ब्राह्मण थे पूर्वज तो मुस्लिम कैसे बने शेख अब्दुल्ला:बहन-बहनोई ने मिलकर गिराई फारूक की सरकार; CM की कुर्सी के लिए बाप से भिड़ा बेटा

नवंबर 2008, एक तरफ मुंबई में हुए आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के संबंधों में तनाव था। वहीं, दूसरी तरफ जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव हो रहे थे। फारूक अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस साथ मिलकर चुनाव लड़ रहे थे।

29 दिसंबर को चुनाव परिणामों में 87 सीटों वाली जम्मू-कश्मीर विधानसभा में नेशनल कॉन्फ्रेंस को 28 और कांग्रेस को 17 सीटें मिलीं। फारूक अब्दुल्ला का चौथी बार CM बनना तय माना जा रहा था। पार्टी के ज्यादातर सीनियर नेता चाहते थे कि फारूक ही CM बनें।

फारूक ने दो मौकों पर खुलकर मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा भी जाहिर की थी। इसी बीच पार्टी में दबी जुबान उमर अब्दुल्ला को CM बनाने की मांग उठने लगी। फारूक की बेटी सफिया अपने पिता के मुख्यमंत्री बनने का समर्थन कर रही थीं, जबकि पत्नी मौली अब्दुल्ला बेटे उमर को CM बनाने के पक्ष में थीं।

इंडियन एक्सप्रेस के पत्रकार मुजम्मिल जलील लिखते हैं कि यह तय हो गया कि 5 जनवरी 2009 को नेशनल कांफ्रेंस पार्टी के नेता CM शपथ लेंगे, लेकिन नाम तय नहीं हो पा रहा था। 4 जनवरी की देर रात तक फारूक विधायकों से मिलते रहे। वह तय नहीं कर पा रहे थे कि खुद मुख्यमंत्री बनें या बेटे को CM पद की शपथ दिलाएं।

आखिर में उमर को CM बनाने के लिए लंदन में रह रही उनकी मां मौली ने मोर्चा संभाला। मौली ने पति से बात करके अगली पीढ़ी के हाथ में सत्ता देने की बात कही, जिसे फारूक ने मान लिया। उमर के नाम पर कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी भी राजी हो गईं।

5 अगस्त को उमर अब्दुल्ला CM पद की शपथ लेने पहुंचे तो वहां पूरा अब्दुल्ला परिवार नजर आया। उनकी मां मौली अब्दुल्ला के साथ उमर की बहनें सफिया और सारा भी वहां मौजूद थीं।

शेख अब्दुल्ला परिवार की कहानी की शुरुआत झेलम नदी के किनारे बसे श्रीनगर के सौरा इलाके से होती है। शेख अब्दुल्ला अपनी आत्मकथा ‘आतिश-ए-चिनार’ में लिखते हैं कि उनके पूर्वज सप्रू गोत्र के कश्मीरी पंडित थे। उनके दादा का नाम बालमुकुंद कौल था। सूफी मीर अब्दुल रशीद बैहाकी से प्रभावित होकर उनके दादा ने इस्लाम अपना लिया।

1905 में शेख अब्दुल्ला के जन्म से 2 हफ्ते पहले ही उनके पिता शेख मोहम्मद इब्राहिम का इंतकाल हो चुका था। शेख 9 भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। बचपन में वे पढ़ाई के साथ-साथ अपनी पुश्तैनी शॉल की दुकान पर भी काम करते थे।

हायर स्टडीज के लिए शेख अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी गए और 25 साल की उम्र में मास्टर्स करके वापस घाटी लौट आए। कश्मीर में डोगरा शासन के समय कश्मीरी मुस्लिमों के हक लिए वे सक्रिय हो गए।

इसी दौरान 1932 में चौधरी गुलाम अब्बास के नेतृत्व में एक नई पार्टी बनी, जिसका नाम ‘मुस्लिम कॉन्फ्रेंस’ रखा गया। शेख इस पार्टी से जुड़े और अपनी लीडरशिप स्किल से फेमस हो गए।