ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों के लोग लोन लेने में सबसे आगे; शहरी इलाकों में दिखी सुस्ती
नई दिल्ली । देश के ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में क्रेडिट मांग में मजबूती बनी हुई है। वहीं, मेट्रो और शहरी इलाकों में यह रुझान अपेक्षाकृत धीमा पड़ा है। ट्रांसयूनियन सिबिल डेटा के अनुसार, मार्च 2025 तिमाही में देश में समग्र ऋण मांग में कमी देखी गई। इसके बावजूद ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में यह बेहतर स्थिति में है। क्रेडिट मांग का मतलब है जब कोई व्यक्ति बैंक, एनबीएफसी या किसी अन्य वित्तीय संस्था से कर्ज लेता है। क्रेडिट मांग में मजबूती का मतलब ज्यादा निवेश है, जबकि कमजोर मांग मंदी की ओर इशारा करती है।
रिपोर्ट के अनुसार मार्च 2025 तिमाही के दौरान ग्रामिण क्षेत्रों में क्रेडिट पूछताछ की हिस्सेदारी बढ़कर 22 प्रतिशत हो गई। यह 2023 में और 2024 में 20% थी। दूसरी ओर, अर्ध- शहरी क्षेत्रों की हिस्सेदारी भी बढ़कर 30% हो गई। यह पिछले साल 29% थी और 2023 में 28 प्रतिशत थी। इसकी तुलना में, मेट्रो क्षेत्रों में मामूली गिरावट देखने को मिली। यह मार्च 2023 में 32 प्रतिशत से घटकर 2025 में 29% रह गई। शहरी क्षेत्रों ने तीन वर्षों के दौरान 19 से 20 प्रतिशत की स्थिर हिस्सेदारी बनाए रखी।
आंकड़ों से पता चला कि समग्र क्रेडिट मांग में कमी आई है, खासतौर पर युवा उपभोक्ताओं के बीच। आयु वर्ग के लिहाज से देखें तो 26झ्र35 वर्ष के आयु वर्ग की हिस्सेदारी में गिरावट आई है। मार्च 2023 और 2024 में यह आंकड़ा 41% था, जो 2025 में घटकर 39% रह गया है। इस बीच, 25 वर्ष से कम आयु वालों की हिस्सेदारी 17 से 18 प्रतिशत तक स्थिर रही। वहीं 36झ्र45 वर्ष के आयु वर्ग में पूछताछ बढ़कर 25% हो गई है, जो पहले 24% थी। 45 से 55 वर्ष और 55 वर्ष से अधिक आयु वर्ग की हिस्सेदारी स्थिर बनी रही।
रिपोर्ट में बताया गया कि ऋण मांग में यह कमी उच्च मूल्य वाले क्रेडिट उत्पादों, विशेषकर होम लोन और दोपहिया वाहन श्रेणियों की ओर बदलाव के व्यापक रुझान के बीच आई है। हालांकि, उपभोक्ता ड्यूरेबल्स, पर्सनल लोन और क्रेडिट कार्ड जैसे उपभोग आधारित ऋण में सितंबर 2024 के बाद से सुधार के संकेत मिल रहे हैं। कुल मिलाकर, रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में ऋण लेने की प्रवृत्ति मजबूत है। इससे पता चलता है कि इन क्षेत्रों में वित्तीय समावेशन और आर्थिक विकास गतिविधियां लगातार बढ़ रही हैं।