सीरिया गृह युद्ध के 12 साल पूरे हुए:सिर्फ अलेप्पो में 51 हजार लोग मारे गए, खंडहर में बदला शहर; जंग के बारे में सब कुछ
कल्पना कीजिए कि जिस शहर या गांव में आप ने जन्म लिया, जहां आपने बचपन बिताया वो खंडहर में तब्दील हो जाए। जो गलियां कभी बाजार की चहल-पहल में व्यस्त होती थीं, वो जंग के मैदान में बदल जाएं और अपने ही अपनों की जान ले रहे हों। मात्र कल्पना कर लेने से यह स्थिति इतनी खौफनाक लगती है, लेकिन सीरिया के अलेप्पो में रह रहे लोगों के लिए यह उनकी हकीकत है।
मार्च में सीरिया की जंग के 12 साल पूरे हो गए। इतने सालों में अकेले अलेप्पो शहर में 51 हजार से ज्यादा लोगों की जान गई है। अलेप्पो शहर की 35 हजार इमारतें तबाह हो गईं। जंग की वजह से सीरिया की 6 UNESCO वर्ल्ड हेरिटेज साइट को भारी नुकसान हुआ।
इस जंग के 12 साल पूरे होने पर इस स्टोरी में जानेंगे ये जंग हुई क्यों? इसमें अलेप्पो शहर ने क्या-क्या खो दिया?
सबसे पहले जानें जंग के हालात कैसे बने?
2011 में जब अरब क्रांति की चिंगारी सीरिया तक पहुंची, तो वहां भी लोगों ने बशर-अल-असद की तानाशाही के खिलाफ आवाज बुलंद करना शुरू कर दिया। अलजजीरा की रिपोर्ट के मुताबिक सरकार के खिलाफ प्रदर्शन तब शुरू हुआ, जब सीरिया के डेरा इलाके में पुलिस ने कुछ स्कूल के बच्चों को हिरासत में ले लिया। उसकी वजह केवल यह थी कि उन बच्चों ने बशर-अल-असद के खिलाफ स्कूल की दीवार पर कुछ नारे लिख दिए थे।
काफी दिनों तक जब उन बच्चों को पुलिस ने नहीं छोड़ा तो हजारों की तादाद में लोग शांतिप्रिय प्रदर्शनों के लिए सड़कों पर उतर आए। ‘आर्मी और हम एक हैं’ के नारे लगा रहे लोगों पर सेना ने गोलियां चलाना शुरू कर दिया। शुरुआत में इस गोलीबारी में दो या तीन लोगों की मौत हुई थी, लेकिन उसके बाद लोगों में आक्रोश बढ़ना शुरू हो गया। वो लगातार प्रदर्शन के लिए सड़कों पर उतरने लगे।
अब बात केवल उन बच्चों की नहीं रही थी बल्कि लोगों के हकों और उनके अधिकारों पर आ गई थी। धीरे-धीरे यह प्रदर्शन डेरा से दमास्कस, होम्स, हाना, लताकिया, बनियास, से होते हुए 2012 में अलेप्पो शहर तक पहुंच गया।
जैसे-जैसे प्रदर्शन बढ़ता गया, वैसे-वैसे बशर-अल-असद के इशारों पर आर्मी की ज्यादतियां भी बढ़ने लगीं। अब आर्मी एक या दो लोगों को नहीं बल्कि हर प्रदर्शनकारी को निशाना बनाने लगी थी। आर्मी की ज्यादतियों से तंग आकर कुछ प्रदर्शनकारियों ने आर्मी को उसी की भाषा में जवाब देना शुरू कर दिया और हथियार उठा लिए।
जब लोकतंत्र के लिए सीरिया में हो रही लड़ाई की खबर बाहर देशों में पहुंची तो वहां रह रहे सीरियाई नागरिकों ने विद्रोह में हिस्सा लेने के लिए वापस सीरिया की तरफ कूच किया। हथियारों के जरिए विद्रोहियों को मदद पहुंचाना शुरू कर दिया। सरकार के खिलाफ लड़ रहे विद्रोही जल्द ही संगठित हो गए और फ्री सीरियन आर्मी के नाम से सरकार के खिलाफ लड़ने लगे।
सीरिया के गृहयुद्ध में तबाह हो गया अलेप्पो शहर
1986 में UNESCO से वैश्विक धरोहर का दर्जा हासिल करने वाला और दुनिया के सबसे पुराने शहरों में से एक अलप्पो शहर 2012 के आते-आते सीरिया के गृह युद्ध की अहम जगह बन गया था। सीरिया का अलेप्पो शहर न सिर्फ वैश्विक धरोहर बल्कि देश की अर्थव्यवस्था का केंद्र भी था, खूबसूरत मस्जिदों और कलाकृतियों से सजा हुआ यह शहर देखते ही देखते अपनों के हाथों ही तबाह हो गया।
जुलाई 2012 तक अलेप्पो दो हिस्सों में बंट चुका था, जिसका एक हिस्सा फ्री सीरियन आर्मी के पास था और दूसरा बशर अल-असद के कब्जे में। सरकार की मदद करने वाले देशों में रूस, ईरान, इराक, अफगानिस्तान लेबनान और पाकिस्तान शामिल था। वहीं विद्रोहियों को अमेरिका, सऊदी अरब और तुर्किये से मदद मिल रही थी। सरकार के हवाई हमलों में वह सारी खूबसूरत कलाकृतियां मस्जिद और सांस्कृतिक धरोहर खो गई जिसके लिए यह शहर जाना जाता था।
कितना बदल गया अलेप्पो शहर
2012 से 16 तक अलेप्पो में लगभग 31,183 लोगों की जान चली गई थी, जिसमें 22,604 आम नागरिक थे, जो न फ्री सीरियन आर्मी का समर्थन करते थे और ना ही बशर-अल-असद का। वहां की सांस्कृतिक धरोहर की बात की जाए तो लड़ाई के चलते ग्रेट मॉस्क ऑफ अलेप्पो के नाम से मशहूर मस्जिद ग्रेनेड और हवाई हमलों में काफी हद तक तहस-नहस हो गई। UNITAR की रिपोर्ट के मुताबिक 210 जानी-मानी संरचनाओं में से 22 पूरी तरह ध्वस्त हो गई और 48 संरचनाओं को काफी नुकसान पहुंचा।