व्यापार समाचार

पश्चिम एशिया संकट से कच्चे तेल की कीमतों में उछाल

नई दिल्ली । पश्चिम एशिया में बढ़ते सकंट से वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में तेजी देखी जा रही है। इसका असर भारत पर भी देखने को मिल सकता है। खासकर भारतीय तेल विपणन और गैस कंपनियों को वित्तीय दबाव का सामना कर सकती हैं।
वर्तमान में कच्चे तेल की कीमतों में जारी अस्थिरता के कारण कंपनियां मिली-जुली स्थिति का सामना कर रही हैं। आईआईसीआई सिक्योरिटीज की एक रिपोर्ट के अनुसार, फिलहाल कच्चे तेल की कीमत 73 से 74 डॉलर प्रति बैरल है। इसके बावजूद तेल विपणन कंपनियों (ओएमसी) की आय पर प्रभाव पड़ रहा है। वहीं, अपस्ट्रीम कंपनियों की आय में वृद्धि हो सकती है। अपस्ट्रीम कंपनियां, तेल और गैस उद्योग के शुरूआती हिस्से में काम करती हैं, जो कि जमीन से तेल और गैस निकालने की प्रक्रिया है। इसका गैस कंपनियों पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। एलएनजी का संबंध कच्चे तेल से जुड़ा है, अगर कच्चे तेल की कीमत बढ़ती है तो एलएनजी की भी कीमत बढ़ेगी।
रिपोर्ट में कहा गया कि विश्लेषक तेल के बाजारों पर नजर रखे हुए हैं। साथ ही कहा गया कि तेल की कीमतों में यह उछाल वित्त वर्ष 2025 में हुई वृद्धि से अब भी कम है। मौजूदा उछाल पिछले चार साल के औसत से काफी नीचे है। वर्तमान में ब्रेंट क्रूड की कीमत लगभग 75 डॉलर प्रति बैरल है। यह विश्लेषकों के वित्त वर्ष 2026 के 68 डॉलर अनुमान से करीब 6-7 डॉलर अधिक है। फिर भी, कच्चे तेल की कीमतें वित्त वर्ष 22-25 के औसत से 9 डॉलर कम और वित्त वर्ष 25 के औसत से 4 डॉलर कम बनी हुई है। मांग में कमी बाजार पर हावी है।
हांलाकि, ऊर्जा कंपनियों के शेयर में उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहे हैं। यह वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच बाजार की चिंताओं को दशार्ता है। इसके पीछे होर्मुज जलडमरूमध्य पर गहराता संकट है। होर्मुज जलडमरूमध्य दुनिया के महत्वपूर्ण समुद्री मार्गों में से एक है, क्योंकि यह फारस की खाड़ी और ओमान की खाड़ी को जोड़ता है। दुनिया के तेल परिवहन का एक बड़ा हिस्सा इसी रास्ते से गुजरता है। भारत के दो-तिहाई से अधिक तेल आयात और लगभग आधे तरलीकृत प्राकृतिक गैस (एलएनजी) आयात होर्मुज जलडमरूमध्य से होकर ही गुजरते हैं। अगर इस मार्ग में कोई भी बाधा उत्पन्न होती है, तो भारत को दूसरे स्रोतों और मार्गों की तलाश करनी पड़ सकती है।

Related Articles

Back to top button