वॉटर बर्थ में लेबर पेन 70% कम:पानी में बच्चा करे अच्छा महसूस, सिजेरियन से सस्ता, विदेशों का ट्रेंड भारत में बढ़ रहा
वॉटर बर्थ भारत में महिलाओं के बीच पॉपुलर होने लगा है। इस तकनीक के बारे में जानने से पहले दिल्ली के सीताराम भरतिया इंस्टीट्यूट में वॉटर बर्थ डिलीवरी करवाने वाली एक महिला के अनुभव को जानते हैं।
‘पहली बार मां बनने जा रही थी। बेबी के आने को लेकर बेहद खुश थी लेकिन जैसे-जैसे डिलीवरी का टाइम करीब आता गया, घबराहट बढ़ती गई। नॉर्मल या सिजेरियन की चिंता बनी रहती। तब मैंने पहली बार वॉटर बर्थ के बारे में सुना। फिर मैंने और मेरे हस्बैंड ने वॉटर बर्थ डिलीवरी को चुना। जो कंफर्टेबल भी रहा।’ गुंजन चोपड़ा फोटो देने में असहज महसूस कर कर रही थीं।
वॉटर बर्थ यानी पानी के भीतर बैठकर शिशु को जन्म देना। यानी जब एक्टिव लेबर पेन हो तो महिला को वॉटर पूल में ले जाकर बिठाया जाता है जहां न केवल उसे लेबर पेन से राहत मिलती है बल्कि बेबी की डिलीवरी में भी आसानी होती है।हिंदी और फ्रेंच फिल्मों में काम करने वाली मशहूर एक्ट्रेस कल्कि कोचलिन ने भी वॉटर बर्थ से अपनी पहली संतान को जन्म दिया था। कल्कि ने सोशल मीडिया पर अपनी फोटो शेयर की और बताया कि एक्टिव लेबर पेन में उन्होंने वॉटर बर्थ का ऑप्शन चुना और हेल्दी बेबी को जन्म दिया। कल्कि का जन्म भी वॉटर बर्थ से हुआ था।
तमिल एक्टर नकुल जयदेव की वाइफ श्रुति का पहला बेबी 2020 में और दूसरा बेबी 2022 में वॉटर बर्थ से ही हुआ। सेलिब्रेटीज ही नहीं, बल्कि मिडिल क्लास परिवारों की महिलाएं भी वॉटर बर्थ के तरीके को अपना रही हैं।दिल्ली स्थित सीताराम भरतिया इंस्टीट्यूट में IVF, ऑब्स्टट्रिशन और गाइनेकोलॉजिस्ट डॉ. प्रीति अरोड़ा धमीजा बताती हैं कि वॉटर बर्थ की प्रक्रिया किसी नॉर्मल डिलीवरी की तरह ही है। एक्टिव पेन में महिला को एक वॉटर पूल में बिठाया जाता है। आमतौर पर ये वॉटर पूल पोर्टेबल होते हैं। कुछ ही अस्पतालों में ये स्थायी रूप से बने होते हैं। पूल में बेबी बंप की हाइट तक गुनगुना पानी भरा होता है। कई बार आधे-एक घंटे के अंदर ही महिला शिशु को जन्म दे देती है। कई बार 5-6 घंटे का भी समय लग सकता है।
क्या वॉटर लेबर और वॉटर बर्थ एक ही है
कई बार लोग वॉटर लेबर और वॉटर बर्थ को एक ही समझ लेते हैं लेकिन ये दोनों अलग-अलग स्थितियां हैं। हालांकि दोनों में वॉटर पूल का ही इस्तेमाल होता है। अगर लेबर पेन को कम करने के लिए वॉटर पूल में महिला उतरती है तो इसे ‘वॉटर लेबर’ कहा जाता है। इस स्थिति में महिला वॉटर पूल में बच्चे को जन्म नहीं देती। लेकिन वॉटर बर्थ का मतलब है लेबर पेन कम करने के साथ, पूल में ही शिशु की डिलीवरी कराना।
वॉटर बर्थ में इसलिए कम महसूस होता है दर्द
गर्म पानी में महिलाएं रिलीफ महसूस करती हैं। इससे एड्रेनैलिन हॉर्मोन का स्तर गिरता और एंग्जाइटी कम होती है। ऑक्सीटोसिन और एंडोर्फिंस गुड हाॅर्मोन ज्यादा बनते हैं, जिससे दर्द कम महसूस होता है।
यंग मदर्स में लेबर पेन को लेकर रहता है डर
डॉ. प्रीति बताती हैं कि यंग मदर्स में लेबर पेन को लेकर डर बैठा रहता है। हम जब पूछते हैं कि फर्स्ट बेबी को लेकर आपके क्या इमोशंस हैं तो महिलाएं बताती हैं कि वो बहुत एक्साइटेड हैं लेकिन साथ ही डर भी रही हैं। यह डर लेबर पेन को लेकर होता है। वो मां, बहन और फ्रेंड्स के अनुभवों को लेकर डरी रहती हैं। उन्हें लगता है कि वो लेबर पेन को बर्दाश्त नहीं कर पाएंगी।
इसका कारण यह भी है कि आज युवतियां फिजिकल एक्टिविटी कम करती हैं। पहले घर के कई ऐसे काम होते थे जिसमें शरीर चुस्त बना रहता था। लड़कियों की डाइट भी ठीक नहीं हैं। फास्ट फूड और जंक फूड की वजह से प्रेग्नेंट वुमन को सही न्यूट्रिएंट्स नहीं मिल पाते। इसलिए उनका फिजिकल स्टेमिना पहले जैसा मजबूत नहीं रहा। लेबर पेन से बचने के लिए कई बार महिलाएं सिजेरियन डिलीवरी करा लेती हैं।
वॉटर बर्थ में 70% लेबर पेन कम हो जाता है
सीताराम भरतिया रिसर्च इंस्टीट्यूट दिल्ली की ऑब्स्टट्रिशन और गाइनेकोलॉजिस्ट डॉ. पंचमप्रीत कौर बताती हैं कि पेन रिलीफ की कई टेक्नीक हैं, जैसे- पार्टनर से सपोर्ट मिलना, ब्रीदिंग एक्सरसाइज का अभ्यास कराना, शरीर को हाइड्रेट रखना, सॉफ्ट म्यूजिक सुनना और एक्सरसाइज करना। दवाएं और इंजेक्शन भी दी जाती हैं। लेकिन वॉटर बर्थ को नेचुरल थेरेपी के रूप में देखा जाता है।
वॉटर पूल के टेंपेरेचर को मॉनिटर किया जाता है
डॉ. पंचमप्रीत बताती हैं कि वॉटर पूल में पानी भरने के लिए गर्म और नॉर्मल पानी दोनों रहता है। टेंपेरेचर चेक करने के लिए एक अलग थर्मामीटर पूल में लगा होता है। पानी अधिक गर्म होने पर इसमें ठंडा पानी मिलाया जाता है। पानी को 37 डिग्री सेल्सियस पर रखा जाता है।
पानी के अंदर भी बच्चे की हार्ट बीट मॉनिटर होती है
एक्टिव लेबर पेन में जब गर्भवती वॉटर पूल में बैठती है तो उसके सपोर्ट के लिए नर्सेज और डॉक्टर रहती हैं। एक वॉटर प्रूफ डॉपलर के जरिए हर 15 मिनट पर बच्चे की हार्ट बीट सुनी जाती है।
अगर किसी महिला को पूल में एंग्जाइटी होती है या वह किसी तरह की घबराहट की शिकायत करे तो वो उसे तुरंत पूल से बाहर निकालकर बेड पर लाया जाता है।
ब्रीदिंग के लिए महिलाएं लेती हैं लाफिंग गैस
वॉटर पूल में महिलाएं नॉजल के जरिए गैस लेती हैं। इसमें लॉफिंग गैस और ऑक्सीजन मिक्स होती है। महिलाएं खुद ही इसे कंट्रोल करती हैं। इससे उन्हें दर्द में काफी राहत मिलती है।
क्या वॉटर बर्थ सभी के लिए है?
वॉटर बर्थ वही प्रेग्नेंट वुमन करा सकती हैं जिनकी प्रेग्नेंसी में कम रिस्क होते हैं। अगर मदर का ब्लड प्रेशर, पल्स, कॉन्ट्रैक्शंस, हार्ट बीट ठीक है, पैसेज पेन के साथ खुल रहा है तो वो वॉटर बर्थ का ऑप्शन चुन सकती हैं।
ब्लूम हॉस्पिटल चेन्नई की ऑब्स्टट्रिशन और गाइनेकोलॉजिस्ट डॉ. कविता गौतम का कहना है कि अगर पहले किसी को सिजेरियन डिलीवरी हुई हो या किसी को जुड़वां बच्चे होने वाले हैं तो वॉटर बर्थ नहीं कराया जाता।
हाई बीपी या कोई सर्जरी हुई है तो वॉटर बर्थ से बचें
अगर हाई बीपी है, वॉटर फोबिया है, पहले से कोई सर्जरी हुई है या कोई और कॉम्पिलकेशंस हैं तो उन्हें वॉटर बर्थ नहीं कराया जाता। प्रेग्नेंसी के दौरान डायबिटीज रहने या समय से पहले ही लेबर पेन शुरू होने पर भी वॉटर बर्थ नहीं कराया जा सकता।
वॉटर बर्थ चुनने से पहले काउंसिलिंग जरूरी
डॉ. पंचमप्रीत बताती हैं कि जब कोई पेशेंट वॉटर बर्थ से डिलीवरी कराना चाहती है तो उससे पहले कपल की काउंसिलिंग कराई जाती है। उन्हें बताया जाता है कि कोई कॉम्प्लिकेशन नहीं होने पर ही ये ऑप्शन चुनें। इसमें लेबर पेन की प्रक्रिया नॉर्मल होनी चाहिए। अगर किसी को पैसिव लेबर पेन है यानी लेबर पेन का पता न लगे तो वॉटर बर्थ नहीं कराया जाता।
बेबी के लिए ज्यादा नेचुरल होता है
हैदराबाद में ‘हेल्दी मदर’ अस्पताल की की फाउंडर डॉ. विजया कृष्णन बताती हैं कि बच्चा मां के गर्भ में नौ महीने फ्लूड में ही रहता है। जब वो बाहर आता है तो सबसे पहले उसका संपर्क पानी से होता है। ऐसे में वो ज्यादा बेहतर फील करता है।
डॉ. प्रीति अरोड़ा धमीजा कहती हैं कि पूल में डिलीवरी होने पर भी बच्चे को पानी से तुरंत बाहर नहीं निकाला जाता। हालांकि लोगों में यह मिथ रहता है कि बच्चे ने कहीं पानी पी लिया या बच्चा पानी में डूब गया तो क्या होगा। जबकि ऐसा नहीं होता, डिलीवरी के बाद भी बच्चा नाभिनाल (अम्बिलिकल कॉर्ड) से जुड़ा रहता है। उसके शरीर का सारा सिस्टम पहले की तरह ही मदर के जरिए चलता रहता है। डॉ. प्रीति कहती हैं कि डिलीवरी के समय जैसे मां को लेबर पेन होता है वैसे ही बेबी को भी दर्द होता है। पानी में आने पर उसे भी राहत मिलती है।
दर्द से बचने के लिए सिजेरियन नहीं वॉटर बर्थ ज्यादा कारगर
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 के अनुसार, पूरे देश में 21.5% डिलीवरी सिजेरियन हो रही है। प्राइवेट अस्पतालों में तो 45-50% डिलीवरी सिजेरियन होती हैं। डॉ. प्रीति बताती हैं कि कई सिजेरियन ऐसे होते हैं जिसमें महिलाएं लेबर पेन बर्दाश्त नहीं कर पातीं। जबकि सिजेरियन डिलीवरी के कई नुकसान भी हैं। उसमें मां लेबर पेन से नहीं गुजरती, इसलिए कई हार्मोंस रिलीज नहीं होते। नतीजा वह बच्चे को ब्रेस्ट फीड नहीं करा पाती। बच्चे को भी आगे चलकर कई तरह के कॉम्प्लिकेशंस हो सकते हैं। इसलिए वॉटर बर्थ डिलीवरी का विकल्प बेहतर है।
बच्चे को जन्म देने के दौरान कॉम्प्लिकेशंस होने से देश में हर साल हजारों महिलाओं की जान चली जाती है। जागरुकता और सुविधाएं बढ़ने से इसमें कमी आई है। 1990 में जहां एक लाख बच्चों के जन्म पर 550 महिलाएं दम तोड़ देती थीं वहीं अब यह संख्या 97 पर आ गई है। डॉक्टरों का मानना है कि अगर वॉटर बर्थ का ट्रेंड बढ़ता है तो MMR (मदर मॉर्टलिटी रेट) में और कमी आएगी।