अध्ययन: तापमान बढ़ने से आर्कटिक में पिघल रही बफीर्ली मिट्टी

नई दिल्ली। वैज्ञानिकों का कहना है कि पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने का असर सिर्फ उस इलाके तक सीमित नहीं रहेगा बल्कि दक्षिणी अमेरिका के अमेजन और अफ्रीका के साहेल क्षेत्र तक पड़ेगा।?इससे इन क्षेत्रों में भी जलवायु परिवर्तन का संकट और बढ़ सकता है, जो पहले से ही समग्र पर्यावरणीय असंतुलन के खतरे में हैं।
उत्तरी ध्रुवीय क्षेत्र यानी आर्कटिक धरती का वह क्षेत्र है जहां तापमान सबसे तेजी से बढ़ रहा है। यह इलाका शेष दुनिया की तुलना में करीब चार गुना तेजी से गर्म हो रहा है। इस बढ़ती गर्मी का सबसे बड़ा असर वहां की स्थायी रूप से जमी मिट्टी, जिसे पर्माफ्रॉस्ट कहा जाता है, पर पड़ रहा है। यह बफीर्ली मिट्टी अब धीरे-धीरे पिघलने लगी है। यह प्रक्रिया मिट्टी में मौजूद कार्बन को वायुमंडल में पहुंचा रही है, जिससे धरती का तापमान और बढ़ रहा है। मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर मीटरोलॉजी के शोधकतार्ओं के अनुसार पर्माफ्रॉस्ट वह मिट्टी होती है, जो हजारों वर्षों से लगातार जमी हुई है। इसमें बड़ी मात्रा में जैविक पदार्थ दबे हैं। ये जैविक पदार्थ जब तापमान बढ़ने से गलने लगते हैं, तो वे कार्बन डाइआॅक्साइड और मीथेन जैसी गैसों के रूप में वातावरण में मिल जाते हैं। ये गैसें पृथ्वी को गर्म करने वाली सबसे घातक गैसों में से हैं। यह प्रक्रिया अब एक निर्णायक बिंदु यानी ऐसा मोड़ ले सकती है, जिसके बाद इस प्रक्रिया को रोका नहीं जा सकेगा। यह जलवायु तंत्र के लिए एक ऐसी अवस्था है जो यदि एक सीमा के पार चली गई तो फिर इसे पहले जैसा लौटाना संभव नहीं होगा भले ही वैश्विक तापमान में गिरावट आने लगे।
वर्तमान में वैज्ञानिक उपग्रहों की मदद से पर्माफ्रॉस्ट में हो रहे परिवर्तनों का अध्ययन कर रहे हैं। उपग्रहों से प्राप्त चित्रों और आंकड़ों की मदद से यह पता लगाया जा सकता है कि किन स्थानों पर जमीन धंस रही है या झीलें बन रही हैं। यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी द्वारा संचालित हाल ही में छोड़े गए सेंटिनल उपग्रह इस कार्य में विशेष भूमिका निभा रहे हैं।
वैज्ञानिकों का कहना है कि पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने का असर सिर्फ उस इलाके तक सीमित नहीं रहेगा बल्कि दक्षिणी अमेरिका के अमेजन और अफ्रीका के साहेल क्षेत्र तक पड़ेगा।?इससे इन क्षेत्रों में भी जलवायु परिवर्तन का संकट और बढ़ सकता है, जो पहले से ही समग्र पर्यावरणीय असंतुलन के खतरे में हैं।
वैज्ञानिकों का कहना है कि पर्माफ्रॉस्ट पिघलने को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। एक बार जब यह मिट्टी पूरी तरह पिघलना शुरू हो जाती है तो उसमें मौजूद जैविक कार्बन धीरे-धीरे वर्षों तक वातावरण में घुलता रहता है। इसलिए वैज्ञानिक अब इस बात पर विशेष ध्यान दे रहे हैं कि पर्माफ्रॉस्ट की भूमिका को अच्छे से समझा जाए और इसकी गति को धीमा करने के लिए क्या काम किया जाए।