भारत के विमानन क्षेत्र में अपार संभावनाएं, आबादी के अनुपात में हवाई यातायात बेहद कम
नई दिल्ली । भारत के विमानन क्षेत्र में वृद्धि की आपार संभावनाएं हैं। विश्व की लगभग 18 प्रतिशत आबादी होने के बावजूद, वैश्विक हवाई यातायात में भारत की हिस्सेदारी केवल 4 प्रतिशत है। जेफरीज की हालिया रिपोर्ट में यह दावा किया गया है।
रिपोर्ट में बाताया गया कि यात्री संख्या के आधार पर भारत पहले से ही अमेरिका और चीन के बाद दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा विमानन बाजार है। हालांकि जनसंख्या के आकार की तुलना में यह क्षेत्र अभी भी अपर्याप्त रूप से विकसीत है। भारत में प्रति व्यक्ति हवाई यात्रा बहुत कम है। यह विकास के विशाल अवसरों की ओर इशारा करता है।
इसमें कहा गया कि बढ़ती आय, तेज शहरीकरण और बेड़े के विस्तार व हवाईअड्डा अवसंरचना में लगातार हो रहे निवेश से इस क्षेत्र में उच्च एकल अंक से लेकर निम्न दोहरे अंकों तक की निरंतर वृद्धि की उम्मीद है। देश के हवाई संपर्क संकेतक भी बेहतर हो रहे हैं, जिसमें नए घरेलू मार्गों की शुरूआत और अधिक अंतरराष्ट्रीय बाजारों में विस्तार शामिल है। इसमें सीधे विदेशी गंतव्यों तक की कनेक्टिविटी भी जोड़ी जा रही है।
रिपोर्ट में भारत के विमानन उद्योग की तुलना चीन से की गई है ताकि विकास के अवसरों पर जोर दिया जा सके। जहां चीन सालाना 0.7 अरब से ज्यादा हवाई यात्रियों को संभालता है। वहीं भारत केवल लगभग 0.2 अरब यात्रियों को ही सेवाएं प्रदान करता है। बुनियादी ढांचे के संदर्भ में, चीन के पास 4,000 से अधिक विमानों का बेड़ा और 250 से अधिक हवाई अड्डे हैं। वहीं भारत में लगभग 850 विमान और 150 से 160 हवाई अड्डे हैं।
चीन को अपने व्यापक हाई-स्पीड रेल नेटवर्क का भी लाभ मिलता है, जो कई मार्गों पर हवाई यात्रा को टक्कर देता है। इसके विपरीत, भारत अभी भी लंबी दूरी की यात्रा के लिए पारंपरिक रेल पर बहुत अधिक निर्भर है, क्योंकि उसके पास एक मजबूत हाई-स्पीड रेल प्रणाली का अभाव है।
सकारात्मक दृष्टिकोण के बावजूद, भारत में विमानन क्षेत्र कई चुनौतियों का सामना कर रहा है। इनमें से एक प्रमुख समस्या वैश्विक स्तर पर विमानों की कमी और आपूर्ति-श्रृंखला की अड़चनें हैं। इनके कारण नए विमानों की आपूर्ति में देरी हो सकती है। विमानन टरबाइन ईंधन (एटीएफ) पर उच्च कराधान से एयरलाइनों की परिचालन लागत बढ़ जाती है।
इसके अलावा, हाल के भू-राजनीतिक तनावों के कारण हवाई क्षेत्र पर प्रतिबंध लगे हैं। इससे एयरलाइनों को लंबे और महंगे रास्ते अपनाने पड़ रहे हैं। भारत में रखरखाव, मरम्मत और ओवरहाल (एमआरओ) के लिए मजबूत बुनियादी ढाँचे का भी अभाव है। इसके कारण विदेशी सुविधाओं पर निर्भरता बढ़ गई है। हाल ही में एयर इंडिया की दुर्घटना और नई प्रौद्योगिकी वाले बेड़े को रोके जाने से चिंताएं बढ़ गई हैं। इससे यात्रियों की भावनाओं और सुरक्षा संबंधी धारणाओं पर असर पड़ सकता है।