कारगिल विजय के 25 साल:सगाई की अंगूठी ऑफिसर को सौंपी, कहा- न लौटूं तो मंगेतर तक पहुंचा देना; शहीद कैप्टन अनुज नैय्यर की कहानी
‘अभी तक कोई ऐसा माई का लाल नहीं मिला जो मुझसे जीत पाए। वो दिन कभी नहीं आएगा जब मुझे हार का स्वाद चखना पड़ेगा। डर नाम का कोई वर्ड उस डिक्शनरी में है ही नहीं जो आपने मुझे दी है।’
ये शब्द कैप्टन अनुज नैय्यर के हैं। ये खत उन्होंने शहीद होने से पहले अपने पिता को लिखा था। 26 जुलाई को कारगिल विजय के 25 साल पूरे हो रहे हैं। हम याद कर रहे हैं इस जीत के योद्धाओं को। इस स्टोरी में कहानी द्रास के टाइगर कैप्टन अनुज नैय्यर की…
जाट रेजिमेंट भारतीय सेना की लंबे समय से सेवा करने वाली रेजिमेंटों में से एक है। 6 जुलाई 1999 को 17वीं जाट रेजिमेंट की टीम ने अपना नारा लगाया जाट बलवान, जय भगवान। कारगिल की पॉइंट 4875 चोटी पर दुश्मन का कब्जा था। अपनी जमीन को वापस लाने की जिम्मेदारी इसी टीम पर थी। टीम की कमान 24 साल के कैप्टन अनुज नैय्यर के पास थी।
वे कुछ दिन पहले ही लेफ्टिनेंट से प्रमोट होकर कैप्टन बने थे। ऊंचाई पर बैठा दुश्मन हमारे जवानों पर सीधा अटैक कर रहा था। दुश्मन ऐसी पोजिशन पर था कि आसानी से भारतीय जवानों को मार सकता था। इस कारण फैसला किया गया कि रात के अंधेरे में दुश्मन से लोहा लिया जाएगा।
दिन ढलते ही कैप्टन अनुज की टीम ने चढ़ाई शुरू की। जबरदस्त सर्दी के बीच भूखे-प्यासे जवान आगे बढ़ रहे थे। सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन शातिर दुश्मन की नजर पड़ गई। अचानक फायरिंग होने लगी। कैप्टन अनुज की टीम ने भी जवाबी फायरिंग शुरू की। दुश्मन पूरी तैयारी से मोर्चा जमाए बैठा था। न सिर्फ उसके पास ज्यादा मैन पावर था, गोला-बारूद भी भरपूर था। छिपने की जगह थी नहीं, इसलिए एक के बाद एक अनुज की टीम के कई साथी शहीद होते गए।
कैप्टन अनुज भी जख्मी हुए, लेकिन पीछे नहीं हटे। वे आगे बढ़ते रहे। खून से सनी उंगलियां बंदूक के ट्रिगर से हटने का नाम नहीं ले रही थीं। वे लगातार दुश्मन पर फायरिंग कर रहे थे। एक के बाद एक कैप्टन अनुज ने 9 पाकिस्तानियों को मार गिराया। पाकिस्तानी सेना के तीन बड़े बंकर बर्बाद कर दिए।
रात तेजी से कटती जा रही थी। सुबह के करीब 5 बज चुके थे। उजाला हो चुका था। दुश्मन अब आसानी से हमारे जवानों को देख सकते थे। जब अनुज ने अपने आसपास देखा तो कई साथी शहीद पड़े हुए थे।
अनुज ने जैसे कसम खा रखी थी कि आज ही मैं पॉइंट 4875 चोटी पर तिरंगा लहरा कर रहूंगा। 24 साल का गर्म खून उबाल ले रहा था। अनुज ने तय किया कि आगे बढ़ना चाहिए। उनके साथी ने रोका कि अब उजाला हो गया है। हालात दुश्मन के फेवर में हैं। हमें रात तक फिर इंतजार करना चाहिए। अगर आगे बढ़े तो दुश्मन देख लेगा।
अनुज को अपने पिता की बात याद थी कि जंग में पीठ मत दिखाना। उन्होंने सिर पर कफन बांधा और पाकिस्तान के चौथे बंकर के ऊपर टूट पड़े। उन्होंने जैसे ही फायरिंग शुरू की, बम का एक गोला उनके ऊपर आकर गिरा और वे शहीद हो गए, लेकिन कैप्टन अनुज अपनी शहादत के साथ ही जीत की बुनियाद रख गए थे। कुछ ही घंटों बाद पॉइंट 4875 पर तिरंगा फहराने लगा। मरणोपरांत कैप्टन अनुज को महावीर चक्र सम्मान से नवाजा गया।