पत्नी के साथ फिल्म बना रहा ये डायरेक्टर, बोले- वो मुझसे ज्यादा टैलेंटेड
जयपुर. भारत में टालरेंस, इन-टालरेंस की बातें उठ रही हैं पर भारत में इन-टालरेंस जैसी चीज कहा है। यहां तो हर किसी को बोलने की भरपूर आजादी मिली हुई है। जो सही नहीं है, ये कहना है फिल्म डायरेक्टर विवेक अग्निहोत्री का। वो सोमवार को जयपुर में थे। एक काॅलेज में अपनी फिल्म की स्क्रिनिंग के सिलसिले में उन्होंने स्टूडेंट्स के साथ रूबरू हुए। इस मौके पर उन्होंने भास्कर के साथ अपने अनुभवों को साझा किया। फिल्मों के बारे में क्या बोले विवेक…
– विवेक ने अपनी फिल्म पर बात करते हुए कहा कि फिल्म वास्तविक अनुभवों पर बनाने की सोची तो लोगों ने कहा भाई तेरा इंश्योरेंस करा ले।
– जब आप डटकर कोई काम करते हैं तो लोग आपकी बात सुनते हैं। डर कर रहने पर लोग आपको दबाते हैं।
– ताइवान जैसे देशों में युवा को जेहाद के नाम पर आज युवाओं को बरगला कर आईएसआई की ट्रेनिंग देते हैं।
– ऐसा ही रवैया भारत के काॅलेज में भी मैंने महसूस किया है। जहां प्रोफेसर साथ पढ़ने वाले युवाओं को बरगला कर उन्हें खराब करते हैं।
– जिसे मैंने अपने निजी जीवन में खुद देखा और जाना है। मेरा मकसद फिल्म से कोई मैसेज देने का नहीं, बल्कि लोगों की आंखें खोलने का है।
– जब इस फिल्म को बनाना चाहा सभी भाग खड़े हुए सिर्फ मेरी पत्नी पल्लवी जोशी मेरे साथ खड़ी रही।
– आज ये फिल्म मेरे लिए फिल्म नहीं बल्कि एक आंदोलन है। यही वजह है कि आज के युवा मेरी बात को सुन और समझ रहे हैं। आज के युवा कुछ नया करने की सोच रखते हैं।
पत्नी पल्लवी आज भी मेरे लिए एक कलाकार है
– अपने निजी जीवन पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि अपनी फिल्म में पल्लवी को डायरेक्ट कर रहा, क्योंकि आज भी मेरे लिए वो पहले एक कलाकार है।
– मुझसे ज्यादा अनुभवी है। हम दोनों प्रोफेशनल लाइफ में एक दूसरे को सपोर्ट करते हैं, एक दूसरे की सुनते हैं।
– साथ फिल्में देखा करते हैं उन पर काफी चर्चा भी करते हैं।
फिल्म को लिखना अपने आप में है चुनौती
– विवेक ने कहा यूं तो हर काम में चुनौतियां होती हैं। पर सबसे ज्यादा एक फिल्म को लिखने में चुनौती सामने आती है।
– बतौर डायरेक्टर फिल्म को संभालना भी आसान नहीं। किसी की सफलता वहां से ही शुरू हो जाती है जब लोग उसके बारे में इधर-उधर बातें करना शुरू कर देते हैं।
– लोग वास्तविक कहानी या बातों को भी शुगर कोटिंग के साथ प्रस्तुत करते हैं, पर मेरा मानना है जो चीज जैसी हो, जो कहानी जैसी हो उसे उसी रूप में प्रस्तुत करना चाहिए न कि उसे बढ़ा-चढ़ा कर या किसी तरह की कोटिंग के साथ।
भारत में लोगों को बोलने की ज्यादा ही आजादी, जो सही नहीं
– उन्होंने कहा कि आज कन्हैया इतना कुछ बोल कर भी आराम से प्लेन का सफर कर रहे हैं, आराम से इधर-उधर घूम रहे।
– भारत के टुकड़े करो जैसे नारेबाजी करने वाले लोग आराम से खुलेआम घूम रहे, जबकि अमेरिका जैसे देश में कोई ऐसी हरकत करे तो उसे तुरंत जेल में बंद कर दिया जाए।
– फिर यहां बोलने की आजादी की बात कहां उठती है। लोग तो कुछ भी बोल रहे हैं, बोलने की इतनी आजादी भी नहीं मिलनी चाहिए।