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Pakistan Crisis: अब चमत्कार ही बचा सकता है पाकिस्तान को

हालत इतनी बुरी है कि इतिहास में पहली बार सब्सिडी वाले एक बोरी आटे के लिए कतार में खड़े एक व्यक्ति को कुचलकर मार दिया गया, जबकि दम घुटने से कई लोगों की मौत हो गई।

पाकिस्तान में लोकतंत्र कभी-कभी ही दिखता है, क्योंकि 1947 के बाद से यहां या तो लोकतंत्र को नियंत्रित किया जाता रहा है या सीधे यह मुल्क मार्शल लॉ के तहत रहा है या सैन्य-असैन्य शासन प्रणाली रही है, जिसमें सुरक्षा प्रतिष्ठान किसी राजनेता को चुनकर सत्ता में लाता है और पर्दे के पीछे से सरकार को नियंत्रित करता है। अफसोस की बात यह है कि जब भी मुल्क में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव हुए हैं, तो चुनी हुई सरकार ने कुशासन और भ्रष्टाचार के जरिये मतदाताओं को बुरी तरह से निराश किया है, जिसके चलते वह सरकार अगली बार नहीं चुनी जाती है।

मुद्रास्फीति, बेरोजगारी और सुरक्षा का अभाव-ये तीन बड़ी चुनौतियां हैं, जिनसे आज पाकिस्तान का आम आदमी जूझ रहा है। हालत इतनी बुरी है कि इतिहास में पहली बार सब्सिडी वाले एक बोरी आटे के लिए कतार में खड़े एक व्यक्ति को कुचलकर मार दिया गया, जबकि दम घुटने से कई लोगों की मौत हो गई। जीवन रक्षक दवाएं कई बार अनुपलब्ध होती हैं, जबकि फार्मास्युटिकल कंपनियों ने एक बार दर्द निवारक दवा और आइड्रॉप का उत्पादन बंद कर दिया, क्योंकि कच्चे माल की आयात लागत ने तैयार उत्पाद को महंगा बना दिया था और वे बाजार के सरकारी दर से मेल नहीं खाती थीं। कराची के दक्षिणी बंदरगाह पर मुर्गों को खिलाने के दाने जैसी वस्तुओं के साथ रुके हुए जहाज महीनों से इंतजार कर रहे हैं, क्योंकि सरकार के पास आयातकों को भुगतान करने के लिए पर्याप्त विदेशी मुद्रा नहीं है। नतीजतन आम तौर पर सस्ते बिकने वाले मुर्गे इतने ज्यादा महंगे हो गए हैं कि वे सामान्यतः महंगे बिकने वाले बकरे के और दूसरे गोश्त से होड़ कर रहे हैं।

भीषण ठंड के कारण घरों, दफ्तरों और फैक्टरियों में पाइप से पहुंचाई जाने वाली गैस की भी राशनिंग हो रही है, और जहां कुछ इलाकों में रोजाना कुछ घंटों के लिए गैस मिलती है, वहीं कुछ इलाकों में गैस की आपूर्ति पूरी तरह से बंद है। नतीजतन लोगों को गैस सिलिंडरों, या जलावन की लकड़ी या कोयले पर निर्भर रहना पड़ता है। सर्दियों में सामान्यतः घरों में बिजली का उपयोग कम होता है, क्योंकि सभी पंखे और एयर कंडीशन बंद हो जाते हैं, लेकिन इन दिनों लोड शेडिंग की हालत यह है कि रावलपिंडी जैसे शहर में रोजाना कुछ घंटों के लिए बिजली उपलब्ध नहीं रहती।

प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ ने वित्तमंत्री मिफ्ताह इस्माइल को हटा दिया था, क्योंकि वह आईएमएफ द्वारा कर्ज दिए जाने से पहले अलोकप्रिय कदम उठा रहे थे। उनकी जगह इशाक डार को लाया गया, जिनके बेटे की शादी नवाज शरीफ की सबसे बड़ी बेटी से हुई है। इशाक डार इन दिनों अमेरिकी डॉलर पर अंकुश लगा रहे हैं, जिससे यह अनुपलब्ध हो गया है, क्योंकि इसे मनी एक्सचेंजर्स द्वारा जमा करके अफगानिस्तान में तस्करी की जा रही है। मुल्क के आर्थिक कुप्रबंधन का सर्वेक्षण करते हुए हाल में मिफ्ताह इस्माइल ने कहा, ‘हमारी आबादी का अधिकांश हिस्सा जीवन रक्षक सर्जरी का खर्च वहन करने में असमर्थ है, बेरोजगारी चरम पर है और अक्षमता के कारण बिजली की दरें ऊंची हैं। हमारे नेताओं को मिल-बैठकर इसका समाधान खोजने की जरूरत है।’

यह इतना आसान नहीं है, जितना मिफ्ताह इस्माइल बताते हैं। सड़ांध बहुत पहले से अलग-अलग सरकारों द्वारा स्थापित की गई, जिन्होंने सत्ता में बने रहने और भावी चुनावों में वापसी का सपना देखने के लिए शॉर्टकट अपनाए थे। किसी भी सरकार ने दीर्घकालीन टिकाऊ नीतियों के बारे में विचार नहीं किया, जो एक सरकार से दूसरी सरकार में जारी रह सकती हैं। जैसे कि इस्लामाबाद में नई सरकार आने पर विदेश नीति या सुरक्षा नीतियों में कोई नाटकीय बदलाव नहीं होता है। आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान में मुद्रास्फीति दिसंबर, 2022 में उम्मीद से अधिक बढ़ी है, जो खाद्य ईंधन की उच्च कीमतों से प्रेरित है। इससे साफ है कि केंद्रीय बैंक अपनी अगली मौद्रिक समीक्षा में उधार लागत को ऊंचा रखेगा। पाकिस्तान के सांख्यिकी विभाग द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, एक साल पहले की तुलना में दिसंबर में उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतें 24.50 फीसदी बढ़ीं।

निस्संदेह शाहबाज शरीफ को इमरान खान से विरासत में जर्जर अर्थव्यवस्था मिली है। अगर पूर्व सैन्य प्रमुख ने इमरान खान की पीटीआई सरकार का समर्थन किया होता, तो अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो जाती। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था इतनी बुरी नहीं हुई थी, जितनी तब हुई, जब बाजवा और उनके जनरलों ने पाकिस्तान को आर्थिक रूप से चलाने की कोशिश की और कुर्सी के मोह में इमरान खान ने उससे आंखें मूंद लीं। प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ का कहना है कि मित्र देशों से कर्ज मांगना शर्मनाक है, पर सभी जानते हैं कि इसके बिना कोई चारा नहीं है और देश पिछले कुछ महीनों में कई बार दिवालिया होने से बचा है। आईएमएफ और विश्व बैंक के अलावा सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, कतर समेत कई अन्य देशों ने पाकिस्तान की मदद की, पर वे भी थक रहे हैं, क्योंकि उनकी अपनी अर्थव्यवस्था भी दबाव में हैं। सभी जानते हैं कि मुफ्त में कुछ नहीं मिलता। यदि कुछ आर्थिक सहायता दी जाती है, तो उसके साथ कुछ शर्तें होती हैं, जिनमें से कई बहुत कठिन शर्तें होती हैं।

शाहबाज शरीफ की किस्मत बहुत खराब थी, जब 2022 की गर्मियों में पाकिस्तान के इतिहास की सबसे भयानक बाढ़ आई थी। मुल्क का कोई भी हिस्सा इससे अछूता नहीं रहा। अनुमान है कि इससे कुल आर्थिक नुकसान लगभग 15.2 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा। कृषि आधारित मुल्क होने के नाते प्रारंभिक अनुमान बताते हैं कि कुल खेती योग्य भूमि के 2.2 करोड़ हेक्टेयर में से 70 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में बाढ़ का पानी घुस गया, जो लगभग 33 फीसदी है। कृषि विकास दर घटकर 0.23 फीसदी रह गई, जिससे सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 2.58 फीसदी हो गई। पाकिस्तान के लिए खाद्य सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता है। जलवायु परिवर्तन मंत्री शेरी रहमान ने दावोस में वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम के मंच पर कहा कि ‘पाकिस्तान में जलवायु आपातकाल है और दो करोड़ लोग अब भी बाढ़ के पानी से प्रभावित हैं, जिनमें से 80 लाख लोग बाढ़ के पानी के संपर्क में हैं।’ ऐसे में कोई चमत्कार ही पाकिस्तान को दिवालिया होने से बचा सकता है।

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