शोध: पानी में विषैली धातुओं का पता लगाएगा नया सेंसर

आईआईटी बॉम्बे और आस्ट्रेलियाई विश्वविद्यालय ने किया विकसित
मुंबई। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) बॉम्बे और आॅस्ट्रेलिया की मोनाश यूनिवर्सिटी के शोधकतार्ओं ने पानी में जहरीली भारी धातुओं का पता लगाने के लिए एक किफायती व प्रभावी सेंसर विकसित किया है। यह सेंसर तांबा आधारित मेटल-आॅर्गेनिक फ्रेमवर्क (एमओएफ) तकनीक पर बना है, जो पानी में सूक्ष्म मात्रा में मौजूद सीसा (लेड), कैडमियम और पारा (मर्करी) जैसी खतरनाक धातुओं को चंद सेकंड में पहचान सकता है। वैज्ञानिकों का दावा है कि यह सस्ता व पोर्टेबल सेंसर ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में पानी की गुणवत्ता की निगरानी में क्रांति ला सकता है। इस तकनीक का इस्तेमाल औद्योगिक कचरे की निगरानी और पेयजल स्रोतों की सुरक्षा में भी किया जा सकेगा। पर्यावरणविदों ने इस खोज को भारत में जल प्रदूषण नियंत्रण की दिशा में एक बड़ा कदम बताया है।
आईआईटी बॉम्बे ने शुक्रवार को जारी बयान में कहा कि जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) की फंडिंग से विकसित यह सेंसर पर्यावरणीय सुरक्षा और जन स्वास्थ्य के लिए बड़ी उपलब्धि है। भारी धातुएं पानी में मिलने पर लंबे समय तक बनी रहती हैं और जीवों के शरीर में जमा होकर गंभीर बीमारियों का कारण बनती हैं। इनके संपर्क में आने से त्वचा, हड्डियों, मस्तिष्क व अन्य अंगों को नुकसान पहुंचता है, खासकर बच्चों के लिए यह घातक है।
पारंपरिक सेंसर के मुकाबले 10 गुना अधिक संवेदनशील
बयान के अनुसार, शोधकतार्ओं ने तांबे और कार्बनिक यौगिक टेट्राकिस पोर्फिरिन से कॉपर-टेट्रा कार्बोक्सीफेनिल पोर्फिरिन नामक एमओएफ बनाया, जो पारंपरिक सेंसर के मुकाबले 10 गुना अधिक संवेदनशील है। यह सेंसर प्रति मिलीलीटर पानी में कुछ परमाणुओं की मात्रा में भी धातुओं का पता लगा सकता है। आईआईटी बॉम्बे-मोनाश रिसर्च अकादमी के शोधार्थी व शोधपत्र के प्रथम लेखक प्रशांत कन्नन ने बताया, इस एमओएफ में दो तांबे के परमाणु टीसीपीपी अणु से जुड़कर ‘पैडल-व्हील’ संरचना बनाते हैं। भारी धातुएं इस संरचना में तांबे की जगह लेकर सेंसर को सक्रिय कर देती हैं, जिससे उनकी मौजूदगी का संकेत मिल जाता है। बाजार में उपलब्ध डीएनए-आधारित सेंसर्स (सोने के मानक) के साथ तुलना में यह उतना ही या बेहतर प्रदर्शन करता है। कन्नन के मुताबिक, यह डिवाइस कम जटिल होने के बावजूद अत्याधुनिक तकनीक से मुकाबला करता है।