इनके चलते बदले मर्चेंट नेवी के नियम, बनीं देश की पहली महिला चीफ ऑफिसर

भोपाल.मर्चेंट नेवी में ज्यादा जोखिम वाले कार्यों से महिलाओं को दूर रखा जाता था, लेकिन सुनेहा अड़ गईं और उन्हें पहली पोस्टिंग तेलवाहक जहाज पर मिली। इन्हें बार-बार अयोग्य करार देने की कोशिश हुई, लेकिन वे लगातार आगे बढ़ती रहीं। बाद में वह राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित 100 वुमन अचीवर्स में शामिल हुईं।कैसा रहा सुनेहा का सफर…
-भोपाल में रहने वाली सुनेहा गनपांडे बचपन से ही पिता और भाई को पुरुषों वाले काम करते देख उनके जैसा कुछ करना चाहती थीं।
-खेलकूद में भी उनके ज्यादा दोस्त लड़के ही होते थे। कॉलेज में आईं तो अपने लिए कुछ चैलेंजिंग जॉब तलाशना शुरू कर दिया।
-उन्हें इसका मौका इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी होते-होते मिल गया। उन्होंने मर्चेंट नेवी के लिए आवेदन किया और उनका चयन ट्रेनिंग के लिए हो गया।
सुनेहा को चुना बैच कमांडर…
-सुनेहा की शुरुआत अच्छी थी, लेकिन चुनौतियों की शुरुआत अब होने वाली थी।
– शिपिंग काॅर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया ने 800 ट्रेनीज के बीच सुनेहा को बैच कमांडर चुना।
– ट्रेनिंग के दौरान लड़के और लड़कियों के बीच कोई अंतर नहीं था।
बदले मर्चेंट नेवी के नियम
-समस्या तब हुई जब पोस्टिंग शुरू हुई। अफसरों का स्पष्ट आदेश था कि महिला अफसरों को पहले पैसेंजरशिप पर पोस्टिंग दी जाए। उनका तर्क था कि सी- शिप में बहुत खतरे और चुनौतियां होती हैं, जिन्हें झेलना महिलाओं के लिए मुश्किल होगा।
-सुनेहा यह मानने को तैयार नहीं हुईं। उन्होंने किसी भी पैसेंजरशिप पर ज्वाॅइन करने से इंकार कर दिया। पूरे बैच की पोस्टिंग रोक दी गई। आखिरकार उनकी ज़िद के आगे अधिकारी झुक गए और सुनेहा को पहली पोस्टिंग तेलवाहक जहाज़ पर दी गई।
दिया शिप से बाहर जाने का आदेश
-उनकी पोस्टिंग से शिप के चीफ अफसर बेहद नाखुश थे। उन्होंने हेडक्वार्टर को लैटर लिखा कि एक महिला अफसर के कारण बाकी स्टाफ को मुश्किल होती है। उनके विरुद्ध कई बार तरह-तरह के आरोप लगाए गए और पुरुषों के मुकाबले कम दक्ष बताकर शिप से बाहर जाने का आदेश तक दिया गया। हर कदम पर वे स्वयं को साबित करती रहीं।
-कई बार उन्हें खुद भी लगा कि उन्हें वापस आ जाना चाहिए, पर उन्होंने ये सोचकर शिप पर बने रहने का निर्णय लिया कि फिर कभी लड़कियों को इस काम में शामिल नहीं किया जाएगा। सुनेहा जिस जहाज पर थीं, उसमें दो से तीन लाख टन तक तेल का ट्रांसपोर्टेशन किया जाता था।
शिप पर वे अकेली महिला थीं
-वे शिप को नेविगेट करती, टैंकर को लोड और अनलोड करतीं तथा डेक पर लगातार बारह से अठारह घंटों तक पुरुषों के साथ बराबरी से काम करती। शिप पर वे अकेली महिला थीं, जहां न महिलाओं के लिए किसी प्रकार की इमरजेंसी फैसिलिटी थी, न ही कोई नियम-कायदे।
-सारे नियम केवल पुरुषों को केंद्रित करके बनाए गए थे। जहाज़ एक बार समंदर में उतरता तो लगातार एक से चार महीनों तक पानी में ही रहता था। घर और परिवार से किसी भी तरह का सम्पर्क केवल सैटेलाइट फोन द्वारा ही किया जा सकता था।
100 वुमन अचीवर्स में हुआ चयन
-आखिरकार सुनेहा की मेहनत रंग लाई और वे देश की पहली ऐसी महिला बनी जो शिप पर चीफ ऑफिसर इन सेकंड कमांड के ओहदे पर कार्य कर रहीं हैं।
-वे कैप्टन बनने से केवल एक कदम की दूरी पर हैं। ऐसा होते ही एक और रिकॉर्ड उनके नाम होगा। वे दुनिया की पहली महिला बन जाएंगी, जो किसी जहाज़ की कैप्टन होंगी।
-उनके साहस और चुनौतीपूर्ण करियर को देखते हुए उनका चयन भारत की प्रथम 100 वुमन अचीवर्स में हुआ और राष्ट्रपति ने उन्हें सम्मानित किया।