कब मनाई जाएगी वट सावित्री व्रत? यहां जानें शुभ मुहूर्त और पूजन का सही समय


हिंदू धर्म में पूर्णिमा और अमावस्या तिथि का खासा महत्व है क्योंकि इन तिथियों में आने वाले त्योहार शुभ फलदायी होती हैं। इस बार सुहागिन महिलाओं के लिए पूर्णिमा तिथि पर एक व्रत की तिथि आ रही है, जिसका हिंदू धर्म में अलग ही स्थान है। कहते हैं कि यह व्रत महिलाएं अखंड सौभाग्य के वरदान के लिए रखती हैं। इस व्रत का नाम है वट सावित्री पूर्णिमा व्रत।
कब है वट सावित्री पूर्णिमा व्रत?
इस बार ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा तिथि 10 जून को सुबह 11.35 बजे शुरू होगी, जो 11 जून की दोपहर 01.13 बजे तक चलेगी। चूंकि हिंदू धर्म में उदया तिथि को मान्यता दी जाती है इसीलिए वट सावित्री पूर्णिमा व्रत 10 जून को ही मनाई जाएगी। हालांकि दान देने की तिथि 11 जून को तय की गई है।
कैसे की जाती है वट सावित्री पूर्णिमा पूजा?
इस दिन महिलाओं को व्रत रखना चाहिए। साथ ही पूजा के लिए बांस की दो टोकरी लें। एक में 7 तरह के अनाज रखें और कपड़े के 2 टुकड़े से ढक दें। दूसरी टोकरी में मां सावित्री की तस्वीर या प्रतिमा रखें और धूप, दीप, कुमकुम अक्षत, मौली से पूजा करें। इसके बाद पास ही किसी वट वृक्ष की पूजा और परिक्रमा करें। जातक को वट वृक्ष पर रोली, कुमकुम और हल्दी चढ़ाना चाहिए। इसके बाद वृक्ष पर कच्चे सूत के धागे को 7,11 या फिर 21 बार परिक्रमा करते हुए लपेटना चाहिए। मान्यता है कि विधि पूर्वक वट सावित्री की पूजा करने से सावित्री की तरह सभी महिलाओं को सौभाग्य प्राप्त होता है। मान्यता है कि वट वृक्ष में त्रिदेव का वास है।
क्यों है इस व्रत का महत्व?
पौराणिक कथा के मुताबिक, वर्षों पहले एक राजा अश्वपति और रानी मालवी थे, उनकी कोई संतान नहीं थी, फिर उन्होंने देवी की कठोर तपस्या की और उन्हें एक पुत्री का वरदान मिला। उन्होंने उस कन्या का नाम सावित्री रखा। सावित्री जब विवाह योग्य हुई तो उन्होंने अपने पिता से एक साधारण युवक सत्यवान से शादी करने की इच्छा जताई। सावित्री के पिता ने सत्यवान के बारे में पता लगाया तो उन्हें पता चला कि सत्यवान एक वनवासी और अल्पआयु हैं। इसके बाद राजा अश्वपति चिंतित हो उठे और पुत्री को सत्यवान से शादी नहीं करने को कहा। लेकिन सावित्री अपने निर्णय पर अटल रहीं। बेटी के जिद के आगे पिता हार गए और सावित्री का विवाह सत्यवान से कर दिया।
अब सावित्री और सत्यवान खुशी-खुशी वन में जीवन यापन करने लगे। सावित्री को अपने पति के अल्पआयु की बात पता थी लेकिन उन्होंने पति से इस बात का जिक्र कभी नहीं किया और रोज भगवान से सत्यवान की आयु की प्रार्थना करती रहीं।
एक दिन सत्यवान जंगल में लकड़ी काटने गए थे, उनके साथ सावित्री भी थी। लकड़ी काटने के दौरान सत्यवान अचानक गिर पड़े और मृत्यु को प्राप्त हो गए। इसके बाद यमराज उनके प्राण लेने आए तो सावित्री ने यमराज का पीछा किया और जबतक यमराज मान नहीं गए तब तक अपने पति के प्राण लौटाने की प्रार्थना करती रहीं।
सावित्री की भक्ति और पतिव्रत धर्म को देख यमराज ने सत्यवान को जीवनदान दे दिया और स्वयं खाली हाथ यमलोक लौट गए।