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महिला नागा पीठाधीश्वर पर पुरुष नागा ने तलवार मारी:भास्कर रिपोर्टर ने अस्पताल पहुंचाया; 108 बार गंगा में डुबकी, खुद का पिंडदान कर बनती हैं साध्वी

पंथ सीरीज का ये एपिसोड सबसे अनोखा और खौफनाक है। रिपोर्टिंग के दौरान आमतौर पर कई तरह की मुश्किलें आती हैं, लेकिन इस एपिसोड के दौरान जो हुआ वो कल्पना से परे था। सबसे पहले वो किस्सा ही सुनाती हूं…

दिन मंगलवार, शाम साढ़े पांच बजे का वक्त। गिरनार क्षेत्र के जूना अखाड़े की पीठाधीश्वर नागा संन्यासिनी जयश्रीकानंद माताजी से बातचीत करने बाद मैं उनके साथ आश्रम के बाहर टहल रही थी। उनके वीडियो कटआउट्स बना रही थी।सामने शिवा नाम का एक नागा साधु बैठा था। उसके दोनों हाथ में धारदार तलवारें थीं। जैसे ही उसने हमें देखा वह चीखने लगा। ऐ इधर मत आ, इधर मत आ। वह जयश्रीकानंद को गाली दे रहा था।जयश्रीकानंद नहीं मानीं और सड़क पार उसके पास पहुंच गई। दोनों के बीच तू-तू मैं-मैं होने लगी। हवा में तलवार लहराते हुए शिवा कह रहा था, ‘मैं हिजड़ा नहीं हूं। तुझसे पूछकर बाबा नहीं बना हूं। तुम्हें मार दूंगा।’मैं वीडियो बना रही थी। शिवा की हरकतें देखकर डर गई। वहां मौजूद साधुओं से बचाने की गुहार लगाने लगी, लेकिन एक-दो साधुओं को छोड़कर कोई आगे नहीं आया। उन लोगों का कहना था कि हम बीच में नहीं आएंगे।

वह लगातार मां-बहन की गालियां दे रहा था। फिर उसने जयश्रीकानंद माताजी के साथ मार-पीट शुरू कर दी। धक्का देकर उन्हें जमीन पर गिरा दिया। वे कुछ बोल रही थीं, लेकिन मुझे सुनाई नहीं दे रहा था।इसी बीच उसने उनके सीने में तलवार मार दी। उनके शरीर से खून बहने लगा।मैं काफी डर गई, लगा मोबाइल हाथ से गिर जाएगा। पहली बार किसी को अपनी आखों के सामने इस तरह तलवार से हमला करते देखा। वह हवा में तलवार लहरा रहा था। कोई उसके पास नहीं जा रहा था। उसने मुझे भी वीडियो बनाने से रोका, मारने की कोशिश की, लेकिन मैं पीछे भाग गई। 20 मिनट तक वह उत्पात मचाता रहा और वहां लोग तमाशाबीन बने देखते रहे।

जयश्रीकानंद का भगवा चोला खून से लाल हो चुका था। मैंने कहा जल्दी इन्हें अस्पताल लेकर चलते हैं, लेकिन दो-तीन लोगों को छोड़कर कोई आगे नहीं आया। फिर मैं अपनी गाड़ी लेकर आई और दो लोगों की मदद से उन्हें कार में बिठाया।मैं आगे की सीट पर थी और पीछे की सीट पर जयश्रीकानंद माताजी। वह दर्द के मारे करहाते हुए मुझसे बोलीं, ‘मैंने इंटरव्यू में झूठ कहा कि अखाड़ों में संन्यासिनी का शोषण नहीं होता है। बहुत कठिन जिंदगी है हमारी। तुमने देख ही लिया कि क्या-क्या होता है हमारे साथ। डर की वजह से हम मुंह नहीं खोलते हैं।’करीब 20 मिनट बाद हम सिविल अस्पताल पहुंच गए। यहां इलाज के लिए 20 रुपए की पर्ची बनवानी थी। मेरे पास मेरा पर्स नहीं था और ऑनलाइन पेमेंट वे लोग ले नहीं रहे थे। कार में जयश्रीकानंद ने अपना पर्स मुझे दिया था और कहा था कि इसे अपने पास रखना।मैं उनका पर्स नहीं खोलना चाहती थी, लेकिन उनकी जान बचाने लिए मुझे पर्स खोलना पड़ा। जैसे ही उनका पर्स खोला, मैं चौंक गई। हजारों रुपए कैश। मेरी हिम्मत नहीं हुई पर्स में हाथ डालने की।

मैंने रिसेप्शन पर बैठे शख्स से कहा कि किसी की जिंदगी का सवाल है। आप पर्ची दे दीजिए। मैं किसी से मांगकर 20 रुपए आपको देती हूं। इसके बाद मुझे पर्ची मिली। तब जाकर इनका इलाज शुरू हुआ। जख्म गहरा था। बीपी डाउन हो गया था। सांस लेने में तकलीफ हो रही थी।थोड़ी देर बाद आश्रम और अखाड़ों के साधु वहां जमा होने लगे। पुलिस-प्रशासन के बड़े अधिकारी, डिप्टी मेयर और पत्रकारों की भीड़ लग गई।DSP हितेष डांडलिया को जयश्रीकानंद ने बताया कि शिवा ने शराब पी रखी थी। परसों उसने दो सन्यासिनियों के साथ बदतमीजी की थी। मैंने उस पर नाराजगी जाहिर की थी। इसी वजह से उसने मेरी हत्या की कोशिश की।’कुछ देर बाद शिवा को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। पुलिस शिवा पर IPC की धारा 307 के तहत केस दर्ज किया है।

यहां से मैं वापस जूना अखाड़े के दफ्तर पहुंची। हर जगह हमले की चर्चा है। कुछ लोग महिला सन्यासिनी को अपशब्द कह रहे हैं, गालियां दे रहे हैं। एकबारगी मुझे लगा कहीं मैं रेड लाइट एरिया में तो नहीं खड़ी हूं। महिला सन्यासिनी के लिए कोई ऐसे अपशब्द कैसे बोल सकता है….

महिला नागा सन्यासिनी… यही इस बार के पंथ की सब्जेक्ट हैं।हमले से पहले मैंने जयश्रीकानंद माताजी से बातचीत की थी। अब उसे कंटीन्यू कर रही हूं…जयश्रीकानंद 45 साल पहले घर छोड़कर संन्यासिनी बनी थीं। 2013 में जूना अखाड़े की महामंडलेश्वर बनीं। चार साल पहले उन्हें गिरनार पीठाधीश्वर बनाया गया। वे पहली महिला पीठाधीश्वर हैं।वे बताती हैं, ‘हम नागा साधु शिव भक्त होते हैं। हमारे इष्ट दतात्रेय भगवान हैं और मां अनुसुइया। शंकराचार्य ने धर्म की रक्षा के लिए नागा परंपरा की शुरुआत की थी। पहले सिर्फ पुरुष ही नागा साधु होते थे। बाद में महिलाएं भी इसमें शामिल होने लगीं। नागा साध्वियों को अवधूतानी भी कहा जाता है।’

मैं उनसे पूछती हूं नागा संन्यासिनी कैसे बनती हैं?जयश्रीकानंद बताती हैं, ‘पिछले कुछ सालों में नागा संन्यासिनी की संख्या बढ़ी है। पढ़ी-लिखी लड़कियां भी नागा बन रही हैं, लेकिन नागा बनना इतना आसान भी नहीं है। इसके लिए लंबी प्रक्रिया से गुजरना होता है।सबसे पहले एक गुरु धारण करना होता है। गुरु शिष्या को जनेऊ, गुरु मंत्र और भगवा चोला देते हैं। शुरुआत के 12 साल तक महिला को उसके घर आने-जाने की छूट होती है, लेकिन धीरे-धीरे उसे मोह-माया का त्याग करना होता है। 12 साल पूरा होने के बाद महिला अपने गुरु को बताती है कि वह अपने परिवार के बिना रह सकती है।इसके बाद गुरु महिला से आजीवन ब्रह्मचर्य पालन का वचन लेते हैं। कुंभ के मौके पर विधि-विधान से उसे अखाड़े में प्रवेश दिलाते हैं। उसे 5 मीटर का भगवा कपड़ा देते हैं, जिसे वह गर्दन के पास से गांठ बांध लेती हैं। यही कपड़ा ही उसका वस्त्र होता है।

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