उद्धव-राज ठाकरे आएंगे साथ? लगे पोस्टर
मुंबई । महाराष्ट्र की सियासत में कई दिनों से इस बात की चर्चा है कि उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे साथ आ सकते हैं। अब इसे लेकर सरगर्मी तेज हो गई है क्योंकि महाराष्ट्र में कई जगह दोनों नेताओं से एकजुट होने की अपील करते हुए पोस्टर लगाए गए हैं। साथ ही शिवसेना यूबीटी के मुखपत्र सामना में भी इसे लेकर लेख लिखा गया है। महाराष्ट्र की राजनीति में ठाकरे परिवार कमजोर हो गया है। शिवसेना यूबीटी बंटवारे के बाद कमजोर हो गई है। वहीं राज ठाकरे कई वर्षों की राजनीति के बाद भी प्रदेश की राजनीति में बड़े खिलाड़ी नहीं बन पाए हैं। यही वजह है कि दोनों पार्टियों के साथ आने की अपील की जा रही है।
मुंबई के गिरगांव इलाके में राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के साथ आने को लेकर एक पोस्टर लगाया गया है, जिसमें बाला साहेब ठाकरे के साथ ही उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे की तस्वीर है। इस पोस्टर में लिखा गया है कि- ‘महाराष्ट्र में परप्रांतियों के मंसूबे पूरे होने से पहले एक हो जाइए, 8 करोड़ मराठी जनता एक साथ आने के लिए बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं।’ इस पोस्टर के जरिए यह संदेश देने की कोशिश की गई है कि ठाकरे परिवार के एकजुट होने के लिए सार्वजनिक समर्थन मौजूद है।
शिवसेना यूबीटी के मुखपत्र सामना में भी शिवसेना यूबीटी और मनसे में संभावित गठबंधन को लेकर लेख लिखा गया। सामना में दावा किया गया कि उद्धव ठाकरे ने मनसे से गठबंधन को लेकर अपनी पार्टी के नेताओं के साथ बैठक की। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, मनसे प्रमुख भी इस मुद्दे पर अपनी पार्टी के नेताओं के साथ बैठक कर रहे हैं। मुंबई में एक कार्यक्रम के दौरान उद्धव ठाकरे से मनसे से गठबंधन को लेकर सवाल किया गया। जिस पर उद्धव ठाकरे ने मनसे के साथ गठबंधन की चचार्ओं को मजबूती देते हुए कहा कि ‘महाराष्ट्र के लोगों के मन में जो है, वही होगा। गठबंधन पर मैं कोई संदेश नहीं दूंगा, मैं सीधे खबर देता हूं।’
साल 1988 में राज ठाकरे शिवसेना के राजनीतिक मामलों में सक्रिय होना शुरू हुए। शुरूआत में राज ठाकरे के बेबाक अंदाज और जोशीले भाषण के चलते उन्हें ही बाल ठाकरे का उत्तराधिकारी माना जाने लगा। हालांकि 90 के दशक की शुरूआत में उद्धव ठाकरे भी राजनीति में सक्रिय हो गए। खुद बाल ठाकरे, उद्धव ठाकरे को राजनीति के गुर सिखा रहे थे। राज ठाकरे जहां बेबाक अंदाज के लिए जाने जाते हैं, वहीं उद्धव ठाकरे की पहचान विनम्र नेता की थी। साल 1996 राज ठाकरे की राजनीति के लिए टर्निंग पॉइंट साबित हुआ, जब ठाकरे एक व्यक्ति रमेश की मौत के मामले में फंस गए थे। रमेश की पत्नी ने आरोप लगाया कि राज ठाकरे और उनके आदमियों ने रमेश को एक किराए का मकान खाली करने के लिए मानसिक तौर पर प्रताड़ित किया था। इसे लेकर खूब राजनीतिक हंगामा हुआ और सीबीआई ने इस मामले में राज ठाकरे से पूछताछ भी की थी।
इससे राज ठाकरे की ताकत कम हुई। हालांकि राज ठाकरे को इस मामले में निर्दोष साबित हुए। हालांकि इस दौरान उद्धव ठाकरे ने शिवसेना पर अपनी पकड़ बना ली। इसके बाद राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के बीच कई नीतियों पर मतभेद हुए और कई मामलों में उद्धव ठाकरे को विरोध झेलना पड़ा। जिससे दोनों के बीच दूरियां बढ़तीं गईं। आखिरकार साल 2006 में राज ठाकरे ने मनसे का गठन कर लिया और शिवसेना से अलग हो गए।
मनसे के गठन के कुछ साल में पार्टी को अच्छी लोकप्रियता मिली और मनसे ने 2009 के विधानसभा चुनाव में 13 सीटों पर जीत दर्ज की और कई सीटों पर शिवसेना उम्मीदवारों की हार का कारण बनी। इसके बाद नगरपालिका चुनाव में भी मनसे का दबदबा साफ दिखा। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इस दौरान मनसे की बढ़ती ताकत को देखते हुए उद्धव ठाकरे ने राज ठाकरे को गठबंधन का आॅफर दिया था, जिसे राज ठाकरे ने ठुकरा दिया था। अब जब शिवसेना में बंटवारा होकर शिवसेना यूबीटी हो गई है और मनसे भी अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। ऐसे में इस बार राज ठाकरे ने गठबंधन का प्रस्ताव दिया, जिस पर उद्धव ठाकरे ने भी सकारात्मक जवाब दिया है।