व्यापार युद्ध के दबाव में भी नहीं झुका चीन, बढ़ती जीडीपी दर ने चौंकाया
बीजिंग । अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा शुरू किए गए व्यापार युद्ध के बावजूद चीन की अर्थव्यवस्था ने अप्रत्याशित मजबूती दिखाई है। अप्रैल से जून की तिमाही में चीन की जीडीपी दर 5.2 प्रतिशत रही है, जो वैश्विक विश्लेषकों की उम्मीद से बेहतर है। जनवरी-मार्च में यह दर 5.4 प्रतिशत थी। सरकार के मुताबिक तिमाही आधार पर 1.1 प्रतिशत की बढ़त भी दर्ज हुई है, जो एक रिकॉर्ड बढ़ोतरी है।
चीन की अर्थव्यवस्था को मजबूती देने में घरेलू निवेश और वैश्विक निर्यात ने बड़ा योगदान दिया है। फैक्ट्रियों, हाई-स्पीड रेलवे और बुनियादी ढांचे में निवेश को तेज किया गया। अमेरिकी टैरिफ से बचने के लिए चीन ने अपने उत्पादों को दक्षिण-पूर्वी एशिया जैसे देशों के जरिए निर्यात करना शुरू किया, जहां से वे अमेरिका और यूरोप को पुन: निर्यात हुए। इससे अमेरिका में गिरते निर्यात की भरपाई हो सकी।
चीन की सरकार ने बीते साल से एक बड़ा खर्च प्रोत्साहन कार्यक्रम शुरू किया। इसमें लोगों को इलेक्ट्रिक कार, एयर कंडीशनर और अन्य सामान खरीदने के लिए सब्सिडी दी गई। इससे फैक्ट्रियों को राहत मिली, जो कीमत युद्ध और जरूरत से ज्यादा क्षमता की वजह से घाटे में चल रही थीं। हालांकि कुछ शहरों में यह योजना इतनी लोकप्रिय हो गई थी कि सरकारी कोष पर भी दबाव बढ़ने लगा था। न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक इन सब के बावजूद जीडीपी बढ़ानें में ये योजना काफी काम की रही।
चीन के बारे में अमेरिकी मिडिया कहता है कि दूसरी तिमाही का प्रदर्शन पहले की अपेक्षा बेहतर रहा। आॅक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स ने तो अपने पूरे साल के अनुमान को 4.3 प्रतिशत से बढ़ाकर 4.7 प्रतिशत कर दिया है। यह तब हुआ है जब अमेरिका के टैरिफ कुछ समय के लिए 145 प्रतिशत तक पहुंच गए थे, जिससे चीन के निर्माण क्षेत्र पर बड़ा असर पड़ा था। ऐसे में माना जा रहा था कि ड्रैगन की डगमगा सकती है, लेकिन डगमगाना तो दूर चीन ने इस बार उम्मीद से भी बेहतर प्रदर्शन किया।
एक ओर जहां मांग को बढ़ावा देने की कोशिश हो रही है, वहीं दूसरी ओर कीमतों में गिरावट की वजह से कंपनियों का मुनाफा घट रहा है। अपार्टमेंट, इलेक्ट्रिक कार और अन्य बड़े उत्पाद अब सस्ते हो रहे हैं। इसे डिफ्लेशन कहते हैं, जो कंपनियों के मुनाफे और वेतन दोनों पर नकारात्मक असर डालता है। लोगों की आमदनी घटने से खर्च और कर्ज चुकाने की क्षमता भी प्रभावित होती है।
डिफ्लेशन की चुनौती से निपटने के लिए चीन ने ब्याज दरों में भारी कटौती की है। सरकारी बॉन्ड की दरें 11 साल के न्यूनतम स्तर पर हैं। इससे रियल एस्टेट और निर्माण क्षेत्र को सस्ते ऋण मिल रहे हैं, जिससे निवेश को बढ़ावा मिला है। लेकिन फिर भी हाउसिंग सेक्टर में स्थिरता नहीं आ सकी है और कीमतें फिर से गिरने लगी हैं।