बिना पर्ची-खर्ची भर्ती से शाह का सपा पर हमला
लखनऊ। यूपी पुलिस भर्ती के नियुक्ति पत्र वितरण समारोह में शामिल होने पहुंचे गृहमंत्री अमित शाह ने मंच से मेरे मित्र केशव प्रसाद मौर्य कहकर संबोधित किया। राजनीतिक गलियारों में शाह के इस कथन के कई मायने निकाले जा रहे हैं।
लोकसभा चुनाव के बाद अमित शाह का पहला लखनऊ दौरा था। लोकसभा चुनाव के बाद से ही केशव और योगी सरकार के बीच तनातनी का माहौल था। ऐसा माना जा रहा था कि यूपी में केशव को कमजोर किया जा रहा है। लेकिन शाह ने अपने एक ही संदेश में साफ कर दिया है कि केशव की भाजपा और केंद्रीय नेतृत्व के लिए क्या अहमियत है।
कार्यक्रम के दौरान 60,244 सिपाहियों को नियुक्ति पत्र सौंपे गए। इसमें मंच पर 15 चयनित अभ्यर्थियों को नियुक्ति पत्र सौंपकर जातीय और क्षेत्रीय संतुलन का सियासी गुलदस्ता पेश किया गया। शाह ने योगी सरकार की भी तारीफ की। वहीं, सपा पर बिना नाम लिए ‘पर्ची-खर्ची’ का तंज कस तीखा हमला बोला।
प्रदेश सरकार ने सिपाही भर्ती के चयनित अभ्यर्थियों का नियुक्ति पत्र वितरण समारोह कर एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश की है। सरकार ने एक ओर बेरोजगार युवाओं को संदेश दिया है कि सरकार बड़े पैमाने पर भर्तियां कर रही है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भर्ती और प्रतियोगी परीक्षाएं निरस्त होने और भर्ती आयोग की ओर से नई वैकेंसी नहीं निकलने के कारण युवाओं में प्रदेश की बीजेपी सरकार के खिलाफ खासी नाराजगी पनप रही है।
हालही में सरकार ने साफ किया है कि बेसिक शिक्षा विभाग में नई छात्र शिक्षक अनुपात पूरा होने के कारण सहायक अध्यापक भर्ती करने का फिलहाल विचार नहीं है। इससे भी बीटीसी और बीएड की डिग्री प्राप्त युवाओं में नाराजगी है।
राजनीतिक विश्लेषक मानते है कि सरकार ने 60 हजार सिपाही भर्ती के चयनित अभ्यर्थियों को नियुक्ति पत्र वितरण का भव्य समारोह कर उस नाराजगी को थामने की कोशिश की है। अमित शाह ने मंच से जिस तरीके से सपा सरकार के दौरान पुलिस भर्ती में हुई धांधली पर निशाना साधा, उससे साफ है कि अब रोजगार के मुद्दे पर बीजेपी आक्रामकता से जवाब देगी।
शाह ने कहा, ‘पिछली सरकारों में भर्ती के लिए पर्ची भेजी जाती थी, जाति विशेष को तरजीह दी जाती थी। लेकिन, आज मेरे सामने बैठे 60,244 अभ्यर्थियों को मैं हिम्मत के साथ कहता हूं कि किसी को एक पाई की रिश्वत नहीं देनी पड़ी।
न खर्ची, न पर्ची, न सिफारिश, न जाति, न भ्रष्टाचार। केवल योग्यता के आधार पर 48 लाख आवेदनों में से आपका चयन हुआ।’ यह बयान न केवल योगी सरकार की पारदर्शिता की गवाही देता है, बल्कि सपा के ‘जातिवादी भर्ती’ के आरोपों का जवाब भी है।
मंच पर जिन 15 सिपाहियों को नियुक्ति पत्र दिए गए, उनमें संत कबीरनगर के सत्यम नायक, खीरी के प्रेम सागर, फरुर्खाबाद की शालिनी शाक्य, बलिया के उपेंद्र कुमार यादव, बरेली की शिल्पा सिंह, कानपुर देहात के बीनू बाबू, महोबा के योगेंद्र सिंह, उन्नाव के शिवांश पटेल, वाराणसी के मनीष त्रिपाठी, लखनऊ की रोशन जहां, कानपुर नगर के आजाद कुशवाहा, गोरखपुर की मिथिलेश भट्ट, रायबरेली की सोनी रावत, मऊ की नेहा गोंड और बागपत के सचिन सैनी शामिल थे।
इन नामों में ब्राह्मण, ठाकुर, यादव, कुशवाहा, गोंड, सैनी, शाक्या जैसे विविध जातीय समूहों का प्रतिनिधित्व था, जो यूपी के हर कोने से आए थे। यह चयन भाजपा की समावेशी नीति और जातीय संतुलन का साफ संदेश देता है। खासकर अगले साल होने वाले पंचायत चुनावों को देखते हुए।