सावन में महामृत्युंजय मंत्र कब जपना चाहिए? जानें नियम

सावन माह का आरंभ हो चुका है, शिवभक्त सावन में भगवान शिव को जल चढ़ाते हैं और पूजा-पाठ करते हैं। माना जाता है कि सावन माह भगवान शिव का प्रिय माह है। इसी माह में उन्होंने देवी पार्वती को पत्नी रूप में स्वीकारा था। यही कारण है कि हर साल महादेव सावन में ही अपने ससुराल आते हैं। सावन में जलाभिषेक और रुद्राभिषेक का महत्व है। रुद्राभिषेक में महामृत्युंजय मंत्र का जप किया जाता है। यह मंत्र बेहद प्रभावशाली है, मान्यता है कि यह काल के मुंह से जातक के प्राण लौटा लाता है और सभी रोग-दोष से भी मुक्ति देता है। इसे जपने के कुछ नियम है…
सावन में महामृत्युंजय मंत्र का जप करना बेहद शुभ माना गया है। मान्यता है कि इस पूरी शुद्धता के साथ किया जाए तो यह शुभ फल देता है। सावन में हर दिन व हर तिथि को बेहद शुभ माना गया है। शास्त्रों के मुताबिक, सावन में महामृत्युंजय मंत्र को सूर्योदय के बाद और शाम का सूर्यास्त के पहले करना चाहिए। अगर जातक नियमों का पालन करते हुए शुद्धता और एकाग्रता के साथ इसे जपते हैं तो उन्हें विशेष फल मिलता है।
क्या है महामृत्युंजय मंत्र जपने के नियम?
महामृत्युंजय मंत्र जपने से पहले साफ कपड़े और पवित्र आसन पर ही बैठना चाहिए।
इसके साथ जातक का मुंह भी पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए।
महामृत्युंजय मंत्र जपने के लिए रुद्राक्ष की माला का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
इसके अलावा, महामृत्युंजय मंत्र निश्चित संख्या में जपना चाहिए, जैसे 108 बार या कोई और विषम संख्या
महामृत्युंजय मंत्र जप के दौरान जातक को सात्विक भोजन ही करना चाहिए।
इसके साथ ही जातक को ब्रह्मचर्य का पालन भी करना चाहिए और मन को सांसारिक विचारों से दूर रखना चाहिए।
जप करते समय शिव जी की प्रतिमा सामने होना चाहिए और धूप या दीप भी जलते रहना चाहिए।
महामृत्युंजय मंत्र
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उवार्रुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
मंत्र का जाप करने के लाभ
जातक रोगों से मुक्ति होता है।
उसकी अकाल मृत्यु से रक्षा होती है।
उसे दीघार्यु प्राप्त होती है।
जातक को भय और कष्टों से छुटकारा मिलता है।
मंत्र के जप से मानसिक शांति और सकारात्मकता आती है।