न्यायिक परीक्षाओं में अब तीन साल की वकालत जरूरी, सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को स्पष्ट किया कि ज्यूडिशियल सर्विस परीक्षा में तीन साल की न्यूनतम वकालत की शर्त केवल भविष्य की भर्तियों पर लागू होगी। यह फैसला उन भर्तियों पर लागू नहीं होगा, जो 20 मई 2025 से पहले जारी हो चुकी हैं।
मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने 20 मई को एक ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि नए लॉ ग्रेजुएट्स अब सीधे ज्यूडिशियल सर्विस परीक्षा में नहीं बैठ सकेंगे, उन्हें पहले कम से कम तीन साल का प्रैक्टिस अनुभव होना चाहिए।
पहले से जारी भर्तियों पर नहीं पड़ेगा असर
इस आदेश के बाद कई उम्मीदवारों ने यह सवाल उठाया कि क्या जम्मू-कश्मीर लोक सेवा आयोग की 14 मई को निकली भर्ती पर यह नियम लागू होगा? इस पर सीजेआई ने साफ कहा कि हमने अपने फैसले में स्पष्ट किया है कि यह नियम किसी भी पहले से शुरू भर्ती प्रक्रिया पर लागू नहीं होगा। यह सिर्फ अगले भर्ती सत्र से प्रभावी होगा।
याचिकाकर्ता की याचिका खारिज
सुनवाई के दौरान, याचिकाकर्ता नवीद बुख्तिया और पांच अन्य वकीलों ने यह दलील दी कि ने जानबूझकर 20 मई से पहले नोटिफिकेशन जारी किया ताकि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से बचा जा सके। इस पर सीजेआई ने पूछा कि क्या हाईकोर्ट की फुल कोर्ट को पता था कि हम 20 मई को यह फैसला सुनाने जा रहे हैं? सुप्रीम कोर्ट ने इस आधार पर याचिका की सुनवाई से इनकार किया और याचिका को वापस ले लिया गया।
इस फैसले का उम्मीदवारों पर क्या असर होगा?
जो उम्मीदवार पहले से ही भर्ती प्रक्रिया में हैं, वे इस फैसले से प्रभावित नहीं होंगे।
भविष्य में होने वाली ज्यूडिशियल सर्विसेज परीक्षाओं के लिए उम्मीदवारों के पास कम से कम तीन साल का वैध कानून अभ्यास अनुभव होना जरूरी होगा।
नए लॉ ग्रेजुएट्स को भर्ती प्रक्रिया में शामिल होने के लिए पहले अनुभव हासिल करना होगा।