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‘पर्यावरण नुकसान के लिए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड वसूल सकता है हजार्ना’, सुप्रीम कोर्ट का फैसला

नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि देश के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड अब पर्यावरण को हुए या संभावित नुकसान के लिए मुआवजा और हजार्ना वसूल सकते हैं। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पर्यावरण सुरक्षा के लिए सिर्फ सजा देना ही काफी नहीं, बल्कि नुकसान की भरपाई और रोकथाम भी जरूरी है। यह फैसला जस्टिस पीएस नरसिंहा और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने सुनाया।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, पानी और हवा से जुड़े कानूनों के तहत प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को संवैधानिक और वैधानिक अधिकार मिले हैं कि वे पर्यावरणीय नुकसान की भरपाई के लिए राशि वसूल सकें। ये बोर्ड पहले से ही कुछ निर्देश देने के लिए अधिकार रखते हैं (पानी एक्ट की धारा 33ए और एयर एक्ट की धारा 31ए के तहत), और उन्हीं के अंतर्गत ये हजार्ना वसूलने की शक्ति भी शामिल है।
यह हजार्ना सजा नहीं है, बल्कि एक नागरिक उपाय है, ताकि पर्यावरण को हुए नुकसान की भरपाई की जा सके या भविष्य में संभावित नुकसान को रोका जा सके। बोर्ड सीधा जुमार्ना नहीं लगाएंगे, बल्कि एक निश्चित राशि की मांग कर सकते हैं, या कंपनियों से बैंक गारंटी जमा करवाने के लिए कह सकते हैं। कोर्ट ने कहा कि भारत के पर्यावरण कानूनों में पहले से ही यह सिद्धांत है कि जो प्रदूषण फैलाएगा, वही इसकी कीमत चुकाएगा यानी ‘प्रदूषक भुगतान सिद्धांत’। यह मुआवजा तब भी लागू हो सकता है। जब कोई तय सीमा पार हो जाए और पर्यावरण को नुकसान पहुंचे। या फिर जब कोई सीमा पार न हो, लेकिन फिर भी गतिविधि से नुकसान हो जाए। यहां तक कि संभावित नुकसान होने की स्थिति में भी बोर्ड कार्रवाई कर सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने 2012 के दिल्ली हाईकोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया जिसमें कहा गया था कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड पर्यावरणीय नुकसान का हजार्ना नहीं वसूल सकते। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह निर्णय गलत था और इससे पर्यावरण की रक्षा करने वाली संस्थाओं की शक्ति कमजोर हुई थी।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि बोर्डों को यह शक्ति न्याय के सिद्धांतों, पारदर्शिता और निश्चित नियमों के तहत ही इस्तेमाल करनी होगी। इसके लिए सरकार को ठोस नियम और उपविधियां बनाने होंगे, ताकि यह प्रक्रिया स्पष्ट और निष्पक्ष हो।
अब प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों, फैक्ट्रियों, प्रोजेक्ट्स पर केवल जुमार्ना या सजा नहीं, बल्कि हजार्ना भरने या रोकथाम के उपाय अपनाने का सीधा दबाव होगा। प्रदूषण से पहले ही रोकथाम की कार्रवाई की जा सकेगी- जैसे बैंक गारंटी लेना या राशि जमा करवाना। पर्यावरणीय नियमों का उल्लंघन करने वाले संस्थानों को अब जवाबदेही से नहीं बचाया जा सकेगा।

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