लेकर सुनवाई के लिए 2 ही दिन रखे गए थे. लेकिन जस्टिस सूर्य कांत और जोयमाल्या बागची की बेंच ने कहा कि वह सबको बोलने का पूरा अवसर देंगे. कोर्ट ने याचिकाकर्ता पक्ष से कई सवाल भी किए. कोर्ट ने कहा कि यह नहीं कहा जा सकता कि चुनाव आयोग के पास विशेष पुनरीक्षण की शक्ति नहीं है. कोर्ट ने यह भी कहा कि पिछले साल के अंत में हुए समरी रिवीजन में चुनाव आयोग ने सिर्फ 7 कागज़ात स्वीकार किए थे. अब यह बढ़ा कर 11 कर दिए गए हैं. यह वोटर फ्रेंडली बात मानी जाएगी.
‘सबसे बड़े लोकतंत्र में ऐसा होना गलत’
याचिकाकर्ता एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की तरफ से वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायण ने SIR को रद्द करने की मांग की. उन्होंने कहा कि सब कुछ मनमाने तरीके से हो रहा है. समीक्षा का आधार 2003 की लिस्ट को बनाया गया है. जो लोग उसमें शामिल थे, उन्हें रियायत मिल रही है. सवाल यह है कि 2003 के बाद से हुए 10 चुनावों में जिसने वोट डाला हो, उसे अब कैसे वोटर लिस्ट से बाहर किया जा सकता है? खुद को गर्व से सबसे बड़ा लोकतंत्र बताने वाले देश में इसकी अनुमति नहीं होनी चाहिए.
‘1 घर में 240 लोग असंभव’
ADR की तरफ से प्रशांत भूषण ने पक्ष रखा. उन्होंने कहा कि 2 जिलों में 10.6 और 12.6% लोगों का नाम ड्राफ्ट लिस्ट में नहीं है. बीएलओ मनमाने तरीके से काम कर रहे हैं. कई जगहों पर बीएलओ खुद फॉर्म भर कर जमा कर रहे हैं. मृत लोग भी लिस्ट में जगह पा रहे हैं.” भूषण ने यह भी कहा कि ड्राफ्ट लिस्ट में 1 ही पते पर 240 लोग दर्ज हैं. इस पर जस्टिस कांत ने कहा, “1 घर में इतने लोगों का रहना संभव नहीं.”
राहुल की प्रेस कांफ्रेंस की जजों को जानकारी नहीं
प्रशांत भूषण ने कहा कि पहले ड्राफ्ट लिस्ट सर्चेबल फॉर्मेट में अपलोड की गई थी. उसमें नामों को ढूंढना आसान था. राहुल गांधी ने चुनाव आयोग की गड़बड़ियों को लेकर एक प्रेस कांफ्रेंस की. उसके बाद सर्चेबल लिस्ट की जगह स्कैन की हुई कॉपी वेबसाइट पर डाल दी गई. इस पर जस्टिस सूर्य कांत ने कहा, “हमें किसी प्रेस कांफ्रेंस की जानकारी नहीं है.”
‘चुनावी साल में SIR गलत’
याचिकाकर्ता पक्ष के लिए वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने भी बहस की. सिंघवी ने कहा कि बिहार के बाद बंगाल में SIR की योजना है. इसे चुनावी साल में हड़बड़ी में नहीं करना चाहिए. सिंघवी ने कहा कि 22 साल पहले 2003 में भी SIR की अधिसूचना जारी हुई थी, तब महाराष्ट्र और अरुणाचल को इसलिए छोड़ा गया था कि वहां चुनाव होने वाले थे. लेकिन अब चुनाव से 6 महीना पहले इसे करवाया जा रहा है.
‘बंगाल पर अभी सुनवाई नहीं’
गोपाल शंकरनारायण और कल्याण बनर्जी जैसे वकीलों ने पश्चिम बंगाल में भी SIR शुरू होने की आशंका जताई. शंकरनारायण ने कहा कि 8 अगस्त को चुनाव आयोग ने राज्य सरकार को SIR का नोटिस भेजा है. इस पर कोर्ट ने कहा कि अभी बंगाल का मामला नहीं सुना जा रहा है. यह भी नहीं कह सकते कि बंगाल में प्रक्रिया बिहार जैसी ही होगी. हो सकता है कि वहां के लिए चुनाव आयोग प्रक्रिया में बदलाव करे.