कर्नाटक हाईकोर्ट की राज्य सरकार को फटकार:कहा- सरकारी स्कूल के बच्चों को दो जोड़ी यूनिफॉर्म भी नहीं मिल रही, शर्म करें

कर्नाटक हाई कोर्ट ने सरकारी स्कूलों में बच्चों को यूनिफॉर्म मुहैया न कर पाने को लेकर राज्य सरकार को फटकार लगाई है। हाईकोर्ट ने कहा कि सरकार को इस बात पर शर्म आनी चाहिए। दरअसल, कर्नाटक हाई कोर्ट में जस्टिस बी वीरप्पा और केएस हेमलेखा की पीठ ने 2019 में इस संबंध में एक आदेश दिया था। सरकार ने इस आदेश का पालन नहीं किया, जिसके चलते एक याचिकाकर्ता ने कोर्ट में याचिका दाखिल की।

इस याचिका में कहा गया कि शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 के तहत छात्रों को यूनिफॉर्म के दो सेट दिए जाने चाहिए। लेकिन कर्नाटक के कई सरकारी स्कूलों में छात्रों को दो जोड़ी यूनिफॉर्म, जूते और मोजे नहीं मिल पाए हैं।

कोर्ट ने कहा- बच्चों के साथ खिलवाड़ कोर्ट के साथ खिलवाड़ है
न्यायमूर्ति वीरप्पा ने कहा, ‘इस तरह की चूक सरकार के लिए शर्म की बात है। बच्चों के साथ खिलवाड़ करना कोर्ट के साथ खिलवाड़ करना है। फालतू चीजों पर तो करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं। जबकि शिक्षा मौलिक अधिकार है, फिर भी ऐसी दुर्दशा। इन बातों को हम बर्दाश्त नहीं करेंगे। क्या यह राज्य सरकार के लिए शर्म की बात नहीं है? यह काफी दुर्भाग्यपूर्ण है।’

राज्य सरकार ने बारे में एक हलफनामा दायर करके कहा था कि यूनिफॉर्म, मोजे और जूते की खरीद के लिए स्कूलों के प्रिंसिपलों और हेडमास्टरों को राशि भेज दी गई थी। इस पर कोर्ट ने कहा कि भगवान ही जानता है कि ये राशि लाभार्थियों तक पहुंची है या नहीं। पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि अब समय आ गया है कि राज्य अपनी आंखें खोले और सरकारी स्कूल के 6 से 14 वर्ष की आयु के छात्रों को स्कूल यूनिफॉर्म प्रदान करने के अपने मौलिक कर्तव्य को जल्द लागू करे।

नेताओं-अफसरों के बच्चे सरकारी स्कूल में नहीं जाते: कोर्ट
अदालत ने निजी स्कूलों में जाने का खर्च वहन करने वाले छात्रों की तुलना में सरकारी स्कूल के छात्रों के साथ होने वाले स्पष्ट सौतेले व्यवहार पर भी नाराजगी जताई। जस्टिस वीरप्पा ने कहा कि अगर कुर्सियों पर बैठे लोगों में मानवता नहीं है, तो यह एक बड़ी समस्या है। उनमें मानवता होनी चाहिए। उनके बच्चे कभी सरकारी स्कूलों में नहीं जाते। हम बच्चों के प्रति इस तरह का सौतेला रवैया बिलकुल बर्दाश्त नहीं करेंगे। सरकार ने कोर्ट से विस्तृत हलफनामा दायर करने के लिए वक्त मांगा, इस पर कोर्ट ने मंजूरी देते हुए कहा कि राज्य को और समय दिया गया है, ताकि जिम्मेदार अधिकारी पर आरोप तय हो सकें।