इस महिला को नहीं आती थी अंग्रेजी, अब इसके नाम है ब्रिटेन कई पुरस्कार
पटना. बिहार की आशा को ब्रिटेन के प्रतिष्ठित एशियन बिजनेस वूमेन पुरस्कार से नवाजा गया है।सीतामढ़ी की रहने वाली आशा खेमका का अंग्रेजी से कोई सरोकार नहीं रहा था। लेकिन उसने अपनी काबिलियत से अपना यह मुकाम तय किया है। 65वर्षीय आशा को शुक्रवार को यह पुरस्कार दिया गया है।डेम कमांडर ऑफ द ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश अंपायर का पुरस्कार भी आशा के नाम…
आशा खेमका ने एशियन बिजनेस वूमेन पुरस्कार अपने नाम करने से पहले वर्ष 2013 में ब्रिटेन के सर्वोच्च नागरिक सम्मान डेम कमांडर ऑफ द ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश अंपायर का सम्मान भी अपने नाम कर चुकी हैं। आशा खेमका ब्रिटेन के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों में शुमार वेस्ट नॉटिंघमशायर कॉलेज की प्रिंसिपल हैं।
दिलचस्प है सफलता का सफर
आशा खेमका की सफलता की कहानी भी काफी दिलचस्प है। शादी के बाद आशा जब ब्रिटेन गईं, तो उसे अंग्रेजी तक नहीं आती थी। लेकिन अाशा ने हार नहीं मानी और अंग्रेजी की पढ़ाई सुरू कर दी। इसके बाद फिर क्या था खेमका ने जज्बे के दम पर अंग्रेजी को अपने वश में कर लिया।
25 वर्ष में शुरू किया अंग्रेजी पढ़ना
आशा 13 वर्ष की कम उम्र में ही अपनी पढ़ाई छोड़ दी थी। 15 साल की उम्र में आशा की शादी डॉक्टर शंकर अग्रवाल से हो गयी। घर परिवार वालों ने उसकी शादी कर दी। शादी के बाद घर परिवार संभालते 25 की उम्र में वो पहुंच गयी। डॉक्टर पति इस बीच इंगलैंड में अपनी नौकरी पक्की कर लिया था। फिर वो अपने पति के पास अपने बच्चों के साथ ब्रिटेन पहुंचीं। अंग्रेजी का कोई ज्ञान नहीं होने के कारण उसे काफी परेशानी होती थी। तब आशा ने टीवी पर बच्चों के लिए आने वाले शो को देख अंग्रेजी सीखने शुरू किया।
टूटी-फूटी अंग्रेजी से पाया अंग्रेजी पर फतह
शुरुआत में टूटी-फूटी अंग्रेजी में ही सही, साथी युवा महिलाओं से बात करती थीं। लेकिन वो इससे परेशान नहीं होती और फिर वो हर दिन आगे बढ़ती गयी। इससे उसका आत्मविश्र्वास बढ़ता गया। फिर उसने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। कुछ सालों बाद कैड्रिफ विवि से बिजनेस मैनजमेंट की डिग्री ली और ब्रिटेन के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों में शुमार वेस्ट नॉटिंघमशायर कॉलेज में व्याख्याता के पद पर योगदान दिया। अब वो इसी कॉलेज की प्रिसिंपल हैं।