शुरुआत में जैक मा को ठग समझते थे चीनी, बायोग्राफी में खुलासा
न्यूयॉर्क। चीन के दूसरे सबसे अमीर व्यक्ति और सबसे बड़ी ई-कॉमर्स कंपनी अलीबाबा के संस्थापक जैक मा की कहानी किताब की शक्ल में सामने आई है। किताब का नाम है‘अलीबाबा : द हाउस दैट जैक मा बिल्ट’। इसे लिखा है जैक के सलाहकार रहे डंकन क्लार्क ने। किताब में बताया गया है कि जब जैक ने 1999 में हांगझू में अपने अपार्टमेंट में अलीबाबा कंपनी का कामकाज शुरू किया तो लोग उन्हें शक की नजरों से देखते थे। उन्हें तीन साल तक ठग ही समझते रहे। बाद में जाकर लोगों को यकीन हुआ कि वे तो उनकी जिंदगी आसान करने वाले व्यक्ति हैं।
किताब में सबसे पहले बताया गया कि जैक मा का नाम आखिर जैक मा कैसे पड़ा? दरअसल उनका पहले नाम था मा युन। 1970 के दशक में जब अमेिरकी राष्ट्रपति निक्सन चीन आए थे, तब वे हांगझू इलाके में भी गए थे। इसी इलाके में रहता था 8 साल का मा युन। मा युन को विदेशियों को देखकर उसे अंग्रेजी सीखने की इच्छा होती थी। वह रेडियो पर अंग्रेजी के प्रोग्राम सुनने लगा। 8 साल बाद गांव में अमेरिका से कुछ टूरिस्ट आए। 15 साल के हो चुके मा युन की दोस्ती तब एक महिला टूरिस्ट से हो गई। उस महिला के पति और पिता, दोनों का नाम जैक था। उसने मा युन को ‘जैक’ नाम रखने की सलाह दी। कहा कि इससे उसे पश्चिमी देशों से करीबी बनाने में आसानी होगी। और इस तरह मा युन, जैक मा बन गया। क्लार्क ने किताब में लिखा है कि चीन का सबसे बड़ा बिजनेसमैन बनने में जैक की कोई रुचि नहीं थी। वह तो दुनिया में नंबर वन बनना चाहता था। जैक के पिता फोटोग्राफर थे और मां फैक्टरी में काम करती थीं।
जैक कॉलेज के एंट्रेंस एक्जाम में फेल हो गए थे। जहां भी नौकरी के लिए आवेदन किया, रिजेक्ट कर दिए गए। अंग्रेजी सीखने के बाद जैक ट्रांसलेशन का काम करने लगे। वह 1990 के दशक में पहली बार अमेरिका के सिएटल गए। वहां उनके एक दोस्त ने उन्हें इंटरनेट के बारे में बताया। वहीं जैक को ख्याल आया कि चीन की कंपनियों की ऑनलाइन मौजूदगी से काफी फायदा हो सकता है। इसके बाद इन्होंने अलीबाबा की नींव रखी। क्लार्क ने लिखा कि जैक जब भी किसी को कुछ समझाते तो मार्शल आर्ट के उपन्यासों के उदाहरण से ही समझाते थे। यह बात भी गौर करने लायक है कि उन्होंने इतनी बड़ी कंपनी चीन में इंटरनेट पर सरकारी नियंत्रण होने के बावजूद खड़ी की है। शुरू में अलीबाबा के कर्मचारियों को मुश्किल से 50 डॉलर हर महीने मिलते थे। वे सातों दिन काम करते थे। हर दिन 16 घंटे। जैक चाहते थे कि कर्मचारी 10 मिनट से ज्यादा दूरी पर न रहें।
झूठ बोलकर बेचा था आइडिया
जैक मा शुरू में आइडिया बेचने के लिए लोगों से कहते, ‘बिल गेट्स ने कहा है, इंटरनेट से जीवन का हर पहलू बदल जाएगा।’ बात सच थी लेकिन बिल गेट्स ने कभी ऐसा नहीं कहा था। अब जैक कहते हैं, ‘अगर मैं ये कहता कि जैक मा यह बात कह रहा है तो कौन मानता? मेरा मानना है कि बिल गेट्स एक दिन ऐसा जरूर कहेंगे।’
जैक मा शुरू में आइडिया बेचने के लिए लोगों से कहते, ‘बिल गेट्स ने कहा है, इंटरनेट से जीवन का हर पहलू बदल जाएगा।’ बात सच थी लेकिन बिल गेट्स ने कभी ऐसा नहीं कहा था। अब जैक कहते हैं, ‘अगर मैं ये कहता कि जैक मा यह बात कह रहा है तो कौन मानता? मेरा मानना है कि बिल गेट्स एक दिन ऐसा जरूर कहेंगे।’