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आदिवासियों की अनोखी परंपरा, टूरिस्ट भी पहुंचे उनके ‘प्रेम’ का मेला देखने

झाबुआ/आलीराजपुर/इंदौर.मध्य प्रदेश के निमाड़ में फेमस भगोरिया मेला गुरुवार से शुरू हो गया है। यह भील और भिलाला आदिवासियों की प्रेम और शादी से जुड़ा पारंपरिक मेला है। शनिवार को वालपुर के भगोरिया मेले में टूरिस्टों की भरमार रही। कहां और कैसे होता है ये मेला?…
होली से एक हफ्ते पहले शुरू होता है मेला
– निमाड़ इलाके के झाबुआ, धार, बडवानी और आलीराजपुर में होली के मौके पर भगोरिया पर्व मनाया जाता है।
– होली से पहले शुरू होकर मेला होली के दिन समाप्त हो जाता है। आदिवासी साल भर इसका इंतज़ार करते हैं।
– वैसे रबी फसलों की खेती पूरी हो जाने से भी इस पर्व को जोड़कर देखा जाता है।
– मेले के दौरान आदिवासी ताड़ी की खुमारी में दिनभर डांस करते हैं।
कैसे करते हैं प्रेम का इजहार?
– ढोल-मांदल की थाप पर सज-धजकर युवा मेले में आते हैं। आदिवासी युवतियां भी रंग-बिरंगे कपड़ों में सजकर पहुंचती हैं।
– लड़के मनपसंद हमसफर तलाशते हैं। तलाश पूरी होने पर वे लड़की को पान खिलाते हैं।
– फेस्टिवल के दौरान लड़के जिस लड़की को चाहते हैं उसके फेस पर रेड पाउडर लगाते हैं और अगर लड़की को यह रिश्ता मंजूर है तो वह लड़के को भी वही पाउडर लगाती है। इसके बाद वे दोनों भाग जाते हैं।
– लेकिन अगर पहले चांस में अगर लड़की राजी न हुई तो लड़के को उसे मनाने के लिए और कोशिश करनी होती है।
– भागने की वजह से ही इसे ‘भगोरिया पर्व’ कहा जाता है।
– इसके कुछ दिनों बाद आदिवासी समाज उन्हें पति-पत्नी का दर्जा दे देता है।
कैसे शुरू हुआ भगोरिया
– ऐसी मान्यता है कि भगोरिया की शुरुआत राजा भोज के समय से हुई थी। उस समय दो भील राजाओं कासूमार औऱ बालून ने अपनी राजधानी भगोर में मेले का आयोजन करना शुरू किया।
– धीरे-धीरे आस-पास के भील राजाओं ने भी इन्हीं का अनुसरण करना शुरू किया, जिससे हाट और मेलों को भगोरिया कहने का चलन बन गया। हालांकि, इस बारे में लोग एकमत नहीं हैं।
– उधर, भील जनजाति में दहेज का रिवाज़ उल्टा है। यहां लड़की की जगह लड़का दहेज देता है। इस दहेज से बचने के लिए ही भगोरिया परंपरा का जन्म हुआ था।
मेले में और क्या?
– युवकों की अलग-अलग टोलियां सुबह से ही बांसुरी-ढोल-मांदल बजाते मेले में घूमते हैं।
– वहीं, आदिवासी लड़कियां हाथों में टैटू गुदवाती हैं। आदिवासी नशे के लिए ताड़ी पीते हैं।
– हालांकि, वक्त के साथ मेले का रंग-ढंग बदल गया है। अब आदिवासी लड़के ट्रेडिशनल कपड़ों की बजाय मॉडर्न कपड़ों में ज्यादा नजर आते हैं।
– मेले में गुजरात और राजस्थान के ग्रामीण भी पहुंचते हैं। हफ्तेभर काफी भीड़ रहती है।

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