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मथुरा की संस्कृति में रचा-बसा है श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव, जानें क्या है यहां की परंपराओं की…

Krishna Janmashtami 2025: मथुरा की संस्कृति में रचा-बसा है श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव, जानें क्या है यहां की परंपराओं की खासियत

मथुरा, सदियों से ब्राह्मणवाद, बौद्ध धर्म और जैन धर्म का प्रमुख केंद्र रहा है। यह शहर न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि इसकी समृद्ध संस्कृति, मूर्तिकला, अभिलेखों, रासलीला और लोकगीतों ने इसे विश्वविख्यात बना दिया है।

Mathura Krishna Janmashtami 2025 : जैसे-जैसे श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 2025 नजदीक आ रही है, वैसे ही मथुरा और वृंदावन की गलियों में भक्ति, रंग और सांस्कृतिक परंपराओं की गूंज सुनाई देने लगी है। मथुरा केवल श्रीकृष्ण की जन्मभूमि नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, कला और धर्म की एक अद्वितीय धरोहर भी है। जन्माष्टमी के मौके पर यह पावन नगरी जीवंत हो उठती है।

मथुरा: एक सांस्कृतिक और धार्मिक केंद्र

उत्तर प्रदेश स्थित मथुरा, सदियों से ब्राह्मणवाद, बौद्ध धर्म और जैन धर्म का प्रमुख केंद्र रहा है। यह शहर न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि इसकी समृद्ध संस्कृति, मूर्तिकला, अभिलेखों, रासलीला और लोकगीतों ने इसे विश्वविख्यात बना दिया है।

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रासलीला और सांझी : भक्ति और कला का संगम

रासलीला, श्रीकृष्ण की गोपियों के साथ की गई लीलाओं पर आधारित नृत्य-नाटिका है, जो जन्माष्टमी के दौरान विशेष रूप से मंचित की जाती है। खास बात यह है कि इसे 13 से 14 साल के ब्राह्मण बालकों द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। यह परंपरा भागवत पुराण से प्रेरित है, जिसमें कृष्ण की लीलाओं का उल्लेख है।

वहीं ‘सांझी’ मथुरा की एक पारंपरिक कला है, जिसमें रंग-बिरंगे फूलों से भूमि पर सजावट की जाती है। यह कला जन्माष्टमी से जुड़े उत्सवों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

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लोकगीतों और रासिया की गूंज

जन्माष्टमी पर ‘रासिया’ गीतों की विशेष प्रस्तुति होती है, ये गीत राधा-कृष्ण के प्रेम को समर्पित होते हैं। होली हो या जन्माष्टमी, ब्रज की हर खुशी रासिया गीतों के बिना अधूरी मानी जाती है।

श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर: आस्था का प्रतीक

श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर वही पवित्र स्थल है, जहां कहा जाता है कि स्वयं भगवान श्रीकृष्ण का जन्म कारागार में हुआ था। यह मंदिर केशवदेव मंदिर और शाही ईदगाह मस्जिद के बीच स्थित है। ऐतिहासिक रूप से यह मंदिर 17 बार तोड़ा और पुनर्निर्मित किया गया है। आज यह भारत के सबसे पवित्र और व्यस्त धार्मिक स्थलों में से एक है।

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सरकार द्वारा परिसर में फोटोग्राफी पर प्रतिबंध लगाया गया है, ताकि इसकी पवित्रता बनी रहे। जन्माष्टमी के दिन लाखों श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए आते हैं और मध्यरात्रि में श्रीकृष्ण के जन्म का भव्य आयोजन देखते हैं।

मथुरा की यह सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत न केवल भारत, बल्कि दुनिया भर के श्रद्धालुओं और कला प्रेमियों को जन्माष्टमी के अवसर पर आकर्षित करती है। यह पर्व केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि संस्कृति, श्रद्धा और इतिहास का जीवंत उत्सव बन जाता है।

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